यह मंदिर का इतिहास लगभग शहर निर्माण से पहले (500 वर्ष) महारावल जगमाल सिंह जी के समय का है. यह स्वयंभू है. इस प्रतिमा के आकर्षण से श्रधालुओं को ऐसा लगता है मनो ये प्रतिमा दिन में तीन रूप धारण करती हो. यहाँ के पुजारी विजय वैष्णव 14 वर्षों से अनवरत पूजा करते आ रहे है, और इनके वंशज यहाँ की पूजा करते आये है. यह मंदिर देवस्थान में आता है. व इसकी देखरेख भावसार समाज के सानिध्य में है.