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सूर्यग्रहण और विज्ञान - चंद्रमा का व्यास सूर्य से लगभग 400 गुना कम और चंद्रमा की सूर्य से पृथ्वी की दूरी से 400 गुना कम इसी से यह अद्भुत घटना संभव

Banswara
सूर्यग्रहण और विज्ञान  - चंद्रमा का व्यास सूर्य से लगभग 400 गुना कम और चंद्रमा की सूर्य से पृथ्वी की दूरी से 400 गुना कम इसी से यह अद्भुत घटना संभव
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सूर्यग्रहण

विज्ञान संचारक व शिक्षाविद्  अखिलेश कुमार श्रीवास्तव  ने 21 जून 2020 को होने वाले सूर्य ग्रहण के बारे में बताया कि जब सूर्य व पृथ्वी के मध्य चंद्रमा आ जाता हैं तथा उसके कारण सूर्य के प्रकाश में अवरोध आने से उसके द्वारा सूर्य का  पूर्ण प्रकाश  या आंशिक प्रकाश को रोक लिया जाता हैं ,जिससे चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर प्रसारित हो जाती हैं तो यह घटना  सूर्यग्रहण कहलाती हैं । इस अवधि में प्रकाश की तीव्रता तथा वातावरण के तापमान में कमी आ जाती हैं । चंद्रमा का व्यास सूर्य के व्यास  से लगभग 400 गुना  कम  हैं परंतु चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी भी सूर्य और पृथ्वी की दूरी से 400 गुना कम हैं जिससे दोनों का कोणीय आकार एक समान होने से सूर्यग्रहण की अद्भुत घटना संभव हैं । सर्वप्रथम 500 ईस्वी में भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने इसे वैज्ञानिक विधि से समझाया था।

 यह 4 प्रकार का होता हैं -1. पूर्ण सूर्यग्रहण ,2. वलयाकार या कंकड़ाकार अथवा कुंडलाकार सूर्य ग्रहण 3. आंशिक या खंड सूर्यग्रहण , 4. संकर सूर्यग्रहण

1. पूर्ण सूर्यग्रहण

            सूर्य तथा चंद्रमा का कोणीय व्यास समान होने से चंद्रमा, सूर्य को पूर्ण रूप से ढँक लेता हैं जिसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं और इस स्थिति में आकाश में अंधेरा छा जाता हैं दूसरे शब्दों में दिन में ही रात्रि जैसा आभास होता हैं ।जीव जन्तु तथा पक्षी हैरान हो जाते हैं कि आज सायं जल्दी हुई और रात्रि भी हो गई जिससे अभी तक भोजन भी सही प्रकार से नहीं कर पाये हैं और मजबूरी में वे अपने आश्रयस्थल व घोंसलों में लौटने लगते हैं ।तभी पुनः प्रकाश फैलने लगता हैं वे पुनः हक्के बक्के रह जाते हैं कि उनके द्वारा रात्रि विश्राम नहीं हो पाया और सुबह हो गई ।पूर्ण सूर्यग्रहण की अधिकतम 7 मिनट 30 सेकंड तक हो सकती हैं ,ऐसा  तब होता हैं जब कि चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत निकट होता हैं और सूर्य पृथ्वी से दूर होता हैं । भारत में अंतिम पूर्ण सूर्यग्रहण 22 जुलाई 2009 को दिखाई दिया था ।

2.  वलयाकार या कंकड़ाकार अथवा कुंडलाकार सूर्य ग्रहण

            जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी से दूर रहते हुए सूर्य व पृथ्वी के मध्य आ जाता हैं तो चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से नहीं ढ़क पाता हैं और सूर्य का बाहरी क्षेत्र प्रकाशित रहता हैं जिससे यह वलय या कंगन की प्रकार चमकता दिखाई देता हैं , वलयाकार या कंकड़ाकार सूर्य ग्रहण कहलाता हैं ।इसकी अधिकतम अवधि 12 मिनट 30 सेकंड हो सकती हैं जो कि दिसंबर माह के अंतिम दिनों या जनवरी के प्रारम्भिक दिनों में होती हैं ।

3. आंशिक या खंड सूर्यग्रहण

            जब सूर्य व पृथ्वी के मध्य चंद्रमा का कुछ भाग ही आ पाता हैं तो सूर्य का कुछ भाग तो ढ़क जाता हैं और सूर्य का शेष भाग चमकता रहता हैं तो सूर्य के उस भाग में लगा ग्रहण आंशिक या खंड सूर्यग्रहण कहलाता हैं ।

 

4. संकर सूर्यग्रहण

            जब कुछ स्थानों पर पूर्ण सूर्य ग्रहण तथा शेष अन्य स्थानों पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता हैं ,यह घटना बहुत कम होती हैं ।

 

वैज्ञानिक महत्व

उन्होंने सूर्य ग्रहण के वैज्ञानिक महत्व के बारे में बताया कि  दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता। क्योंकि ग्रहण ही वह समय होता है जब सूर्य तथा आसपास अन्तरिक्ष  में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होतीं हैं ,सूर्य के केंद्रीय भाग प्रकाशमंडल को चंद्रमा के द्वारा ढक लिये जाने से सूर्य के वर्णमण्डल को जाँचने का अल्प अवधि का सुअवसर प्राप्त होता हैं ,जिससे कि वैज्ञानिकों को नये नये तथ्यों पर कार्य करने का अवसर मिलता है। 1968 में लार्कयर नामक वैज्ञानिक नें सूर्य ग्रहण के अवसर पर की गई खोज के सहारे वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया था। आईन्स्टीन का यह प्रतिपादन भी सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही सही सिद्ध हो सका, जिसमें उन्होंने अन्य पिण्डों के गुरुत्वाकर्षण से प्रकाश के पडने की बात कही थी। चन्द्रग्रहण तो अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में देखा जा सकता है किन्तु सूर्यग्रहण अधिकतम 16 हजार किलोमीटर लम्बे और 100 से 267 किलोमीटर चौडे क्षेत्र में ही देखा जा सकता है। संसार के समस्त पदार्थों की संरचना सूर्य रश्मियों के माध्यम से ही संभव है। यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी रश्मियों के प्रभावों को समझ लिया जाए तो समस्त धरा पर आश्चर्यजनक परिणाम लाए जा सकते हैं। सूर्य की प्रत्येक रश्मि विशेष अणु का प्रतिनिधित्व करती है और जैसा कि स्पष्ट है, प्रत्येक पदार्थ किसी विशेष परमाणु से ही निर्मित होता है। अब यदि सूर्य की रश्मियों को पूंजीभूत कर एक ही विशेष बिन्दु पर केन्द्रित कर लिया जाए तो पदार्थ परिवर्तन की क्रिया भी संभव हो सकती है।

            विशेष : पृथ्वी पर 100 वर्ष में 240सूर्यग्रहण तथा  380 चंद्रग्रहण घटित होते हैं पर एक ही स्थान पर ऐसी खगोलीय घटना कम होती हैं । सूर्यग्रहण प्रत्येक अमावस्या को नहीं होता हैं क्योंकि चंद्रमा की कक्षा व पृथ्वी की कक्षा लगभग 5 डिग्री पर झुकी हुई हैं जिससे सूर्य तथा पृथ्वी की रेखा में चंद्रमा नहीं आ पाता हैं और उसकी परछाई पृथ्वी से बाहर अन्तरिक्ष में होती हैं। सूर्यग्रहण की छाया 1730 किमी प्रति घण्टा से चलती हैं चूंकि अगला सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं दिखेगा अत : 21 जून को होने वाले सूर्यग्रहण का सुरक्षित तरीके से आनंद उठावे तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करें ।

            राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय टांडी नानी ,बांसवाड़ा  के प्रधानाचार्य अखिलेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 21 जून 2020 को होने वाले सूर्यग्रहण को सुरक्षित रूप से देखने के लिए हमें किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए एवं किस विधि या उपकरण से सूर्य ग्रहण को देखना चाहिए।

            1.कभी  भी नंगी आँखों से सूर्य या सूर्यग्रहण देखने का अथवा जल में सूर्य के प्रतिबिंब को देखने का प्रयास नहीं करें तथा औरों को भी नहीं देखने देवे ।ऐसा करने से अर्थात नंगी आँखों से सूर्य या सूर्यग्रहण देखने से सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों जैसे पराबैंगनी किरणों आदि के नेत्र में प्रवेश कर जाने से घातक प्रभाव होंगे और व्यक्ति की नेत्र ज्योति कम हो सकती हैं अथवा सदैव के लिये  नेत्रज्योति जा सकती हैं ।

            2.सूर्यग्रहण देखने के लिये मानक सौर फ़िल्टर अथवा 14 या अधिक गहरे वेल्डिंग ग्लास (शीशे )का उपयोग करें ।सौर फिल्टर या वेल्डिंग ग्लास को हटाते समय नेत्रों की दिशा या तो पृथ्वी की ओर हो या सूर्य की ओर पीठ होनी चाहिये

            3.कभी भी फ्लॉपी डिस्क,सीडी,काले ग्लास,धूप के चश्मे ,सामान्य चश्मे ,दूरदर्शी या सूक्ष्मदर्शी से या एक्सरे फिल्म से ,पुराने या असुरक्षित सौर फ़िल्टर से अथवा घिसे हुए या क्षतिग्रस्त सौर फ़िल्टर से सूर्यग्रहण नहीं देखे ।ऐसा करने से अर्थात असुरक्षित रूप से सूर्य या सूर्यग्रहण देखने से सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों जैसे पराबैंगनी किरणों आदि के नेत्र में प्रवेश कर जाने से घातक प्रभाव होंगे और व्यक्ति की नेत्र ज्योति कम हो सकती हैं अथवा सदैव के लिये  नेत्रज्योति जा सकती हैं ।

            4.यदि उचित उपकरण उपलब्ध नहीं हैं तो पिन होल कैमरा की सहायता से उस उपकरण की दीवार पर बनने वाले सूर्य के प्रतिबिम्ब को देखते हुए सूर्यग्रहण देखें ।किसी भी स्थिति में सूर्य को नंगी आँखों से नही देखना चाहिए. 

            5.किसी शीशे (समतल दर्पण )पर वृत्ताकार छिद्र बनाकर या किसी गोलाकार गेंद या गोलाकार वस्तु पर दर्पण चिपकाकर उससे दीवार पर सूर्य का प्रतिबिंब प्रक्षेपित कर भी सूर्यग्रहण देखा जा सकता हैं ।किसी भी स्थिति में सूर्य को नंगी आँखों से नही देखना चाहिए. 

            6.टीवी पर या मोबाइल पर किसी चैनल प्रसारण के माध्यम से भी सुरक्षित रूप से सूर्यग्रहण देखा जा सकता हैं ।

          विशेष सावधानी : पूर्ण सूर्यग्रहण की स्थिति में   अर्थात् जब सूर्य चंद्रमा के पीछे बिल्कुल छिप जाता हैं उस समय नंगी आँखों से देखना हानिकारक नहीं होता हैं पर चंद्रमा के अल्प विस्थापन से सूर्य की हानिकारक किरणों के प्रवेश की संभावना बनी रहती हैं तथा अंधकार की स्थिति से अचानक रोशनी हो जाने से भी पुतली के सिकुड़ने में समय लगने के कारण भी नेत्र ज्योति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा अत : भूलकर भी नंगी आँखों से सूर्यग्रहण देखने का प्रयास नहीं करें और ऐसा करने से औरौं को भी रोकें।

    किसी शहर में सूर्यग्रहण कब प्रारम्भ होगा व ग्रहण की अधिकतम स्थिति कब होगी तथा ग्रहण की समाप्ति कब होगी ,यह जानकारी इंटरनेट की सहायता से उपलब्ध विभिन्न वैबसाइट से आसानी से ज्ञात की जा सकती हैं :जैसे कि- WWW.TIMEANDDATE.COM

           

21 जून 2020 को होने वाले सूर्यग्रहण को बांसवाड़ा  में 10:08:06 प्रात: से 01:38:33 दोपहर  के मध्य  कुल 3 घण्टे30 मिनट 27 सेकंड तक  देखा जा सकेगा यहाँ 77.07 प्रतिशत तक आंशिक सूर्यग्रहण देखा जा सकेगा तथा दोपहर 11:48:19 बजे  सूर्यग्रहण की अधिकतम स्थिति 77.07 प्रतिशत दिखाई देगी. 

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