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Mission Church

Mission Church
@HelloBanswara - -
Missionary Teacher and Evangelist in Neemuch 1899-1914 And In Banswara 1914-1934, Through whom many learned to know and love christ, this tablet is placed by her fellow-missionaries and the baptismal font by her girls to whom she was true mother. 

Departed this life in Canada Jan 31st, 1937 
 "THE RIGHTEOUS SHALL BE HAD IN EVERLASTING REMEMBRANCE"

 मिशन कौंसिल द्वारा नियुक्ति मिलने के उपरांत डॉ काक अपनी धर्म पत्नि के साथ बांसवाडा शहर में मार्च 2014 में आये. उनके साथ डॉ मारग्रेट और एक भारतीय डॉ. श्री मती विन्सेंट आई थी. ये जावरा, पिपलोद होते हुवे आये थे. 

सर्वप्रथम उन्होंने अपना डेरा सूरजपोल दरवाजे के बाहर एक बाग में डाला. वे वहां पर प्रति संध्या भजन गाते, उपदेश देते और प्रार्थना करते थे और मैजिक लेन्टर्न से तस्वीरे दिखाकर प्रचार करते थे और दिन में शहर जाकर लोगो से मिलते थे. कुछ समय पश्च्यात महारावल ने उन्हें डाक बंगले में शरण दी और कर्मचारियों के कमरों में अन्य को. महारावल ने मिशन केंद्र स्थापित करने के लिए मार्च में 16 एकड़ जमीन दान में दी, और सारे कागजात डॉ. काक को सोंप दिए और मिशन ने महारावल को धन्यवाद् प्रस्ताव पास कर एक पत्र कौंसिल की ओर से भेजना पारित किया. 

जब भूमि प्राप्त हो गई तब मिशन के वित् समिति ने भवन निर्माण के लिए तीन हज़ार डॉलर स्वीकृत किये. मिशन के लिए स्वीकृत भूमि पर डॉ. काक ने तम्बू लगाकर कार्य को प्रारंभ किया. सर्वप्रथम पादरी काक के लिए बंगला बना. अन्य निवास स्थान बनाने तक वे तम्बू में रहे. 1916 तक सभी निवास स्थान बन गए.

1916 में महाराज कुवर पृथ्वीसिंह जी राजगद्दी पर बेठे और बांसवाडा के महारावल बने. उनके पिता महाराज शम्भू सिंह जी की मृत्यु 1914 में हो गई थी.

प्रथम प्रभु भोज 10 सितम्बर 1916 में ही दिया गया. बांसवाडा में कार्यकर्ता बढे. 1916 में मिस केम्पबेल अपने साथ नीमच के स्कूल से कुछ कार्यकर्ती लेकर आई.

पहला फल मिशन को 1917 में सांगव के एक भील के बपतिस्मा लेने पर मिला. उस समय एक केंद्र बनाने के लिए नीव का पत्थर लगा दिया परन्तु महारावल पृथ्वीसिंह जी बांसवाडा में घर बनाने के लिए कहा, और फिर भूमि भी प्रदान की गई. प्रचार का कार्य घाटोल और आमखुंट तक पहुँच चूका था.

स्कूल भवन 1919 में मिशन स्कूल बना और रविवार की आराधना इसी स्कूल में होने लगी. 

कलीसिया का गठन 1920 में मिस मेरी लेडिंगम आई. 1920 में प्रथम नर्स मिस गुरुशी आई. मुन्नालाल और कशी बाई भी उसी वर्ष आये. मिस रसल 1921 में आई. 

टापरी दवाखाना डॉ बी.चोन आलिवर द्वारा तम्बू में आरम्भ किया. तेजपुर महाराज ने भी एक कच्चा वार्ड बनाकर सहयोग किया.

नर्सिंग स्कूल और आराधनालय 194 में School Of Nursing आरम्भ हुवा. 194 में ही कलीसिया ने आराधनालय बनाने का कार्य आरम्भ किया. डॉ. आर्मस्ट्राग जो उन वर्षो में प्रेस्बितरियन चर्च इन कैनेडा (The Presbyterian Church in Canada) के जनरल सेक्रेटरी थे. भारत आये और उन्होंने 7 फरवरी 194 को आराधनालय की नीव राखी. जो आज भी अंकित है. उसी दिन स्कूल ऑफ़ नर्सिंग का उद्घाटन भी उनके द्वारा किया गया.
October, 1923 को वो दिन था जिस दिन आराधनालय का उद्घाटन हो चूका था. यह कलीसिया के त्याग और परिश्रम का फल था. 
उस समय गावों में मसीही हो गए थे. जो आराधनालय के उद्घाटन समारोह में सम्मिलित होने के लिए बेलगाडियों और घोड़ो पर आये थे.


मसीही कार्य - 1914 में Canada Presbyterian Church मिशन के आने से पूर्व चार मसीही बपतिस्मा प्राप्त बांसवाडा रियासत में थे. जब मिशन के लोगों ने प्रचार आरम्भ किया तो सर्वप्रथम बांसवाडा के पूर्व दिशा से आरम्भ किया जैसे दानपुर, तापुर्क, दौलतपुरा, फिर पश्चिम में गनोडा, लोहारिया, उत्तर में पीपलखूंट, लम्बा डबरा, सेमलिया, घाटोल, नरवाली, पश्चिम में गाड़ी परतापुर, बजवाना, नोगावा, बागीदोरा, कलिंजरा, ताम्बेसरा, सज्जनगढ़ में कार्य किया.
उन चार मसीहीयों के अतिरिक्त मोती पिता धीरा पटेल पांचवा मसीही बना था, जिसका बपतिस्मा भी घागडिया में आयरिश मिशन में हुवा था. मोती पटेल के सगे-सम्बन्धी बड़ा आगोरिया में थे. जहाँ वो आते-जाते वचन सुनते थे. इससे जोखा भाई पिता जोरजी और कोदरा भाई पिता जोर्जी इन दोनों भाइयों के परिवार मसीही बने. वैसे ही बिजलपुर में श्याम भूरिया रूपा मनिया, भागला, जगला, भावला, मावला और भीम घराने सहित मसीही में आये. सागव में ज्योति मोती कडवा बरिया भी मसीही धर्म में सम्मिलित हुवे.

रतनपूरा गावं रत्ना रात के नाम से बसाया.  खान्दू महाराज की जागीर में सल्रापदा बसाया गया. एक नए अस्पताल का उद्घाटन उन्ही के कर कमलों से हुवा. किसी कारण रत्नाभाई और शामजी भाई ने सायला पड़ा छोड़ दिया फिर रतना पिता हिरजी ने वहां से कुछ लोगो के साथ आकर रतनपुरा बसाया और शामजी भाई ने कुछ लोगो के साथ केवड़िया को नई जमीन जो कर बसाया.

फिर धीरे धीरे आस पास के गावों में प्रचार होता गया. 

1927 में डॉ. काक ने अपनी दो भतीजियों को सेवा और प्रचार में शामिल होने को बुलाया. मिस ई.मेक्स्वेल बांसवाडा और मिस जस्सी मेक्स्वेल इन्दोर आ गई.

1922 में ही शरण स्थान अस्पताल बांसवाडा भवन का उद्घाटन रेव. और मिसिस ए.ई. आर्मस्ट्रांग द्वारा दिया गया था. इस कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. ओहारा और डॉ. मेक्मास्टर ने किया था. डॉ.ओहरा और बांसवाडा रियासत के दीवान ने संबोधित किया था. दवाखाना तम्बू से आरम्भ होकर झोपड़ियों में 8 वर्ष अस्पताल के रूप में बिता कर फिर पक्के भवन में आ गया. 
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