घाटोल में जलती लकड़ियों से खेली राड:वर्षो से चली आ रही परम्परा का किया निर्वहन, इस खेल में एक बुजुर्ग घायल

घाटोल कस्बे में सोमवार सुबह होली का त्योहार उत्साह और जोश के साथ मनाना शुरू हुआ जो शाम तक जारी रहेगा। कस्बे में होली की अनूठी परंपरा प्रचलित है। सालों से चली आ रही परम्परा से हर समाज जुड़ा हुआ है। कस्बे के पोस्ट चौराहे पर पाटीदार समाज के साथ पांच कोम उपाध्याय, त्रिवेदी, मेहता, प्रजापति,व्यास समाज द्वारा होलिका दहन के बाद गैर का आयोजन हुआ। इसमें बुजुर्ग सहित युवाओं और बच्चों ने भी उत्साह के साथ भाग लिया। ढोल की थाप पर जमकर गैर नृत्य किया।
- इसके बाद सूर्योदय की पहली किरण के साथ ढोल की थाप का स्वर बदलने के साथ ही पाटीदार समाज के युवाओं द्वारा दो पक्ष बनाकर जलती हुई लकड़ियों से राड खेली गई। एक दूसरे पर जलती हुई लकड़ियां फेंकी। करीब पांच मिनट तक चले इस राड के बाद दोनों पक्ष के युवाओं ने एक दूसरे के गले लग होली की बधाई दी।
राड में एक बुजुर्ग घायल
राड के दौरान धनजी पाटीदार को आंख के पास चोंट लगने से वह घायल हो गया। लेकिन पाटीदार समाजजनों ने इसे शुभ माना।जलती लकड़ियों से राड खेलने की परंपरा को देखने लोगों का जमावड़ा लग गया। शांति एव कानून व्यवस्था को लेकर एसडीएम यतींद्र पोरवाल,डीएसपी महेंद्र कुमार मेघवंशी,तहसीलदार मोहम्मद रमजान खां,घाटोल थानाधिकारी प्रवीण सिंह मय जाप्ता मौजूद रहा।
समाज के बड़े-बुजुर्गों की मान्यता है कि होली के मौके पर राड खेलने से समाज, परिवार और गांव के ऊपर कोई विपदा नहीं आती है। वर्तमान में समाज राड से खुद को बचाने के लिए परंपरागत वेशभूषा के तौर पर सिर पर साफा बांधता है, जो एक तरह से हेलमेट का काम करता है। सिर पर पड़ने वाली चोट को रोकता है। इससे पहले यहां 10 दिन पहले से गैर खेलने की परंपरा भी है।
कंटेंट- राहुल शर्मा/ किशोर बुनकर घाटोल।