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ठीकरिया में होली की परंपरा:शादी के बाद फिर होती है शादी, नवजातों के माता-पिता फिर बनते है दुल्हा-दुल्हन

Banswara
ठीकरिया में होली की परंपरा:शादी के बाद फिर होती है शादी, नवजातों के माता-पिता फिर बनते है दुल्हा-दुल्हन
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वागड़ क्षेत्र अपनी परम्पराओं के कारण प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में विशेष पहचान रखता है। ऐसी परंपराओं में एक खास परम्परा है शादी के बाद फिर शादी । जिले के ठीकरिया गांव में वर्षों से यह अनूठी परम्परा चल रही है। शादी के बाद पहली संतान होने पर पति-पत्नी की होली के दूसरे दिन धूलंडी की शाम को शादी की रस्म दोहरायी जाती है। यह परंपरा नवजातों के माता-पिता को दूसरी बार दुल्हा-दुल्हन बनाकर गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों की ओर संकेत देती है। यहां की हर परम्परा अनूठा संदेश और प्रेरणा देती है।

यह परम्परा बरसो से कायम है। नवजात के माता-पिता के साथ धुलण्डी के दिन ग्रामीण पानी से जमकर होली खेलते है। इसके बाद होली चौक पर सभी ग्रामीण एकत्रित होते है और जिन युगल के पहली संतान हुई हो वे दुल्हा-दुल्हन के वेश में आते है। यहां से उनका बिनौला निकाला जाता है। ढोल-ढमाकों के साथ पूरे गांव में प्रदक्षिणा की जाती है। इसमें गांव की सभी महिलाएं मंगल गीत गाते हुए चलती है। चौराहे पर बुआ तिलक की रस्म होती है।इसमें नवजात की बुआ नौनिहाल को कुमकुम का टीका लगाती है। इसके बाद पारम्परिक लोक नृत्य का आयोजन होता है। यहां से विसर्जन के बाद गृह प्रवेश के दौरान घर की कुमारिकाएं द्वार रोकती है और उपहार मांगती है। इस अनोखी परम्परा में नवजात के माता-पिता दुल्हा-दुल्हन बनते है तो जो नवजात भी बिनौले के दौरान गीत-संगीत के बीच झूम उठते है। ऐसा मौका केवल ठीकरिया के नवजातों को ही मिलता है कि वे अपने माता-पिता की शादी में नाच उठते है।

इस परंपरा का यह है मकसद

इस अनूठी परम्परा के माध्यम से नवयुगल को गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों से रूबरू कराया जाता है। यह परम्परा पारिवारिक दायित्वों का अहसास कराती है। नवजात को विवाह योग्य बनाने के लिए आर्थिक रूप से समृद्ध बनने का संदेश भी मिलता है। व्यावहारिक तौर पर जीवन की प्रतिकूलताओं का मुकाबला करने का कौशल भी इसके माध्यम से सिखाया जाता है।

हंसी ठिठोली का लुत्फ यहां भी कम नहीं होता। ग्रामीण पुरुष और महिलाएं दुल्हा-दुल्हनों पर फब्तियां कसते हुए खूब आनन्द लेते है। मर्यादायुक्त ठिठोली की स्वस्थ परम्परा फूहड़पन से कोसों दूर होती है। एक स्वस्थ और समृद्ध उत्सव के प्रोत्साहन में इस विश्रुत परम्परा का बहुत बड़ा योगदान है।

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