हमारी गौरवशाली विरासत है राजस्थान का जलियावाला बाग
असल में यह नरसंहार इतिहास से परे रह गया। लंबे अंतराल बाद शोधों से तथ्यात्मक सत्य उजागर हुआ। वास्तव में यह अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों की खिलाफत थी, जो गोविंद गुरु के नेतृत्व में आदिवासियों ने शुरू की।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस क्षेत्र में भगत आंदोलन चलाने वाले गोविंद गुरु का उद्देश्य आदिवासियों को मादक पदार्थों से दूर करना और शाकाहार की तरफ बढ़ाना था। बाद में आदिवासी गुरु की प्रेरणा से अंग्रेजों और बांसवाड़ा, संतरामपुर, डूंगरपुर और कुशलगढ़ के रजवाड़ों द्वारा कराई जाने वाली बंधुआ मजदूरी के खिलाफ उठ खड़े हुए।
उस नरसंहार में मारे गए लोगों के वंशज आज भी विभिन्न घटनाएं गिनवाते हैं। उनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी के लोगों में अब संस्मरण ही शेष हैं, जो उनके पुरखों ने सुनाए थे। इसके बावजूद कई प्रमाणों को इतिहासकारों ने स्वीकार किया है। गुजरात यूनिवरसिटी के इतिहास के व्याख्याता अरुण वाघेला के शोध के अनुसार गोविंद गुरु ने अपना आंदोलन 1890 के दशक में शुरू किया। अग्नि देवता को प्रतीक मानकर उनके अनुयायी पूजा के साथ धूणी पर हवन करते थे। गुरु ने 1903 में मानगढ़ टेकरी पर धूणी जमाई।
उनके आह्वान पर आदिवासियों ने 1910 तक अंग्रेजों के सामने ब्रिटिश और रजवाड़ों की बंधुआ मजदूरी, भारी लगान और गुरु के अनुयायियों के उत्पीड़न को लेकर 33 मांगें रखीं। अंग्रेजों और रजवाड़ों ने मांगें मानने से इनकार कर दिया और भगत आंदोलन तोड़ने में जुट गए। इससे संघर्ष शुरू हुआ।