ऐसा मंदिर जहां 3 रूप में होते हैं दर्शन:श्रीयंत्र और कमल के आसन पर विराजित है मां त्रिपुरा सुंदरी

बांसवाड़ा जिला अपने सुंदरता के लिए मशहूर है। इसके साथ ही यहां सैकड़ों साल प्राचीन कई मंदिर हैं, जिससे यह धार्मिक आस्था का भी केंद्र बनता जा रहा है। यहीं एक सिद्ध माता त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर है, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि मंदिर में मांगी हर मनोकामना देवी पूर्ण करती हैं, यही वजह है कि आमजन से लेकर नेता तक मां के दरबार में पहुंचकर हाजरी लगाते हैं।
यहां अठारह भुजाओं वाली है मूर्ति
बांसवाड़ा जिले से करीब 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वतामाला के बीच माता त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर है। मुख्य मंदिर के द्वार के किवाड़ चांदी के बने हैं। मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश यानी अठारह भुजाओं वाली है। मूर्ति में माता दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिकृतियां अंकित हैं। मां सिंह, मयूर और कमल आसन पर विराजमान हैं।
तीन रूपों में देती हैं दर्शन
भक्तों का कहना है कि प्रात:कालीन बेला में कुमारिका, मध्यान्ह में यौवना और सायंकालीन वेला में प्रौढ़ रूप में मां के दर्शन होती है। इसी कारण माता को त्रिपुरा सुंदरी कहा जाता है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे। शक्तिपुरी, शिवपुरी और विष्णु पुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुंदरी पड़ा।
कनिष्क काल से प्रसिद्ध है मंदिर
वर्तमान में इस मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग है। मान्यता है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्व-काल से ही प्रतिष्ठित रहा होगा। वहीं कुछ विद्वान देवी मां की शक्तिपीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी से पूर्व मानते हैं। उनका कहना है कि पहले यहां ‘गढ़पोली’ नामक एक ऐतिहासिक नगर था। ‘गढपोली’ का अर्थ है-दुर्गापुर। ऐसा माना जाता है कि गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे।
-पहली मां की प्रतिमा जो वामांग सिंह पर विराजित है
मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर दुनिया का इकलौता सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां वामांगसिंह यानी उत्तर मुख सिंह पर विराजित हैं। बाकी मंदिरों में मां दक्षिण मुखी सिंह की सवारी करती हुई नजर आती हैं। इसके पीछे एक खास वजह है कि वामांग सिंह पर मां त्रिपुरा विराजित हाेने पर उन्हें महालक्ष्मी के रूप में और सिंह काे कुबेर रूप में साक्षात विद्यमान माना जाता है। इस कारण से तंत्र पीठ के रूप में हाेने से मां का स्वरूप पूर्ण विग्रह के रूप में देखने पर तंत्रोक्त स्वरूप में है। मां के इस स्वरूप में योगिनी तंत्र और श्री विद्या की योगिनी मंडल भी विद्यमान है। नवग्रहों, श्रीयंत्र और उत्तर मुख किए सिंह पर विराजित मां के साक्षात स्वरूप का दर्शन कराने वाली यह मूर्ति दुर्लभ और दुनिया का इकलौता शक्ति पीठ है, जाे श्रद्धालु कामना लेकर यहां आता है। मां उसकी मनोकामना पूर्ण करती हैं।

यहां शंकराचार्य पद्धति से होती है श्री आराधना
यहां शंकराचार्य पद्धति से मां की श्री आराधना होती है। नवरात्र पर मंदिर में मां भगवती की स्थापना के साथ मंे ही प्रतिदिन नव दुर्गा के रूप में विराजित देवियों का पूजन होता है। एक-एक देवी की आराधना के साथ नित्य श्री चक्र आराधना, श्री यंत्र पूजा विधान, नित्य मंत्र जाप, षोडश पंचदशी मंत्रों के जाप, दुर्गाशप्तसती पाठ और सहस्त्र अर्चन, तिथि अनुसार खड़ग माला पाठ और नानावेद उपचारों के साथ मां काे अर्पण करते हैं। यहां अश्विन शुक्ल और चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन मेला भरता है। मंदिर प्रागंण में रोजाना गरबा रास हाेता है, जिसमें बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और गुजरात से भी श्रद्धालु गरबा खेलने आते हैं। होल पर जिले का सबसे बड़ा गैर नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।

2224 शिलाएं, 18 भुजाओं वाली मां की हर भुजा में है आयुध
श्रीयंत्र के आसन पर विराजित मां त्रिपुरा सुंदरी की मां लक्ष्मी के स्वरूप में पूजा होती है। 18 भुजाओं वाली महालक्ष्मी रूप में मां त्रिपुरा सुंदरी की हर भुजा में अक्षमाला, कमल, बाण, खड़ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शंख, घंटा, पाश, शक्ति, दंड, चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र और कमंडल जैसे आयुध (हथियार) भी हैं। देश में यह मंदिर अनूठा है, जहां प्रत्येक शिला (पत्थर) को हवन-पूजन कर प्रतिष्ठित किया है। मंदिर में 2224 शिलाएं हैं। मंदिर में त्रिपुरा सुंदरी की मूल प्रतिमा के चारों ओर कुल 8 प्रतिमाएं, 5 स्वर्ण शिखर, 1 ध्वजदंड और शुकनाथ की प्रतिष्ठित प्रतिमा है। देवी के आसन के नीचे चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र बना है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व भी है। इस कारण दिपावली पर देवी की विशेष पूजा होती है।

मूर्ति की खासियत:
जिला मुख्यालय से मंदिर 19 किमी दूर है। इसके निर्माण का काेई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन 1540 विक्रम संवत का एक शिलालेख इस क्षेत्र में मिला है, इससे यह अनुमान है कि यह मंदिरकनिष्ककाल के पूर्व का है। इसका मतलब मूल मंदिर का निर्माण 2 हजार साल से भी पूर्व हाे चुका हाेगा। बाद में पंचाल समाज ने दाे बार इसका पुनरुद्धार कराया।श्रीयंत्र : मां भगवती संपूर्ण विग्रह यानि श्रीयंत्र पर विराजित हैं। इसलिए यह यंत्र, मंत्र और तंत्र की अधिष्ठात्री देवी व तंत्र पीठ के रूप में विराजित हैं। इसलिए श्रीयंत्र ही त्रिपुरा सुंदरी है और मां त्रिपुरा ही श्रीयंत्र।नवदुर्गा : मूर्ति के चाराें आभामंडल में नव अश्वों पर सवार नवदुर्गा विराजित है।
18 भुजाएं : वैकृति रहस्य के 11वें श्लोक के अनुसार उसी क्रम में मां के प्रत्येक हाथ में आयुध 9 दाहिनी और 9 बाई तरफ।
