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आदिवासी महिलाएं घर में हर्बल साबुन बनाकर बेच रहीं:राजस्थान के बांसवाड़ा में 1 साल में 20 हजार साबुन बेचे, गांव में पलायन बंद

Banswara
आदिवासी महिलाएं घर में हर्बल साबुन बनाकर बेच रहीं:राजस्थान के बांसवाड़ा में 1 साल में 20 हजार साबुन बेचे, गांव में पलायन बंद
@HelloBanswara - Banswara -

राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले में पहाड़ियों और जंगल के बीच बसे वाडलपाड़ा गांव में पलायन बंद हो गया है। यहां की करीब 50 महिलाएं पेड़ की पत्तियों, फूलों और मिट्‌टी में बकरी का दूध मिलाकर 9 तरह के हर्बल साबुन बना रही हैं। इनकी मांग इतनी ज्यादा है कि 70 रुपए का यह साबुन सालभर में ही 20 हजार से ज्यादा बिक चुके हैं। पहले ये खुला साबुन बेचती थीं, लेकिन अब इसकी पैकेजिंग और सप्लाई खुद करने लगी हैं। इससे गांव के ज्यादातर परिवार जुड़ गए हैं। बिना किसी केमिकल और मशीन के केवल घरेलू नुस्खों से बनाए जा रहे साबुनों में 25 से 30% बकरी का दूध होता है। बकरी का दूध इसलिए क्योंकि यह त्वचा को मुलायम बनाता है।

इसी गांव की एक महिला रूमकांता डामोर करीब डेढ़ साल पहले जयपुर में राजीविका के एक मेले में गई थी। वहां कई हर्बल प्रोडक्ट देखे। वहीं से उन्हें हर्बल साबुन बनाने का आइडिया आया। 2-4 महिलाओं से शुरू हुए इस काम से एक साल में 50 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। गढ़ी ब्लॉक के वाडलपाड़ा गांव की महिलाएं नीम, ऐलोवेरा, संतरा, नींबू, केसर, चंदन, मुल्तानी मिट्टी और गुलाब साबुन बना रही हैं। अब इनका निर्माण बड़े स्तर पर करने का प्लान चल रहा है।

दूसरों को रोजगार की तैयारी... बकरी के दूध का खरीद केंद्र शुरू करने जा रहे हैं रूमकांता डामोर ने बताया कि वे बकरी के दूध का खरीद केंद्र शुरू करने की योजना बना रहे हैं। सभी साबुनों में बकरी का दूध का इस्तेमाल होने से अब उनके लिए बकरी का दूध इकट्‌ठा करना चुनौती बन गया है। अभी साबुन बनाने वाली महिलाएं ही आसपास के गांवों से बकरी का दूध लेकर आती हैं। इसमें नारियल तेल, विटामिन-ई और अन्य सुगंध मिलाकर साबुन तैयार करते हैं। गांव में बकरी के दूध का खरीद केंद्र शुरू करने से आसपास के गांव के लोगों को भी रोजगार मिल जाएगा। आदिवासी महिलाओं के हाथों बने हर्बल साबुन की मांग बढ़ रही है। अन्य गांवों की महिलाएं भी जुड़ रही हैं। अब इन्हें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी लाएंगे। -धन सिंह राव, जिला कोऑर्डिनेटर, राजीविका

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