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आसान नहीं था ऑटो से फ्रेंचाइजी लीग का सफर

Banswara
आसान नहीं था ऑटो से फ्रेंचाइजी लीग का सफर
@HelloBanswara - Banswara -

क्रिकेट के नए फॉर्मेट लीजेंड-90 लीग की शुरुआत 6 फरवरी से रायपुर में होने जा रही है। इसमें बांसवाड़ा शहर के क्रिकेटर रजत सिंह अब इंटरनेशनल क्रिकेटर्स शिखर धवन, सुरेश रैना, हरभजन सिंह, सौरभ तिवारी, यूसुफ पठान, राहुल यादव, मोइन अली, हर्सेल गिब्स और रॉस टेलर जैसे कई दिग्गज खिलाड़ियों के साथ खेलते नजर आएंगे।

स्टार खिलाड़ियों की इस लीग में रजत राजस्थान किंग्स की ओर से खेलेंगे। राजस्थान किंग्स का पहला मैच 7 फरवरी को दुबई जायंट्स से होगा। । वेस्टइंडीज के पूर्व ऑलराउंडर ड्वेन ब्रावो राजस्थान किंग्स के कप्तान होंगे। रजत पिछले 11 वर्षों से जयपुर में नए खिलाड़ियों को क्रिकेट के गुर सिखा रहे हैं। इससे पहले भी वह कई फ्रेंचाइजी लीग खेल चुके हैं।

वर्ष 2002 में क्रिकेट की शुरुआत करने के बाद वर्ष 2003 में अंडर-14 में सलेक्ट हुए। अंडर-16 व अंडर-19 में 3 बार जिले का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2005 से कॉल्विन ट्रॉफी में खेल रहे हैं। इसी में से आगे रणजी प्लेयर्स का चयन होता है। रजत आरपीएल, आईवीपीएल, प्रो क्रिकेट व बिग क्रिकेट लीग में खेल चुके हैं। लंबे समय तक पूर्व कप्तान महेंद्रसिंह धोनी की फ्रेंचाइजी के जयपुर हेड रहकर कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे चुके हैं।

इंडियन वेटरन प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस टीम के कोच रह चुके हैं। जो बांसवाड़ा ही नहीं, राजस्थान के लिए भी गर्व की बात है। ड्वेन ब्रावो, अंकी राजपूत, फिल मस्टर्ड, शाहबाज नदीम, फैज फजल, शादाब जकाती, जसकरन मल्होत्रा, इमरान ताहिर, जयकिशन कोलसावाला, राजेश बिश्नोई, कोरी एंडरसन, पंकज राव, सैमुल्ला शिनवारी, रजत सिंह, एशले नर्स, दवलत जादरान, मनप्रीत गोनी। यह क्रिकेट का एक नया फॉर्मेट है। इसमें 15-15 ओवर के मैच खेले जाएंगे। यानी एक पारी 90 गेंदों की होगी। पलही बार में कुल 7 टीमें राजस्थान किंग्स, दिल्ली रॉयल्स, बिग बॉयज, गुजरात सैम्प आर्मी, हरियाणा ग्लेडिएटर्स, छत्तीसगढ़ वॉरियर्स और दुबई जाइंट्स हिस्सा ले रही हैं।

यह लीग रायपुर में 6 से 18 फरवरी तक खेली जानी है। रजत ने बताया कि ऑटो चालक से फ्रेंचाइजी लीग का सफर आसान नहीं था। सिर से पिता का साया उठने के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी दोनों भाइयों के कंधों पर आ गई। वर्ष 2009 में रजत को बल्ला छोड़ ऑटो का हैंडल थामना पड़ा। दिनभर ऑटो चलाते और रात को 3 बजे उठकर डेयरी बूथ पर दूध सप्लाई करते। वर्ष 2013 तक उनका यह दौर बड़ा संघर्षमय बीता। उन्होंने बताया कि इस दौरान खूब भला बुरा भी सुनना पड़ता। तो अंदर से लगता कि यह काम मेरे लिए नहीं है। दूसरी ओर स्टेडियम में खेलते हुए लोगों की तालियों का शोर याद आ जाता, तब लगा कि अब इसी में मुकाम बनाना है।

वर्ष 2014 में जयपुर की एक एकेडमी में ट्रेनर की नौकरी ज्वॉइन की। पहली बार 15 हजार की सैलरी मिली तो न जाने कितने ही सपने देख लिए थे। उनमें से जब 12-13 हजार पहली बार घर भेजे तो खुशी के मारे मां की आंखें भर गईं। उसके बाद फ्रेंचाइज लीग में खेलने का मौका मिला तो आर्थिक हालात बदले। उन्होंने अपनी इस सफलता का श्रेय बचपन के कोच शाहिद खान पठान को दिया है।

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