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आर्ट्स से पढ़ाई कर रहे और फेल हो चुके 35 छात्रों ने 40-40 हजार देकर 12वीं साइंस की फर्जी मार्कशीट बनवा जीएनएम में दाखिला लिया

Banswara
आर्ट्स से पढ़ाई कर रहे और फेल हो चुके 35 छात्रों ने 40-40 हजार देकर 12वीं साइंस की फर्जी मार्कशीट बनवा जीएनएम में दाखिला लिया
@HelloBanswara - Banswara -

राजकीय जीएनएम प्रशिक्षण केंद्र में दाखिले के लिए फर्जी मार्कशीट का जाल बड़े स्तर पर बुना गया था। जांच में अब तक 35 मार्कशीट फर्जी मिल चुकी हैं। प्रशिक्षण केंद्र में करीब 100 सीटें हैं। फर्जी डिग्री मामले में गिरफ्तार 15 आरोपियों में से 8 महिलाओं को गुरुवार को जमानत मिल गई। जबकि 7 पुरुष अभ्यर्थियों की जमानत अर्जी जिला अदालत ने खारिज कर दी। दैनिक भास्कर ने फर्जी मार्कशीट पर पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। 12वीं साइंस की फर्जी मार्कशीट के अाधार पर प्रवेश लेने वाली डूंगरपुर के पालवस्सी की सुमित्रा परमान ने तो साढ़े 3 साल का कोर्स पूरा करके जीएनएम की डिग्री भी हासिल कर ली। हैरानी यह है कि फर्जी डिग्री के आधार पर पढ़ाई कर रही उदयपुर के खेड़वाड़ा की मैना डामोर अभी फाइनल ईयर में हैं। दोनों फर्जी डिग्री माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल की है।

जानिए... कैसे बनी फर्जी मार्कशीट

चित्तौड़गढ़ के राजमल और पंडित ने 40-40 हजार रुपए लेकर बनाकर दी फर्जी मार्कशीट, खमेरा क्षेत्र के दलाल ने दोनों को बांसवाड़ा बुलाकर स्टूडेंट्स से मिलवाकर छात्रों को विश्वास में लिया था, पुलिस को आशंका-दूसरे छात्र की मार्कशीट स्केन कर दे दी सभी को
फर्जी मार्कशीट बनाने वाला गिरोह मेवाड़ क्षेत्र का है। पुलिस को पता चला कि चित्तौड़ का राजमल और पंडित नाम के शख्स ने खमेरा क्षेत्र के दलाल के जरिए यह सभी फर्जी मार्कशीट तैयार करवाई। फर्जी मार्कशीट बनवाने वाले सभी छात्र स्थानीय है और दलाल भी स्थानीय था। स्टूडेंट्स ने एक मार्कशीट के लिए दलाल को 40 हजार रुपए दिए। दलाल ने राजमल और पंडित को कितने रुपए दिए, पुलिस अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश सकी है। क्योंकि-दलाल की मौत हो चुकी है। सूत्र बताते हैं कि किसी छात्र की मार्कशीट लेकर स्कैन करके नाम और मार्क्स बदलकर यह मार्कशीट बनाई गई है।

पुलिस के सामने
2 बड़ी चुनौती

1. असली सरगना तक पहुंचना : फर्जी मार्कशीट बनाने वाले असली सरगना का कोई भी सबूत पुलिस अभी तक नहीं जुटा पाई है। क्योंकि-दलाल की मौत पहले ही हो चुकी है। जबकि चित्तौड़ के राजमल और पंडित की भी कोई जानकारी नहीं मिली है। दलाल ने इन दोनों को एक बार बांसवाड़ा बुलवाया था और छात्रों से मुलाकात भी करवाई थी। फर्जी मार्कशीट मामले में पकड़े गए 15 जीएनएम स्टूडेंट्स ने भी अभी तक कोई बड़ा राज नहीं खोला है।

2. मार्कशीट वेरिफाई करवाई नहीं जाती : पुलिस को आशंका है कि इस मामले में कई सरकारी कार्मिकों की भी मिलीभगत हो सकती है। क्योंकि-मार्कशीट के वेरीफिकेशन की कोशिश नहीं होती। तत्कालीन पीएमओ डॉ. नंदलाल चरपोटा ने मार्कशीट देखने के बाद इनके फर्जी होने की आशंका जता वेरीफिकेशन के लिए संबंधित बोर्ड को भेजा था। पुलिस को चिंता यह है कि स्टूडेंट्स कुछ बता नहीं रहे और गिरोह का नाम-पता अभी मिल नहीं पा रहा।



बड़ा सवाल
3 से 4 साल कैसे लग गए वेरीफिकेशन में?
सबसे गंभीर सवाल यह है कि मार्कशीट के वेरीफिकेशन में 3 से 4 साल कैसे लग गए। क्योंकि-फर्जी मार्कशीट का पहला मुकदमा साल 2019 में दर्ज हुआ। भास्कर पड़ताल में पता चला कि फर्जी मार्कशीट वाला जीएनएम का बैच साल 2016-17 और 2017-2018 का था। एडमिशन के 4 से 6 महीने बाद मार्कशीट संबंधित बोर्ड में वेरीफिकेशन के लिए भेजी जाती है। संबंधित बोर्ड में वेरीफिकेशन मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। इस मामले में भी ठीक ऐसा ही हुआ। कोर्स पूरा हो गया, लेकिन वेरीफिकेशन रिपोर्ट आने का सिलसिला अभी तक जारी है।

बोर्ड वेरीफिकेशन के लिए डाक से भेजने की बाध्यता
बाहरी राज्यों की मार्कशीट संबंधित बोर्ड को वेरीफिकेशन के लिए डाक से भेजने की बाध्यता है। किसी कार्मिक को वहां भेजने के लिए सरकार की अनुमति जरूरी है। 5 सालों में अन्य राज्यों की मार्कशीट से प्रवेश लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या कम ही है।
- अभिलाषा चौहान, प्रिंसिपल, जीएनएम ट्रेनिंग सेंटर बांसवाड़ा

सरकारी जांच.... तीन साल में जीएनएम ही कर ली, 4 साल वेरिफिकेशन में लग गएगंभीर यह है कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को डिग्री वेरिफाई करने में 4 साल लग गए। इसी तरह 33 छात्रों की फर्जी डिग्रियां जम्मू-कश्मीर और मध्यप्रदेश से बनवाई थी। इनके वेरीफिकेशन में भी 3 साल से ज्यादा लंबा वक्त लग गया। भास्कर पड़ताल में पता चला कि 40-40 हजार रुपए देकर फर्जी डिग्री लाने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स ने 12वीं की पढ़ाई ही नहीं की। इनमें कई छात्र तो ऐसे हैं, जिन्होंने आर्ट्स से पढ़ाई की। जीएनएम में प्रवेश लेने के लिए 12वीं साइंस बायो से पास होना जरूरी है। प्रदेशभर के जीएनएम सेंटरों में प्रवेश के लिए 300 से 400 छात्रों ने पैसे देकर फर्जी मार्कशीट खरीदी है। क्योंकि-अभी कई छात्रों की फर्जी मार्कशीट का खुलासा होना बाकी है। साल 2018 में बांसवाड़ा के एएनएम सेंटर में प्रवेश लेने वाले तीन स्टूडेंट्स की मार्कशीट बोर्ड आॅफ स्कूल इंटरमीडिएट वाराणसी-उत्तरप्रदेश की है और एक छात्र की मार्कशीट साल 2019 में बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट प्रयागराज-उत्तरप्रदेश की हैं, जिसकी जांच होनी बाकी है। सेंटर को अभी तक बोर्ड से वेरीफिकेशन रिपोर्ट नहीं मिली है।

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