16 की उम्र में पिता को खोया, दूसरों के खेतों में मजदूरी की, अब खुद उगा रहा लाखों की फसल

आनंदपुरी क्षेत्र के ओबला गांव के 16 वर्षीय मुकेश बामनिया के सिर से पिता का साया उठ गया था। किताबों के साथ हाथों में कुदाल भी आ गई थी, लेकिन अब यह आदिवासी युवक अब सिर्फ एक किसान नहीं रहा, बल्कि नवाचार और मेहनत की मिसाल बन चुका है। वर्ष 2016 में जब मुकेश के पिता का देहांत हुआ, तब वह 9वीं कक्षा का छात्र था। परिवार की जिम्मेदारी अचानक उसके कंधों पर आ गई थी। घर में पांच लोगों का जिम्मा और पिता की बीमारी के चलते दो लाख का कर्ज था।
आज मुकेश खुद का शेडनेट चला रहा है। मुकेश ने न केवल उसने दो लाख का कर्ज चुकाया, परिवार का भरण पोषण किया बल्कि पढ़ाई जारी रखी। मुकेश अब अपने शेडनेट में युवाओं को नौकरी भी दे रहा है। मुकेश ने बताया कि वो खेती करता आ रहा था, लेकिन शेडनेट में हुए शिमला मिर्च को बेचकर एक बार में ही सीधे 60 हजार मुनाफा हुआ। यह शेडनेट में पहली फसल थी। अभी खीरे की फसल चल रही है। मुकेश की आमदनी अब सालाना लाखों रुपए पहुंच गई है। मुकेश के पास साढ़े 5 बीघा जमीन है। मुकेश मक्का, सोयाबीन, गेहूं, रागी, तंबाकू, मिर्च, टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, भिंडी, ग्वार, गेंदा सहित अन्य फसल उगा रहा है।
मुकेश ने वर्ष 2017 से 2024 तक अलग-अलग पॉली हाउसों में काम किया। फिर खुद ने पॉली हाउस और शेडनेट लगा दिया। मुकेश ने बताया कि पारंपरिक खेती के साथ-साथ आधुनिक तरीकों को अपनाया। जैविक खेती, ड्रिप सिंचाई, सब्जियों की उन्नत किस्में और मौसम आधारित फसल चक्र को जानकार उसी हिसाब से फसलें की और पैदावार बढ़ाई। पारंपरिक खेती मक्का, सोयाबीन, गेहूं और सब्जियों की खेती पर फोकस करता है। पिता के जाने के बाद ऐसा भी समय भी आया जमीन बेचने की नौबत आ गई लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और 5.5 बीघा खेती पर कुछ नया करने का लक्ष्य साधा। मुकेश अब गांव और अन्य गांवों के युवाओं का प्रेरणा स्रोत बन चुका है।