13 करोड़ की ठगी का मुख्य आरोपी गिरफ्तार:अमन कलाल दुबई के प्रेम दोसी से क्रिप्टो करेंसी मंगवाकर अपने 'बाइनेंस एप' पर बेचता था

बांसवाड़ा की साइबर पुलिस ने ठगी के मामले में मुख्य आरोपी परतापुर के जवाहर कॉलोनी निवासी अमन कलाल को गिरफ्तार किया है। मामले में यस बैंक के 11 खाता धारकों के निष्क्रिय पड़े खातों से साइबर ठगी के 13 करोड़ का लेन-देन किया गया था।
साइबर पुलिस ने पिछले दिनों ऑनलाइन साइबर ठगी के संगठित गिरोह का पर्दाफाश करते हुए यस बैंक बांसवाड़ा के उप शाखा प्रबंधक मेगनेश जैन और बैंक के पूर्व कर्मचारी दिव्यांशु सिंह को गिरफ्तार किया था।
क्रिप्टो करेंसी मंगवाता था आरोपी
आरोपी अमन से पूछताछ में सामने आया कि अमन बाइनेंस एप के जरिये दुबई से प्रेम दोसी नाम के शख्स से क्रिप्टो करेंसी मंगवाता, फिर उसे अपने बाइनेंस अकाउंट पर बेचता। क्रिप्टो साइबर फ्रॉड से प्राप्त रुपयों के बदले और अन्य अभियुक्त जो कि लोगों से सीधा साइबर ठगी कर रुपए प्राप्त करते थे, उन्हें बैंककर्मी दिव्यांशु सोलंकी व मेगनेश जैन की मदद से बैंक खातों में प्राप्त करता था।
इन्हीं दोनों की मदद से खातों में जमा राशि को विड्रॉल करवाकर हवाला कारोबारी अविनाश जैन के जरिए एक नंबर करने के लिए दुबई भेजने का खुलासा हुआ है। थानाधिकारी सीआई देवीलाल मीणा ने बताया कि मुख्य आरोपी अमन की 7 जून तक के लिए पुलिस अभिरक्षा मिली है। पूछताछ में कई खुलासे होने की संभावना है।
गिरोह डेढ़ साल से सक्रिय होने की आशंका है। गिरोह में स्थानीय स्तर पर और कितने बदमाश जुड़े हुए हैं, इसकी जांच चल रही है। अमन के पुलिस गिरफ्त में आने से इस केस में कई नए खुलासे होने की संभावना है।
मास्टरमाइंड था अमन कलाल
पूरे घोटाले का मास्टरमाइंड अमन कलाल था, जो पहले से ही साइबर अपराधों में सक्रिय था। उसने बैंक से जुड़े दिव्यांशु और मेगनेश को अपने साथ जोड़करठगी का नेटवर्क खड़ा किया। ठगी की रकम में से मोटा कमीशन देकर दोनों को साथ मिलाया।
साइबर ठगों ने विभिन्न राज्यों के लोगों से ऑनलाइन डराने-धमकाने, झूठे निवेश, टेलीग्राम चैनलों के जरिए कमाई का झांसा देकर ठगी की। ये लोग पीड़ितों से रकम लेकर उसे बांसवाड़ा स्थित यस बैंक में पहले से खुलवाए गए निष्क्रिय खातों में डलवाते थे। इसके बाद इन खातों से फर्जी चेक और हस्ताक्षरों के जरिए नकद विड्रॉल कर लेते थे।
ठगी का ज्यादातर पैसा पहले अमन के निजी खाते में आता था, जहां से खाता धारकों के अलग-अलग खातों में ट्रांसफर किया जाता था।