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घाटोल में खेली जाती है अनूठी होली:होलिका दहन के बाद सूर्योदय की पहली किरण के साथ जलती लकड़ियों से खेलते राड वर्षो से चली आ रही परम्परा

Banswara
घाटोल में खेली जाती है अनूठी होली:होलिका दहन के बाद सूर्योदय की पहली किरण के साथ जलती लकड़ियों से खेलते राड वर्षो से चली आ रही परम्परा
@HelloBanswara - Banswara -

वागड़ में होली काफी उत्साह और जोश से मनाई जाती हैं। जहां अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग परंपराएं प्रचलित हैं। होली का त्योहार हर समाज में अपनी परंपराओं से जुड़ा है, लेकिन घाटोल में पाटीदार समाज का होली खेलने का तरीका दूसरों से जुदा है। यहां जलती हुई लकड़ियों से होली की राड खेलने की 562 साल पुरानी परंपरा है। सदियों से चली आ रही परंपरा में समय के साथ कुछ बदलाव जरूर हुए, लेकिन तरीका नहीं बदला। समाज में होली की जलती लकड़ियों से रंगोत्सव की शुरूआत होगी।

- पाटीदार के साथ उपाध्याय, राव, प्रजापत, मेहता, त्रिवेदी, व्यास समाज के लोग भी जुटेंगे, जो पहले होली जलाएंगे। इसके बाद ढूंढोत्सव मनाएंगे। इसके बाद होली के चारों ओर गैर नृत्य करेंगे। ढोल की थाप विशेष बदलने के साथ ही गैर खेलने वाला समूह दो गुटों में बंटकर होली की जलती हुई लकड़ियों को एक-दूसरे के ऊपर फेंकते हैं। इसे राड खेलना कहा जाता है।इसमें कई बार चोट लगने व कपड़ों में आग लगने का खतरा भी रहता है,लेकिन यहां होलिकोत्सव के इस आयोजन से समाज इसे पूरे साल बुराई का खत्म होने की मान्यता मानता है।इसे समाज स्तर पर आवश्यक टोटका भी कहा जाता है।

पहले से बदल गया ढंग

समाज के पुराने और बुजुर्ग लोगों ने बताया कि जब, घाटोल कस्बे की स्थापना हुई थी। बुजुर्ग पेमजी पाटीदार ने बताया कि तब से उनके बीच इस तरह से होली मनाने का चलन है। उनकी जानकारी के हिसाब से इस तरह की होली उनके बाप-दादा मनाते आ रहे हैं। उन्होंने पुरानी परंपरा को कभी बंद नहीं किया। इतना जरूर है कि उस समय होली खेलते समय खुद के बचाव में बैलगाड़ी के पहिए और ढाल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब इसमें बदलाव हो गया है। अब इस राड को खेलते समय यहां हर हाथ में लट्‌ठ होता है, जो सामने से आने वाली लकड़ी को बचाने के लिए काम लिया जाता है।

पूरे साल कोई विपदा नहीं आती

समाज के बड़े-बुजुर्गों की मान्यता है कि होली के मौके पर राड खेलने से समाज, परिवार और गांव के ऊपर कोई विपदा नहीं आती है। वर्तमान में समाज राड से खुद को बचाने के लिए परंपरागत वेशभूषा के तौर पर सिर पर साफा बांधता है, जो एक तरह से हेलमेट का काम करता है। सिर पर पड़ने वाली चोट को रोकता है। इससे पहले यहां 10 दिन पहले से गैर खेलने की परंपरा भी है।

कंटेंट- राहुल शर्मा घाटोल।

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