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जलती हुई लकड़ियों से होली खेलने की परंपरा:​​​​​​​ पाटीदार समाज में 560 साल पुराना होली का चलन, पूरे वर्ष सुरक्षित रहने का टोटका

Banswara
जलती हुई लकड़ियों से होली खेलने की परंपरा:​​​​​​​ पाटीदार समाज में 560 साल पुराना होली का चलन, पूरे वर्ष सुरक्षित रहने का टोटका
@HelloBanswara - Banswara -

दूसरे समाजों से हटकर पाटीदार समाज की होली सुबह 5 बजे जलाई जाएगी। पाटीदार के साथ राव, भाट और उपाध्याय समाज के लोग भी जुटेंगे, जो पहले होली जलाएंगे। इसके बाद ढूंढोत्सव मनाएंगे। इसके बाद होली के चारों ओर गैर नृत्य करेंगे। ढोल की थाप विशेष बदलने के साथ ही गैर खेलने वाला समूह दो गुटों में बंटकर होली की लकड़ियों को एक-दूसरे के ऊपर फेकेंगे। इसमें कई बार कपड़ों में आग लगने का खतरा भी रहता है, लेकिन मान्यता के हिसाब से समाज इसे पूरे साल बुराई का खत्म होने का तरीका बताता है। इसे समाज स्तर पर आवश्यक टोटका भी कहा जाता है।
पहले से बदल गया ढंग
समाज के पुराने और बुजुर्ग लोगों ने बताया कि जब, घाटोल कस्बे की स्थापना हुई थी। बुजुर्ग पेमजी पाटीदार ने बताया कि तब से उनके बीच इस तरह से होली मनाने का चलन है। उनकी जानकारी के हिसाब से इस तरह की होली उनके बाप-दादा मनाते आ रहे हैं। उन्होंने पुरानी परंपरा को कभी बंद नहीं किया। इतना जरूर है कि उस समय होली खेलते समय खुद के बचाव में बैलगाड़ी के पहिए और ढाल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब इसमें बदलाव हो गया है। अब इस राड को खेलते समय यहां हर हाथ में लट्‌ठ होता है, जो सामने से आने वाली लकड़ी को बचाने के लिए काम लिया जाता है।​​​​​​​
पूरे साल कोई विपदा नहीं आती

समाज के बड़े-बुजुर्गों की मान्यता है कि होली के मौके पर राड खेलने से समाज, परिवार और गांव के ऊपर कोई विपदा नहीं आती है। वर्तमान में समाज राड से खुद को बचाने के लिए परंपरागत वेशभूषा के तौर पर सिर पर साफा बांधता है, जो एक तरह से हेलमेट का काम करता है। सिर पर पड़ने वाली चोट को रोकता है। इससे पहले यहां 10 दिन पहले से गैर खेलने की परंपरा भी है।

समाज का ऐसा भी एक तर्क

समाज के अमरजी पाटीदार बताते हैं कि करीब 560 साल पहले उनका समाज गुजरात की ओर से आया। समाज को स्थानीय लोगों का विरोध सहना पड़ा होगा। तब उनके यहां बसते समय होली का त्योहार पड़ा। वहां पहले से रहने वाले लोगों ने पाटीदार समाज का विरोध किया। संभव है कि तब होली जल रही होगी। उस होली के दौरान स्थानीय लोगों के हमले से बचने के लिए पाटीदार समाज ने तब जल्दबाजी में होली की जलती लकड़ियां फेंकी होंगी। जब जीत भी हो गई हो। संभव है कि समाज की स्थानीय लोगों पर जीत की इस शुरुआत को समाज ने परंपरागत ढंग दे दिया हो।

कंटेंट : किशोर बुनकर (घाटोल)

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