सरकारी दावा- 484 करोड़ मुआवजा दे चुके, 128 मकान दे रहे हैं, कोई रहने नहीं आ रहा
इस मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय ने कलेक्टर डॉ. इंद्रजीत से घटनाक्रम की पूरी जानकारी मांगी है। मौके पर शांति होने के बाद इसे लेकर देर शाम तक कलेक्टर, एसपी और अन्य जिलाधिकारी बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करते रहे। प्रदर्शनकारी महिलाओं को खदेड़ती पुलिस।
{कुल जमीन चाहिए: 623 हैक्टेयर {अब तक अवाप्त : 533 हैक्टेयर {लागत: 52 हजार करोड़ रुपए {क्षमता: 2800 मेगावाट (700-700 मेगावाट के 4 रिएक्टर लगाए जाएंगे।) {तकनीक: पूरी तरह स्वदेशी {निर्माण एजेंसी: एनपीसीआईएल और एनटीपीसी का ज्वॉइंट वैंचर। {विस्थापित परिवार : 1776 (6 गांव प्रभावित- बारी, सजवानिया, रेल, खांडियादेव, आडीभीत और कटुंबी शामिल हैं।)
{अब तक मुआवजा: 484 करोड़ रुपए प्रभावितों के बैंक खातों में दिए। {विस्थापितों की कॉलोनी में मकान: 16 हैक्टेयर जमीन पर 128 मकान बनाकर आवंटित किए, लेकिन अधिकांश खाली पड़े हैं। लोग इनमें रहने नहीं आ रहे हैं। {रोजगार: प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष 20 हजार लोगों को फायदा मिलेगा। भास्कर संवाददाता | बांसवाड़ा अवाप्त जमीन पर मुआवजा राशि लेने के बाद कुछ लोग हटने में आनाकानी कर रहे हैं। वे अपनी जमीन से दूर नहीं जाना चाहते हैं। कई ज्यादा मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को प्लांट में नौकरी का वादा चाहते हैं। उनका कहना है कि शुरुआत में उनसे नौकरी का वादा किया लेकिन अब तक वहां काम कर रहे करीब-करीब सभी लोग बाहर के हैं। योग्यता के अनुसार नौकरी मिलनी ही चाहिए क्योंकि उनकी आजीविका का मुख्य आधार उनकी जमीन उनसे ले ली गई है।
वन टाइम मुआवजा राशि जमीन की कीमत अदा नहीं कर सकती क्योंकि जमीन पीढ़ियों तक परिवार को पालती है। परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलनी चाहिए ताकि उनका परिवार पल सके। मामला विधानसभा में भी गूंजा। भारत आदिवासी पार्टी के बागीदौरा से विधायक जयकृष्ण पटेल ने कहा कि आदिवासियों के साथ मारपीट की गई। उन्हें जेलों में डाला गया। संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल ने जवाब देते हुए कहा कि हमने प्रारंभिक जांच की। जमीन पहले से एनपीसीआईएल के पास है। { प्रशासन दावा कर रहा है कि वह अब तक 484 करोड़ का मुआवजा और 128 मकान विस्थापितों को आवंटित किए जा चुके हैं तो फिर मौके पर अब भी ग्रामीणों में असंतोष क्यों है?
प्रशासन आदिवासी समाज के लोगों के मन की बात समझ नहीं पा रहा है या फिर अंदर ही अंदर कुछ और चल रहा है? {आखिर प्रशासन और पुलिस के बड़े अधिकारी इसके पीछे की वजह पता क्यों नहीं लगा पा रहे हैं? { क्या वाकई में प्रदर्शन के पीछे अफवाह और विरोध ही था या इसके पीछे कोई राजनीति है? ऐसी आशंका इसलिए सामने आ रही है क्योंकि, प्रदर्शनकारियों में बीएपी से चुनाव लड़ चुके हेमंत राणा भी शामिल थे। भास्कर संवाददाता | बांसवाड़ा अगस्त के आखिरी सप्ताह या सितंबर के पहले सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से प्लांट का शिलान्यास प्रस्तावित है। पिछले कई दिनों से ग्रामीणों इसका विरोध कर रहे हैं।
पुलिस-प्रशासन भी इसे सामान्य विरोध ही बता रही है लेकिन शुक्रवार को हुई हिंसा को देखकर इसे एकाएक घटित घटना नहीं कह सकते। इस तरह के इनपुट जुटाने में स्थानीय अधिकारी फेल हुए हैं। उधर, शुक्रवार को इस मामले में राज्य और केंद्र की कई एजेंसियों ने इस िववाद से जुड़े इनपुट लिए हैं। सूत्रों का कहना है कि इस विरोध पर समय रहते समझाइश नहीं की गई तो यह आंदोलन और उग्र भी हो सकता है। इसके पीछे भारतीय आदिवासी पार्टी को भी कारण बताया जा रहा है। पिछले दिनों मानगढ़ धाम में हुई सभा में उन नेताओं ने प्लांट के विरोध में बयान दिए थे। बीएपी के विधायक और सांसद बनने से विरोध कर रहे आदिवासी समाज की मांगों को बल मिला है।