पोषाहार का दूध अगस्त में खत्म, सितंबर में आवंटित पर योजना का नाम बदला, पैकेजिंग बदल रहे, बच्चों को डेढ़ माह से इंतजार
बांसवाड़ा प्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही मिड डे मील के तहत सरकारी स्कूलों में दूध पिलाने की सरकारी योजना का नाम भी बदल दिया गया। खास बात यह है कि इस बदलाव के चक्कर में पिछले करीब डेढ़ माह से बच्चों के मुंह तक दूध ही नहीं पहुंच पाया है। दरअसल, पहले इस योजना का नाम बाल गोपाल योजना था। मौजूदा सरकार ने 4 सितंबर को इसका नाम पन्नाधाय बाल गोपाल योजना किया है।
प्रदेशभर के लगभग 70 फीसदी स्कूलों में 15 अगस्त तक दूध पाउडर खत्म हो गया। तब स्कूल प्रबंधकों ने एक-दूसरे स्कूल से एडजस्ट कर काम चलाया। अब 6 सितंबर को मिड डे मील आयुक्त ने 65 लाख 39 हजार 585 किलो दूध पाउडर का आवंटन किया है। यह दूध फरवरी 2025 तक के लिए है, लेकिन योजना का नाम बदलने से इसकी पैकेजिंग भी बदली जानी है। इसी में समय लग रहा है और दूध अभी तक स्कूलों तक नहीं पहुंचा है। दूध पाउडर सप्लाई की जिम्मेदारी आरसीडीएफ (राजस्थान कॉ आपरेटिव डेयरी फैडरेशन) की है। वह इस समय सप्लाई की जगह पर नए नाम वाली पैकेजिंग प्रक्रिया में लगा हुआ है। अभी तक पैकेजिंग प्रिंटिंग नहीं हो पाई है और अनुमोदन भी अधूरा है। ऐसे में अगले 15 दिन और दूध की सप्लाई मिलने की संभावना नहीं है। प्रदेश के 67 हजार 94 स्कूलों में यह योजना संचालित है। इसमें 6 करोड़ 8 लाख 56 हजार बच्चों को दूध सप्लाई किया जाता है। सरकारी स्कूलों में इस योजना के तहत कक्षा एक से 8वीं तक के बच्चों को दूध पिलाया जाता है।
कक्षा 1 से 5वीं तक के बच्चों के लिए 15 ग्राम दूध के पाउडर से 150 मिली ग्राम दूध 8.4 ग्राम चीनी मिलाकर और कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को 20 ग्राम दूध पाउडर से 200 मिली ग्राम दूध बनाकर और उसमें 10 ग्राम चीनी मिलाकर पिलाना होता है। कई स्कूलों में दूध खत्म होने पर शुरुआत में स्कूल प्रबंधकों ने एक दूसरे स्कूल से एडजस्ट किया। धीरे-धीरे यह भी खत्म हो गया, लेकिन अब तक सप्लाई भी नहीं मिली है।
स्कूलों को दूध सप्लाई करने वाली संस्था आरसीडीएफ (राजस्थान कॉ आपरेटिव डेयरी फैडरेशन) का दावा है कि सरकार ने दूध योजना का नाम पन्नाधाय दूग्ध योजना किया है, इस कारण पैकेजिंग में बदलाव हो रहा है। डिब्बों व पैकेट पर नाम बदला जा रहा है, इस कारण सप्लाई में देरी हो रही है। आरसीडीएफ के एमडी प्रीतेश जोशी का कहना है कि अभी सप्ताह भर का समय लग सकता है। बड़े लेवल पर पैकेजिंग की प्रिंटिंग करनी होती है। ऐसे में संभावना है कि आगामी 15 दिनों तक और बच्चों को दूध नहीं मिलेगा।