टपकती छत, पौथी गीली, सूखा ज्ञान
ये रुजिया राजकीय प्राथमिक स्कूल है। यहां 8 में से 4 कमरे जर्जर हैं। 263 बच्चों का नामांकन है। मानसून में यहां की छत टपकती है। बच्चों के बैठने के लिए दरियां तक नहीं हंै। गिली फर्श पर जहां सूखा कौना मिलता है, सभी बच्चे वहीं बैठ जाते हैं। ऐसा ही मंगलवार को भी हुआ। कक्षा-कक्षों में पानी टपकता रहा। इससे बच्चों को बैठाने में परेशानी रही। पानी के बीच बच्चे फर्श पर बिना दरी के बैठे नजर आए। उन्होंने अपने बैग व किताबें बचाने के लिए एक टेबल पर रख दिए। कक्षा में मौजूद एक भी बच्चे ने चप्पल तक नहीं पहनी थी। इधर, सरकार ने बारिश के दौरान बच्चों को जर्जर कक्ष में ना बैठाने का फरमान जारी अपना दायित्व पूरा मान लिया है, लेकिन कोरोना में बच्चे पहले ही स्कूल नहीं जा पाए, लर्निंग गेप पूरा करने के लिए सरकार ने कई तरीके शुरू कर दिए। अब मानसून में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया तो यह अंतर और बढ़ सकता है। सरकार को नामांकन से ज्यादा जोर भवन सुधार पर देना होगा।
चिड़ियावासा. रुजिया स्कूल में छत से टपक कर पानी जमा हो गया और कौने में फर्श पर बैठे बच्चे। किताबें और बैग भीग नहीं जाए, इसलिए सभी बच्चों ने एक टेबल पर रख दिए। इनसेट : स्कूल के मुख्य गेट के सामने जमा बारिश का पानी।
विकास के लिए भामाशाह जरूरी...ज्यादातर आबादी आर्थिक रूप से कमजोर कहां से लाएं भामाशाह, इंतजार करते-करते 5 साल हो गए, अब जनप्रतिनिधि आएं आगे
ग्रामीणों का कहना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को कैसे पढ़ने भेजें? एक तरफ सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं रुजिया स्कूल में पांच वर्षों से कमरों की हालत खराब है। सरकार भामाशाहों के माध्यम से स्कूल विकास की बात करती है। पूरा गांव आदिवासी बाहुल्य है। आर्थिक स्थिति खराब है। भामाशाह कहां से लाएं? बच्चों की शिक्षा के लिए अब जनप्रतिनिधियों को भामाशाह बनकर आगे आना होगा।