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‘पद्मावती’ के जौहर की तरह ऐसी ही कुर्बानी कन्नौज की राजकुमारी सम्युक्ता ने भी दी थी

‘पद्मावती’ के जौहर की तरह ऐसी ही कुर्बानी कन्नौज की राजकुमारी सम्युक्ता ने भी दी थी
@HelloBanswara - -

Banswara November 28, 2017 -  राजपूत रानी पद्मावती पर बनी संजय लीला भंसारी की फिल्म रिलीज से पहले ही विवादों में घिरी हुई है। राजपूत समाज से लेकर कई पॉलिटीशियन्स फिल्म के साथ ही एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण का भी विरोध कर रहे हैं। पद्मावती ने अलाउद्दीन खिलजी से खुद को बचाने के लिए किले में रह रही तमाम महिलाओं के साथ जौहर (सती) किया था। उनके बलिदान को राजपूत आज भी नमन करते हैं। ऐसी ही कुर्बानी कन्नौज की राजकुमारी सम्युक्ता ने भी दी थी। Media अपने रीडर्स को इसी वीरांगना के बारे में बता रहा है। पूरी कहानी पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंद बरदाई द्वारा लिखित ग्रंथ 'पृथ्वीराज रासो' पर बेस्ड है।
 

कौन थी सम्युक्ता? इतिहासकारों में है विवाद - 
-    Media ने कन्नौज की राजकुमारी सम्युक्ता का पूरा इतिहास जानने के लिए जाने-माने साहित्यकार विराम तिवारी और जीवन शुक्ला से बात की।
- विराम तिवारी बताते हैं, "पृथ्वीराज रासो ग्रंथ के मुताबिक कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी सम्युक्ता को पृथ्वीराज चौहान हरण कर ले गए थे। अन्य ग्रंथ रंभा मंजरी में उल्लेख है कि सम्युक्ता राजा जयचंद की दासी की पुत्री थी, वहीं पृथ्वीराज रासो के मुताबिक वो जयचंद की बेटी थी।" 

- जीवन शुक्ला का कहना है,  "इतिहास के पन्नों में कहीं नहीं लिखा कि जयचंद की कोई बेटी थी। उन्हें सिर्फ एक लड़का था। सम्युक्ता का उल्लेख सिर्फ पृथ्वीराज रासो नाम की ग्रंथ में मिलता है, जिसके लेखक चंद बरदाई थे। बरदाई पृथ्वीराज के राजदरबारी थे। इन्हीं की मदद से अंधे होने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी का खात्मा किया था।"
 

ऐसी थी पृथ्वीराज और सम्युक्ता के प्रेम की कहानी -
- पृथ्वीराज रासो के मुताबिक सम्युक्ता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी। मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर 17 बार हमला किया था, जिसमें से 16 बार वहां के राजा पृथ्वीराज चौहान ने उसे परिजित किया था। उनकी यही वीरगाथा ने सम्युक्ता का मन मोह लिया था। 
- पृथ्वीराज चौहान का राजदरबारी पन्ना रे अपने राजा की पेंटिंग लेकर कन्नौज गया था। सम्युक्ता ने दिल्ली के राजा की वीरगाथा सुनी थी, पेंटिंग देखते ही वह पूरी तरह उन पर मोहित हो गई।
- पन्ना रे सम्युक्ता की पेंटिंग बनाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाने ले गया था। कन्नौज की राजकुमारी की खूबसूरती ने दिल्ली के राज का दिल जीत लिया था।
- पृथ्वीराज और जयचंद की पुरानी दुश्मनी थी। दोनों के बीच युद्ध भी हो चुके थे, फिर भी पृथ्वीराज और सम्युक्ता की प्रेम कहानी परवान चढ़ रही थी। 
- पृथ्वीराज राजकुमारी से मिलने चोरी-छुपे दिल्ली से एक सुरंग के रास्ते कन्नौज आते थे। कहा जाता है कि दिल्ली से जयचंद के किले की बनी सुरंग आज भी मौजूद है, लेकिन उसकी खोज नहीं हो सकी है।
- सम्युक्ता और पृथ्वीराज चौहान की यह प्रेम गाथा टीवी सीरियल के फॉर्म में टीवी पर आ चुकी है। यही नहीं, 1959 में 'सम्राट पृथ्वीराज चौहान' नाम की हिंदी और 1962 में 'रानी सम्युक्ता' नाम से तमिल फिल्म बनी थीं।


पृथीराज का मजाक उड़ने के लिए उसने अपने दरबार में द्वारपाल के रूप में मूर्ति बनवाके खड़ी कर दि थी सम्युक्ता वरमाला लेकर सभा में आई  संयुक्त की नजरे पृथ्वीराज को ढूड रही थी राजकुमारी द्वार तक पंहुची जन्हा पृथ्वी राज की मूर्ति लगाई गयी थी अपने प्यार की बेइज्जती दे दुखी सम्युक्ता ने मूर्ति को ही वरमाला पहना दी मूर्ति के पीछे पृथीराज खड़े थे वो तुरंत आगे आये और वरमाला पहना ली| जयचंद यह देखकर आगबबूला था, लेकिन पृथ्वीराज रुके नही| उन्होंने सम्युक्ता को गोद में उठाया और घोड़े पर बैठाकरभगा ले गए|

दूसरी तरफ मो.गौरी 17वीं बार दिल्ली पर हमला करने के लिए तैयार था| बेइज्जती से तिलमिलाए जयचंद ने गौरी को मदद देने का आश्वासन दिया| पृथ्वीराज को गौरी के इरादों की भनक लगी| चंद बरदाई के जरिए राजपूत राजाओ से मदद मांगी लेकिन किसी ने साथ नहीं दिया|

1192 ई. में पृथ्वीराज-गौरी के बिच तराईन में युद्ध हुआ| शक्तिशाली घुड़सवार दस्ते के दम पर गौरी ने पृथ्वीराज के 3 लाख सैनिको को पराजित किया| पृथ्वीराज की हार हुई और चंद बरदाई समेत उन्हें बंदी बना लिया गया जयचंद ने गौरी की मदद की, लेकिन वो भी मारा गया और कन्नोज गौरी का हुआ|

पृथ्वीराज को बंदी बनाने के बाद गौरी नेसम्युक्ता को अपनी दासी बना लिया, अपने प्यार के इंतजार में राजकुमारी गौरी की प्रताड़ना सती रही|गौरी ने पृथ्वीराज की दोनों आँखे फोड़ दीं और उसे भरी सभा में मारने का फैसला लिया| चंद बरदाई ने चालाकी से गौरी को चौहान की शब्दभेदी बाण वाली खूबी बताई| गौरी ने पृथ्वीराज से शब्दभेदी बाण की कला दिखाने को कहा जैसे ही गौरी ने उनके हाथो में तीर कमान थमाया, वैसे ही बरदाई ने कहा ‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान’ चंद बरदाई की यह पंक्ति सुनते ही पृथ्वीराज को गौरी की लोकेशन पता चल गई और उसने तीर चला दिया| तीर सीधा गौरी की गर्दन पर लगा और उसकी वंही मौत हो गई|


गौरी की हत्या के बाद पृथ्वीराज और चंद बरदाई ने एक दुसरे को खंजर मार लिया| यह सुनते ही दुखी सम्युक्ता ने जौहर कर लिया और प्यार पर कुर्बान हो गई.
 

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