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संत मावजी की तपोभूमि, 300 साल पहले की भविष्यवाणियां आज सच हो रही

संत मावजी की तपोभूमि, 300 साल पहले की भविष्यवाणियां आज सच हो रही
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संत मावजी महाराज वागड़ के महान संत थे। मावजी महाराज ने करीब 300 वर्ष पूर्व माही, सोम और जाखम नदी के संगम पर बेणेश्वर में तपस्या की थी। इनके द्वारा जनजाति समाज में सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए भी प्रयास किए। उनकी याद में हर वर्ष बेणेश्वर धाम पर माघ पूर्णिमा पर सबसे बड़ा आदिवासी मेला भरता है। 

संत मावजी महाराज का विक्रम संवत 1771 को माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी), बुधवार को साबला में दालम ऋषि के घर माता केसरबाई की कोख से जन्म हुआ। इसके बाद कठोर तपस्या उपरांत संवत 1784 में माघ शुक्ल ग्यारस को लीलावतार के रूप में संसार के सामने आए। मावजी महाराज ने साम्राज्यवाद के अंत, प्रजातंत्र की स्थापना, अछूतोद्धार, पाखंड और कलियुग के प्रभावों में वृद्धि, परिवेश, सामाजिक एवं सांसारिक परिवर्तनों पर स्पष्ट भविष्यवाणियां की हैं। 

आज सार्थक साबित हो रही मावजी महाराज की भविष्यवाणी : अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर ही मावजी महाराज ने कहा था कि ‘गऊं चोखा गणमा मले महाराज’ अर्थात गेहूं-चावल राशन से मिलेंगे। मावजी महाराज ने चौपड़े लिखे है। मावजी महाराज के पांच चौपड़ों में से चार इस समय सुरक्षित हैं। इनमें ‘मेघसागर’ हरि मंदिर साबला में है। इसमें गीता ज्ञान उपदेश, भौगोलिक परिवर्तनों की भविष्यवाणियां हैं। ‘साम सागर’ शेषपुर में है। इसमें शेषपुर एवं धोलागढ़ के पवित्र पहाड़ का वर्णन तथा दिव्य वाणियां हैं। तीसरा ‘प्रेमसागर’ डूंगरपुर जिले के ही पुंजपुर में है। इसमें धर्मोपदेश, भूगोल, इतिहास तथा भावी घटनाओं की प्रतीकात्मक जानकारी है, जबकि चौथा चौपड़ा ‘रतनसागर’ बांसवाड़ा शहर के त्रिपोलिया रोड स्थित विश्वकर्मा मंदिर में सुरक्षित है। इसमें रंगीन चित्र, रासलीला, कृष्णलीलाओं आदि का मनोहारी वर्णन सजीव हो उठा है। ‘अनंत सागर’ नामक पांचवां चौपड़ा मराठा आमंत्रण के समय बाजीराव पेशवा द्वारा ले जाया गया, जिसे बाद में अंग्रेज ले गए। बताया जाता है कि इस समय यह लंदन के किसी म्यूजियम में सुरक्षित है। ज्ञान-विज्ञान की जानकारियां समाहित हैं। 

- बहादुरमल जैन 

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