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Tripura Sundari

Tripura Sundari
@HelloBanswara - -

Surrounded By the Aravali Hills of the southern Rajasthan and amidst the rregion full of rivers, ponds and nature's beautiful velly, is the place called Banswara. The Vagad region of Rajasthan has been a religious placesince very ancient times. Banswara sis refered to as mini kasha. Here there are innumerable famous ancient temple of various gods ad goddesses wich, for their architetecture, sculpture and maginificence have acquired fame not only in the entire state but all over india.  new

 

लोढ़ी काशी के नाम से विख्यात राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में श्रद्धालुओं की आस्था का धाम त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर है। बांसवाड़ा जिले में डूंगरपुर मार्ग पर तलवाड़ा पंचायत समिति मुख्यालय के समीप उमराई गांव में स्थित शक्तिपीठ त्रिपुरा सुन्दरी देश. प्रदेश के श्रद्धालुओं का आस्थाधाम हैं।

 

इस शक्तिपीठ के प्रति न सिर्फ स्थानीय श्रद्धालुओं अपितु कई विशिष्ट अथिति जनों की आस्थाएं जुड़ी हुई है। राजस्थानए मध्यप्रदेश और गुजरात से कई श्रद्धालु और राजनीतिज्ञों की श्रद्धा के केन्द्र होने के कारण देवी त्रिपुरा के दरबार में देवीभक्तों का सैलाब उमड़ता ही रहता है।  

 

इस प्राचीन मंदिर में देवी की सिंह पर सवार अष्टादश भुजा वाली विशाल प्रतिमा है जो श्यामवर्णा विशाल पाषाण प्रतिमा का ओज कुछ खास ही है जो श्रद्धालुओं को दूर से ही सम्मोहित करता प्रतीत होता है।

 

वागड में मां त्रिपुरा सुन्दरी को तरतई मां के नाम से भी जाना जाता है। मां का नाम तरतई इसलीये रखा क्यूकी तुरंत फल देती है।  मां भगवती का स्वरूप महालक्ष्मी श्री ललितायें शोडसी के रूप में विख्यात है। इसकी 18 भुजाए है। सिंहवामांग है एकमल के आसन पर श्रीयंत्र पर वीराजीत है। प्रतिमा के चारों और अश्वारूडा देवी का विग्रह है। तत्रएमंत्र और यंत्र की अधिस्टात्री देवी के रूप में यहा श्री की विद्या की साधना शकराचार्य पध्दती से होती है। साल में दो नवरात्री पर यहा भक्तो की भारी भीड लगी रहती है। चेत्र व शारदीय नवरात्री में विशेष पुजा अर्चना होती है। अष्टमी पर यहा मेला लगता है। सुबह मंगला आरती के साथ रात्री में पुजन नवरात्री में यहा का माहोल ही अलग सा हो जाता है।

 

मन्दिर में सुबह सात बजे और शाम को सात बजे आरती होती है। जिसमें सेकडो भक्त पहुँच कर आरती का लाभ उठाते है। वही माँ को बाल भोग लगाया जाता हे जिसमे राजगिरे का हलवा चडाया जाता है। मां त्रिपुरा के तीन रूप है सुबह बाल रूप में रहती है, मध्य में शोडसी का रूप व सायं प्रोड के रूप में रहती है।

 

नवग्रह के स्वरूप में मां को वस्त्र धारण कराये जाते हैै।

 

मां त्रिपुरा के सप्ताह में रोज अलग.अलग रूप रहते है।

 

सोमवार को सफेद वस्त्र, मंगलवार को लाल वस्त्र, बुधवार को हरा, गुरूवार को पिला, शुक्रवार केसरिया, शनिवार को आसमानी व रविवार को पंचरंगी वस्त्र धारण कराये जाते है।

 

इस मंदिर की गिनती प्राचीन शक्तिपीठ में होती है। देवी के चरण¨के नीचे श्री यंत्र अंकित होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है।

 

मंदिर में चैत्र व आश्विन नवरात्रि पर विविध धार्मिक कार्यक्रम होते है और इस समय धाम पर देवीभक्तों का सैलाब उमड़ता है। 

 

 

इस मंन्दिर में राजनिति यज्ञ भी होता हे जहा पर राजनेता यज्ञ कराते है। ओर राजनिति में परचम पहराते है। साल भर में आते है कई नेता माँ त्रिपुरा सुन्दरी के दर्शन के लिए देश ही नही विदेश से भी भक्त आते है।  मां के दर्शन करने के लिए।

 

यहा पर देश के कई दिगज्ज नैता भी धोक लगा चुके है। पुर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, प्रदेष कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, पुर्व मुख्यमंत्री अषोक गहलोत, सीपी जोशी, सचिन पाइलट वही कई राज्यों के जज, बडे-बडे राजनेता और विदवान, मंत्री व सांसद व विधायक यहा पर आकर माँ के दर्शन प्राप्त किया है ।

 

इतिहास 

मंदिर में विक्रम संवत 1540 का एक शिलालेख है। अनुमान यह है कि यह मंदिर सम्राट कनिष्क के काल से पूर्व का है। 

 

माना जाता है कि यहां आसपास गढ़प ली नामक महानगर था। जिसे दुर्गापुर कहते थे। इस नगर का शासक नृसिंह शाह था। इसी लेख में त्रिपुरारी शब्द का उल्लेख है। यह भी बताया जाता है कि इस मंदिर के आसपास तीन दुर्ग थे, जिनके नाम शीतापुरी, शिवपुरी व विष्णुपुरी था। इन तीन दुर्ग के मध्य में मंदिर होने से इसे त्रिपुरा कहा जाने लगा।

 

 

इस शक्तिपीठ के प्रति पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हरिदेव जोशी की विशेष आस्थाएं थी जिसके कारण पूर्व में इसका जीर्णोद्धार किया गया था। इसके बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में इसका विस्तार किया गया । 

 

2016 इन दिनों इस देवी धाम का जीर्णोद्धार कार्य चल रहा रहा है। वर्तमान में मंदिर के गर्भगृह को आकर्षक व भव्य स्वरूप प्रदान किया जा रहा है।  मां के  मन्दिर के नीव से लेकर  शीला तक सभी का पुजा विधान कर शतचण्डी हवन कर स्थापित किया जा रहा है। अभी तक लगभग एक हजार शिलाए लग चुकि है। मन्दिर के उत्तर, पुर्व व दक्षिण द्वार बने है। जिसके ऊपर देवीयों का विग्रह बना हुआ है। यह कार्य अब तक देश के किसी भी मन्दिर में नही हुआ है। मन्दिर का मुख्यद्वार पर बनी प्रतिमाए लगी है जो भक्तो को आकर्षित करती है। परिसर में हवन कुन्ड व स्वर्ण क्रिती स्तंभ लगा हुआ है। 

 

मन्दिर में धर्मशाला बनी हुई है जिससे बाहर से आए भक्तों को ठहरने में दिक्कत ना हो ।

   

 

मां त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति पीठ मन्दिर अपने आप में अपनी एक अलग ही धार्मिक महत्ता रखता है। कहा जाता है की मां सती के शरीर के 52 टुकडो में से मां का ह्रदय  इस स्थल पर गिरा था । पुरे  विश्व के शक्ति पीठों में यह भी एक शक्ति पीठ है। मां की आंखों का तेज से भक्तों की हर मनोकामना पुरी हो जाती है।

 

 

 

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