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माही के पानी से सिंचिंत आनंदपुरी कमांड एरिया के लिए नए साइफन की स्वीकृति से किसानों में उत्साह

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माही के पानी से सिंचिंत आनंदपुरी कमांड एरिया के लिए नए साइफन की स्वीकृति से किसानों में उत्साह
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विशेषज्ञ बोले बांध ही समस्या का हल

माही के पानी से सिंचिंत आनंदपुरी कमांड एरिया के लिए नए साइफन की स्वीकृति से किसानों में अच्छी खेती की उम्मीदें जगी है। नए बजट में यहां स्टील पाइपों की मदद से साइफन तैयार होगा, जिसकी आयु तकनीकी तौर पर लंबी होगी। इसमें बार-बार रिपेयर करने जैसी समस्याएं नहीं रहेंगीं।

दूसरी ओर विषय विशेषज्ञ स्टील पाइप वाले साइफन को भी समस्या का स्थाई हल मानने से इनकार कर रहे हैं। उनके अनुसार यह पाइप प्रेशर तो झेल लेंगे, लेकिन भीतर जाने वाली गंदगी को इससे निकालना बहुत ही जोखिम भरा होगा।

वहीं कुछ तकनीकी जानकारों की ओर से स्थायी समस्या के तौर पर अनास नदी पर बांध बनाना ही कमांड क्षेत्र में पानी पहुंचाने के लिए स्थायी और कारगर तरीका होगा। इससे अनास नदी से बहकर गुजरात जाने वाले व्यर्थ पानी को भी रोका जा सकेगा और पूरे साल सिंचाई के लिए आनंदपुरी को पानी भी मिल पाएगा। हालांकि, अनास पर बांध के प्रस्ताव को पूर्व में सरकार अपने एजेंडे में शामिल कर चुकी थी, लेकिन स्थानीय विरोध के बीच इसे टाल दिया गया था।

नक्शे के हिसाब से नदी से गुजरती कैनाल।
नक्शे के हिसाब से नदी से गुजरती कैनाल।

ऐसा है मामला
गौरतलब है कि आनंदपुरी कमांड एरिया वर्तमान में माही डेम के पानी से सिंचित है। शुरुआती दौर में यह कमांड एरिया 9 हजार हैक्टेयर में था, जो अब बढ़कर 14 हजार हैक्टेयर हो गया है। माही बैक वाटर को सिंचाई नहर के माध्यम से आंनदपुरी तक पहुंचाया जाता है।

इस मार्ग में अनास नदी पड़ती है, जो नहर के जमीनी स्तर से करीब 80 मीटर नीचे हैं। ऐसे में नदी को पार कराने के लिए यहां साइफन तकनीकी की मदद ली जाती है। वर्ष 1988 में यहां पहली बार कंक्रीट का साइफन बनाने की शुरुआत हुई थी।

तब वर्ष 2002-03 में मुख्य अभियंता राम सिंह दिवाकर के कार्यकाल में शुरू किया गया था। इसके बाद टीएडी के बजट से यहां दूसरी बार पाइप का एक्वाडेक साइफन बना, लेकिन वह भी तकनीकी तौर स्वस्थ नहीं रहा। अब इस जरूरत को पूरा करने के लिए यहां तीसरी बार स्टील पाइप का एक्वाडेक साइफन तैयार करने की पहल होगी।
नर्मदा कैनाल से सीखने की जरूरत
जल संसाधन विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता दीपक दोसी की मानें तो केवल साइफन यहां की समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। नहर से आने वाली गंदगी से इसमें भराव होता रहता है। एक समय बाद यह व्यवस्था प्रतिकूल हो जाती है। साइफन में सांप वगैरह की मौजूदगी से सफाई मुश्किल हो जाती है। इसलिए सरकार को डाकोर में नर्मदा नदी पर बने हुए एक्वाडक कम साइफन पर विचार करना चाहिए ताकि पानी के गुजरने के बाद इसकी सफाई अच्छे से की जा सके।

सरकार को गरेड़िया-हैजामाल के बीच में अनास डेम बनाना चाहिए। नहीं तो चैकडेम या फिर बैराज बना दे। इससे आनंदपुरी को ग्रेवेटी से पानी मिलेगा। बारिश में जरूरत के हिसाब से गेट खोल देंगे। सज्जनगढ़ और गांगड़तलाई इलाकों में भी वर्षपर्यंत पेयजल आपूर्ति संभव होगी।
एनिकट की जरूरत
विषय से जुड़े जानकार गोपीराम अग्रवाल के अनुसार अनास नदी पर चैक डेम या फिर एनीकट बनाकर व्यर्थ बहकर गुजरात जाने वाले पानी को रोकना चाहिए। इसके माध्यम से पानी को लिफ्ट कराकर आनंदपुरी कमांड क्षेत्र में सिंचाई करनी चाहिए। स्टील का साइफन सक्सेज होने के चांस कम ही हैं। पुराने अनुभवों से भी माही परियोजना के अधिकारी सीखने की कोशिश नहीं करते हैं।
डेम बेहतर, स्टील साइफन स्थायी
विषय से जुड़े इंजीनियर जितेंद्र वर्मा ने बताया कि उनकी नजर में अनास नदी पर बांध बनाना सिंचाई समस्या का स्थायी समाधान है। लेकिन, डूब क्षेत्र में आने वाले ज्यादा क्षेत्र को लेकर शायद सरकार की ओर से इस प्रस्ताव को खारिज किया गया है।

वर्मा का कहना है कि स्टील का साइफन वर्तमान जरूरत का स्थायी माध्यम है। साइफन में पानी का प्रेशर अधिक होता है। इसलिए कंक्रीट में क्रेक की समस्या रहती है। स्टील से यह समस्या दूर हो जाएगी। एक्वाडक कम साइफन के लिए नदी से करीब 80 मीटर ऊंचे स्पान लेने होंगे, जो बहुत ही मुश्किल है। इसे बनाने में भी लंबा समय बीतेगा, जबकि स्टील साइफन कम समय में तैयार होगा।

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