2000 स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए 50 शिक्षकों की जिद...:शिक्षक बिना लाइफ जैकेट पहले नाव से करते हैं एक किमी का सफर, फिर 8 किमी बाइक से
यह कहानी ऐसे शिक्षकों की है, जो बच्चों की जिंदगी को ज्ञान से रोशन करने के लिए खुद मुश्किलों की नैया पर सवार होकर स्कूल पहुंचते हैं। आनंदपुरी, कुशलगढ़, सज्जनगढ़ और बागीदौरा के 50 टीचर्स ऐसे हैं, जो हर दिन अनास नदी की उफनती लहरों को पार कर दूसरे छोर पर स्थित डूंगरपुर जिले के स्कूलों में पढ़ाने के लिए जाते हैं। यह बिल्कुल भी आसान नहीं है। इन शिक्षकों की कहानी आप तक पहुंचाने के लिए दैनिक भास्कर टीम ने इन शिक्षकों के साथ नाव पर सफर किया।
सुबह 4 बजे से परिवार की सेवा में जुटते हैं, 6 बजे से नाव का इंतजार
सुबह के 6 बजे हैं। नाव से स्कूल जाने के लिए आनंदपुरी में अनास नदी के किनारे बसे वंडा डोकर गांव में 50 शिक्षक इकट्ठा होते हैं। इनमें 4 महिला शिक्षक शामिल हैं। यहां से शुरू हुआ है मुश्किल सफर। क्योंकि-शिक्षक पहले नाव पर अपनी बाइक चढ़ाते हैं, फिर खुद चढ़ते हैं। वो भी बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के। इनके पास न तो लाइफ जैकेट और न ही टायर ट्यूब। पानी की गहराई व बदलते मौसम में नाव कब पलट जाए, यह कोई नहीं जानता। नाव से दूसरे छोरे पहुंचने का सफर करीब एक किलोमीटर का है।
शिक्षक भरतलाल डोडिय़ार बताते हैं- नाव से जाने में काफी खतरा है, लेकिन हमारे लिए हमारे छात्र बेहद महत्वपूर्ण है। वे बताते हैं कि कई बार नदी में पानी कम होता है और कीचड़ ज्यादा होता है तो बाइक अकसर फंस जाती है। कीचड़ से बाहर निकालने में कपड़े तक गंदे हो जाते हैं। नाव से उतरने के बाद स्कूल पहुंचने के लिए 5 से 8 किमी तक बाइक चलानी पड़ती है। 50 शिक्षकों में ज्यादातर वो हैं, जो 5 से 20 सालों से इन्हीं मुश्किलों के साथ स्कूल जा रहे हैं।
इन शिक्षकों को सलाम
शिक्षक नरेंद्र चंद्र पारगी, अरविंद डामोर, रतीलाल पारगी, दिनेशचंद्र, हिम्मतलाल, धनपाल कलासुवा, महेशचंद्र पारगी, बालेश्वर गरासिया, भरतलाल डाेडियार, कांतिलाल चनना, इंद्रसिंह डामोर, सोहनलाल, रविंद्र बरजोड़, शंकरलाल, रमनलाल, महेश, मगनलाल, जयकृष्ण पटेल, प्रभुलाल आदि शिक्षक हर दिन नाव से स्कूल पहुंचते हैं।
सबसे ज्यादा मानसून में परेशानी: सविता खांट
डाेकर गांव की सविता खांट गलियाकोट ब्लाॅक के गडिया कसारिया उप्रावि में पढ़ाती हैं। 2008 में पाेस्टिंग हुई थी। सुबह 4 बजे उठती हैं और घर के सभी काम करने के बाद सुबह 6.30 बजे नदी किनारे पहुंच जाती हैं। फिर नाव के लिए भी 1 घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। सबसे अधिक परेशानी मानसून में हाेती है। वे बताती हैं कि स्कूटी नदी किनारे अक्सर स्लीप हाे जाती है। नदी में पानी ज्यादा होता है तो डर रहता है कि नाव पलट जाएगी।
स्कूल जाने में काफी चुनौती: रमणलाल
रमणलाल पारगी उमावि जसेला-डूंगरपुर में पढ़ाते हैं। घर से स्कूल सड़क मार्ग से 45 किमी दूर है और नदी के रास्ते से 12 किमी। वे कहते हैं-रास्ता काफी कठिन है और मौत का डर हमेशा रहता है। नाव के लिए कई-कई घंटों तक इंतजार करना पड़ता है। बचाव का कोई संसाधन नहीं होता है। बस खुशी इस बात है कि हम छात्रों को कामयाब बनाने में योगदान दे पा रहे हैं। स्कूल पहुंचकर जब उन्हें पढ़ाते हैं तो रास्ते के सभी दर्द दूर हो जाते हैं।