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100 फीट गहरी अनास नदी की जानलेवा लहरों से लड़कर रोज नाव में बैठकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं 50 शिक्षक

Banswara
100 फीट गहरी अनास नदी की जानलेवा लहरों से लड़कर रोज नाव में बैठकर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं 50 शिक्षक
@HelloBanswara - Banswara -

बांसवाड़ा जिले के आनंदपुरी उपखंड क्षेत्र की डोकर पंचायत का वड़ागांव। यहां रोज सुबह 6 बजे सुबह कडाणा बैक वाटर से 50 शिक्षक बाइक को नाव में रखकर डूंगरपुर जिले के स्कूलों में पढ़ाने जाते हैं। इनमें तीन महिला शिक्षक भी हैं। ये शिक्षक बांसवाड़ा जिले के आनंदपुरी, कुशलगढ़, सज्जनगढ़, गांगड़तलाई और बागीदौरा गांवों के हैं। ठीक इसी तरह से 20 शिक्षक डूंगरपुर जिले के गांवों से बांसवाड़ा जिले की स्कूलों में नाव में बैठकर पहुंचते हैं। नाव में बाइक इसलिए साथ ले जाते हैं क्योंकि नाव से उतरने के बाद इनको दूर के गांवों की स्कूल में जाना होता है और यहां पर परिवहन के कोई साधन नहीं है। सर्दी, गर्मी हो या बारिश। ये शिक्षक रोज ऐसे ही सफर करते हैं। नाव का सफर करीब 1 किलोमीटर का है और एक साइड का किराया 50 रुपए हैं। गांगड़तलाई गांव के बालेश्वर गरासिया: वर्ष 2011 से डूंगरपुर के गलियाकोट ब्लॉक के बड़िया कसारिया स्कूल में पढ़ा रहे हैं। वे बताते हैं कि घर से स्कूल कहने को तो 45 किमी ही दूर है, लेकिन रास्ता बेहद खराब है। मौत का डर हमेशा रहता है। कई-कई घंटों तक नाव का इंतजार करना पड़ता है। बचाव का कोई संसाधन नहीं है। लेकिन खुशी इस बात की है कि हमारी वजह से कुछ बच्चे कामयाब हो रहे हैं।

जब स्कूल पहुंच कर उन बच्चों को पढ़ाते हैं तो सारे दर्द दूर हो जाते हैं। { तेजपुरा गांव के हिम्मत पारगी: 2013 से डूंगरपुर जिले के गलियाकोट ब्लॉक के नैनसावा स्कूल में पढ़ा रहे हैं। सर्दी हो या बारिश रोज सुबह 5 बजे उठना पड़ता है और सुबह 6:30 बजे तक नदी के किनारे पहुंच जाते हैं। वे बताते हैं कि कभी तो नाव मिल जाती है और कभी आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा समस्या मानसून सीजन में होती है। बाइक नदी किनारे पर फिसलती है। नदी का जलस्तर भी काफी बढ़ जाता है। टामटिया गांव के धनपाल कलासुआ: वर्ष 2006 से डूंगरपुर जिले के चीखली ब्लॉक के साकरोद स्कूल में पढ़ा रहे हैं।

वे बताते हैं कि कई बार नदी में पानी कम हो जाता है। कीचड़ ज्यादा रहता है। ऐसी स्थिति में नाव नहीं चलती है। कीचड़ होने से बाइक चलाना भी मुश्किल हो जाता है। सफर के दौरान कपड़े भी गंदे हो जाते हैं। नाव से उतरने के बाद भी स्कूल करीब 8 किलोमीटर दूर है। करीब 30 शिक्षकों में कुछ 5 तो कुछ 20 साल से रोज इसी तरह सफर कर रहे हैं।

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