माही कडाणा बांध परियोजना के विस्थापित 1729 परिवारों की सरकार को अंतिम चेतावनी

बांसवाड़ा माही-कडाणा बांध परियोजना से विस्थापित 1729 आदिवासी परिवार 67 साल बाद भी न्याय से वंचित हैं। आरोप है कि प्रशासन ने पुनर्वास के नाम पर इन्हें पथरीली जमीन थमा दी, जिससे वे दर-दर भटकने को मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी 2017 के आदेश के बावजूद 40 गुना मुआवजा, 24% त्रैमासिक चक्रवृद्धि ब्याज और अन्य सुविधाएं नहीं मिली हैं। 25 फरवरी को गौतमेश्वर महादेव मंदिर, कांगलिया में विस्थापित पुनर्वास संघर्ष समिति की बैठक हुई।
बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिलों के प्रभावित परिवारों और समिति पदाधिकारियों ने सरकार को चेतावनी दी कि अगर जल्द न्याय नहीं मिला तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। विस्थापितों का कहना है कि 1835 से नदी-नालों की जमीन पर उनका जीवनयापन था, लेकिन 1960 के सर्वे में उनकी पुश्तैनी जमीन डूब क्षेत्र में आई। उनकी उपजाऊ जमीन, कुएं, बावड़ियां, और फसलें छिन गईं, लेकिन समुचित पुनर्वास नहीं हुआ। संघर्ष समिति ने 18 फरवरी को केंद्र और राज्य सरकार को 63 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा है। इसमें पुनर्वास अधिनियम 2013 के तहत मुआवजा, ग्रामसभा प्रस्तावों की स्वीकृति और न्यायसंगत पुनर्वास की मांग की गई। 2011 में विस्थापितों ने जोधपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें व्यक्तिगत पुनर्वास का आदेश दिया गया। बावजूद इसके प्रशासन ने सभी विस्थापितों को एक साथ जोड़कर उनका अधिकार छीना।
4 अगस्त 2017 को हाईकोर्ट ने खेती योग्य जमीन देने का आदेश दिया, लेकिन अब तक पालन नहीं हुआ। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि 5वीं अनुसूची के अनुच्छेद 244(1) और 13(3) क के तहत ग्रामसभा के निर्णय लागू किए जाए और विस्थापितों को उनका अधिकार दिया जाए। यदि प्रशासन जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाता तो आदिवासी समुदाय उग्र आंदोलन करेगा।
