2011 से 2020 के बीच 11 से बढ़कर 51 पहुंची पैंथरों की संख्या, हर साल 7-9 तक बढ़े
बांसवाड़ा| पर्यटन के क्षेत्र में धीरे-धीरे अपनी एक पहचान बनाने वाला राजस्थान के दक्षिणी छोर पर बसा बांसवाड़ा अब वन्यजीवों को लेकर भी एक विशेष पहचान बना रहा है। खासतौर पर पैंथर को बांसवाड़ा का वन क्षेत्र खास पसंद आ रहा है। यहां माही के अंचल में बसे वन क्षेत्रों में पीने का पर्याप्त पानी उपलब्ध है। यही बजह है कि पिछले एक दशक में पैंथर का कुनबा 4 गुना तक बढ़ा है। वर्ष 2011 की गणना में जिले में 11 पैंथर थे, जो 2020 में 51 तक पहुंच गए। वर्ष 2014 तक हर साल 2-3 पैंथर की बढ़ोतरी हुई, लेकिन 2015 से हर साल 7-9 तक पैंथर बढ़े। अब आए दिन जिले में पैंथर न सिर्फ बन क्षेत्र बल्कि आबादी क्षेत्रों में भी आसानी से देखे जा सकते हैं। बीते कुछ माह पहले तो शहर में बने सर्किट हाउस में पैंथर फैमिली कई दिनों तक देखी गई। वहीं, का शाम को भी दानपुर के बारी गाँव में एक घर में घुस आया था, जिसे ट्रेंक्यूलाइज कर शहर में लाया गया।
कम्युनिटी रिजर्व सेंटर के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजेंगे
जिला उपयन संरक्षक जिग्नेश शर्मा ने बताया कि बांसवाड़ा एक ऐसी जगह है जहां पैंथर के लायक आबोहवा है। यहां प्राकृतिक संसाधन भरपूर है। इसे हब तो अभी नहीं कह सकते, लेकिन संख्या जरूर बढ़ रही है। हम कम्युनिटी रिजर्व सेंटर के रूप में डेबलप करने के प्रस्ताव बनाने के लिए उच्चाधिकारियों से बात करेंगे! अभयारण्य इसलिए नहीं बन सकता क्योंकि यहां वन क्षेत्र फैला है, जिसमें घाटोल, गढ़ी, दानपुर, कुशलगढ़ अलग-अलग वन क्षेत्र हैं। अभयारण्य में एक पूरी रेंज होनी चाहिए। गढ़ी और घाटोल रेंज में कम्युनिटी रिजर्व सेंटर की संभावना हो सकती है।