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नुकसान एक कराेड़ से ज्यादा का, अधिकतम मुआवजा केवल 75 हजार का

Banswara
नुकसान एक कराेड़ से ज्यादा का, अधिकतम मुआवजा केवल 75 हजार का
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250 कराेड़ के नुकसान पर राज्य सरकार की ओर से सहायता राशि के प्रावधान बहुत कम

 

नेशनल हाइवे पर शिक्षक भर्ती 2018 में सामान्य जाति वर्ग की रिक्त 1167 सीटाें पर अनुसूचित जनजाति काे देने की मांग पर हुए उपद्रव में बर्बाद हुए व्यापारियाें काे अब राज्य सरकार के नियमाें के अनुसार अधिकतम 75 हजार देय हाेगा। एेसे में नुकसान झेल रहे लाेगाें के लिए यह जख्म पर नमक रगड़ने के समान हाेगा। इसमें भी इस सहायता राशि के लिए 15 दिन में क्लेम प्रस्तुत करना हाेगा। जहां पर क्लेम पास हाेने के बाद अधिकतम 75 हजार की राशि दी जाएगी। वहीं नेशनल हाईवे पर कराेड़ाे रुपयाें की हाेटल, दुकान, घर और ढाबाें काे अाग के हवाले कर दिया गया है। यहीं नहीं यहां पर बनी श्रीनाथ काॅलाेनी में लूटपाट के साथ लोगों से मारपीट की गई। अब इन लाेगाें के अार्थिक नुकसान के लिए सरकार कीओर से बनाए गए नियम के अनुसार सहायता राशि के मापदंड के आधार पर दिया जाएगा। ये नियम भी वर्ष 2017 में बनाए गए है। राजस्थान सरकार के गृह विभाग की नई गाइडलाइन के अनुसार राज्य में संप्रादयिक, गैर संप्रादयिक दंगाें एवं आंतकवादी गतिविधियाें में मृत व्यक्ति के परिजनाें, शारीरिक संम्पति के नुकसान के संबंध में मुआवजा के रुप में जीवन यापन के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए नियमावली बनाई गई हैं।

कम भरपाई से व्यापारी हाेंगे परेशान: राज्य सरकार की गाइडलाइन के अनुसान घर, दुकान की संरचना का पूर्ण रूप से नुकसान पर 75 हजार, घर-दुकान की संरचना का अांशिक रूप से नुकसान पर 10 हजार, अागजनी अथवा अन्यथा कृषि संपत्ति, चल संपत्ति अथवा दुकान में रखे समान काे नुकसान 5 हजार अाैर जीविकाेपार्जन के लिए माेटरयान, नाव, बैलगाड़ी, ऊंटगाड़ी का नुकसान हाेने पर 5 हजार देने का प्रावधान है। एेसे में सवाल यह उठता है कि कराेड़ाें की नुकसान के लिए 75 हजार किस काम अाएगा। हाेटलाें के अंदर डीप फ्रीज की कीमत ही एक लाख तक हाेती है। इसके अलावा फर्नीचर, किचन का राशन सामान, पंखे, एसी, एलईडी, बाथरूम एसेसरीज, सीसीटीवी तक ले गए है। एेसे में 75 हजार रुपए से काेई भी व्यापारी काे मिलने से अपने-अाप काे ठगा सा महसूस करेंगा। इंश्याेरेंस काे लेकर भी कई बड़े सवाल: यहां के स्थानीय नेता उपद्रव हाेने के बाद अब इंश्याेरेंस की बात कर रहे है। वहीं डूंगरपुर ही नहीं पूरे भारत में व्यापारियाें में इंश्याेरेंस का सिस्टम ही डवलप नहीं हुअा है। इसके कारण लगभग 98 प्रतिशत व्यापारी इंश्याेरेंस ही नहीं कराते है। किसी परिस्थिति में इंश्याेरेंस कराने वाले व्यापारी के पास दाे विकल्प हाेता है। पहला विकल्प भवन का इंश्याेरेंस अाैर दूसरा स्टाॅक का इंश्याेरेंस हाेता है। भवन के इंश्याेरेंस में बिल्डिंग में किसी भी प्रकार की हानि जैसे भूकंप, छज्जा गिरना, छत का लटकना या कमजाेर हाेकर टूटने पर नुकसान का मूल्य हास काटने के बाद दिया जाता है। दूसरा इंश्याेरेंस व्यापारियाें की अाेर से स्टाॅक का कराया जाता है। यानी दुकान या प्रतिष्ठान में भरा जाने वाला सामान हाेता है। इसमें भी बहुत कम व्यापारी इस अाेर ध्यान देते है। स्टाॅक इंश्याेरेंस में भी फर्नीचर, कांच अाैर सजावटी सामान पर पैसा नहीं मिलता है। यहां पर भी मूल्यहास की गणित चलती है। यानि करीब 10 लाख का सामान भरा हुअा है। नुकसान हाेने के बाद इंश्याेरेंस में क्षतिपूर्ति खर्च काट कर दिया जाता है। एेसी परिस्थिति में नेशनल हाईवे के व्यापारियाें के पास इंश्याेरेंस से पैसा लेने की अास नहीं हाेगी। अधिकांश व्यापारी इस प्रकार के तकनीकी इंश्याेरेंस की जानकारी ही नहीं हाेती है। इसके कारण उनके पास इंश्याेरेंस ही नहीं हाेता है।

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