जनजाति महासम्मेलन में उठा धर्मांतरण का मुद्दा:आदिवासी प्रतिनिधियों बोले- धर्म बदलने वाले होंगे समाज के बाहर
आदिवासी ही संस्कृति और सभ्यता का सेवक है
कटारा ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमश: SC/ST की अखिल भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण एवं संरक्षण के लिए राष्ट्रपति से सूची जारी करने का प्रावधान है। संविधान में धर्मांतरित इसाई और मुसलमान SC में शामिल नहीं हो सकता। लेकिन, ST की सूची में शामिल हो सकता है। यह विसंगति संविधान के कल्याणकारी/ न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत होकर, मूल संस्कृति वाली बहुसंख्यक ST के लिए यह उचित नहीं है। धर्मांतरण के उपरांत आदिवासी सदस्य इंडियन क्रिश्चियन कहलाते हैं जो कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में धर्मांतरित इसाई और मुस्लिम देाहरा लाभ ले रहा है।
इस पर भी मंथन
चर्चा के दौरान मंथन हुआ कि सन 1968 में पूर्व सांसद डॉ. कार्तिक उरांव ने, इस संवैधानिक/ कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए थे। उन्होंने एक अध्ययन के माध्यम से बताया था कि 5 फीसदी धर्मांतरित इसाई भारत में ST की 62 फीसदी से अधिक नौकरी, छात्रवृत्तियां एवं राजकीय अनुदान ले रहे हैं। इस मुद्दे को तत्कालीन 348 सांसदों ने समर्थन भी किया था। दिल्ली में जनजाति सुरक्षा ने सांसद संपर्क महाअभियान किया है, जिसमें 442 सांसदों से संपर्क कर De-listing का कानून बनाने का आग्रह किया है। राजस्थान के 37 सांसद सम्मिलित हुए हैं। मंच पर हर रतन डामोर, विजयसिंह देवदा, जालूसिंह गामोट, कालूसिंह देवदा, कल्लू महाराज, पारसिंह राणा, रणवीरसिंह अमलियार एवं अन्य मौजूद थे।
BJP जनजाति मोर्चा में भी यही मुद्दा
इधर, सुरक्षा मंच की तर्ज पर भाजपा जनजाति मोर्चा भी प्रदेश स्तरीय कार्यसमिति की बैठक में इस मुद्दे को उठा चुका है। मोर्चा की ओर से भी दोहरे आरक्षण को खत्म कराने के लिए तेजी से प्रयास हो रहे हैं।
कंटेंट : पवन राठौड़ (कुशलगढ़)