चांदीपुरा वायरस से गुजरात में 8, खेरवाड़ा में एक बच्चे की मौत, अब वागड़ में अलर्ट
गुजरात और मेवाड़ में बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा चांदीपुरा वायरस का खतरा वागड़ में भी बढ़ रहा है। वहां अब तक इस वायरस की चपेट में आने से 8 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं खेरवाड़ा के बलीचा गांव में हंसते-खेलते 3 साल के बच्चे की अचानक से हुई मौत पर भी इसी वायरस से होने की आशंका है। गुजरात के शहरों समेत मेवाड़ में भी लगातार इसके मामले सामने आ रहे हैं।
दो दिन पहले ही बांसवाड़ा से 190 किमी दूर हिम्मतनगर में भी इस वायरस ने 3 साल के बच्चे की जान ले ली। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से रोज बड़ी तादाद में लोग इलाज और काम के लिए पड़ोसी गुजरात के शहरों में आना-जाना करते हैं। ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा बना हुआ है। चिंता इसलिए भी है क्योंकि, यहां अभी तक इस वायरस की जांच शुरू नहीं की गई है। मानसून में चांदीपुरा वायरस जैसे लक्षणों को लेकर गुजरात सरकार से राजस्थान चिकित्सा विभाग मुख्यालय को भेजे गए पत्र के बाद चिकित्सा विभाग ने बीमारी पर अलर्ट जारी कर दिया है।
डूंगरपुर-बांसवाड़ा की सीमा गुजरात से लगती है। जिसमें कुशलगढ़, मोनाडूंगर, मानगढ़ आदि हैं। हालांकि यहां अभी इससे जुड़ा कोई मामला सामने नहीं आया है। जिले में अभी जांच तो नहीं हुई लेकिन 1900 टीमें जो पहले से ही जिले में मलेरिया, डेंगू, डायरिया, बुखार के मामलों की जांच कर रही हैं, उन्हें ही इसका जिम्मा दिया है। सीएमएचओ डॉ. एच एल ताबियार ने बताया कि गुजरात में फैल रहे चांदीपुरा नामक वायरस के संक्रमण की बांसवाड़ा में एंट्री को लेकर फिलहाल कोई सूचना नहीं है। हालांकि से बचाव के लिए जिले में भी उपाय किए जाएंगे। अभी तक एक भी केस नहीं आया है लेकिन आशा सहयोगिनों, एएनएम के माध्यम से जिले में सतत निगाह रखे हुए हैं। प्रति 500 बच्चों पर एक आशा सहयोगिनी हैं, जिन्हें एएनएम और डॉक्टर को तत्काल सूचना देने को कहा है। इधर जिले में बीमार होने पर लेब में ब्लड टेस्ट के लिए आने वाले लोगों से लिए गए ब्लड सैंपल की जांच में भी इस वायरस के संक्रमण संबंधी जांच पर ध्यान दिया जाएगा। वर्ष 1966 में महाराष्ट्र के नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में चांदीपुरा वायरस की पहचान हुई थी।
इसके बाद इस वायरस को वर्ष 2004-06 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया था। चांदीपुरा वायरस एक आरएनए वायरस है। यह वायरस सबसे अधिक मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से ही फैलता है। मच्छर में एडीज ही इसके पीछे ज्यादातर जिम्मेदार है। 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं। उन्हीं में मृत्यु दर भी सबसे ज्यादा रहती है। चांदीपुरा के इलाज के लिए आज तक कोई एंटी वायरल दवा नहीं बनी है। इस मैकेनिज्म में यदि दवा या वैक्सीन ईजाद की जाए तो चांदीपुरा वायरस फैलाने वाले रोग सोर्सेज पर कंट्रोल रखा जा सकता है। चांदीपुरा वायरस के संक्रमण से शरीर के माइक्रोगियल सेल्स में माइक्रो आरएनए-21 की संख्या बढ़ने लगती है।
इससे कोशिकाओं में फॉस्फेटेस और टेनसिन होमलोग (पीटीईएन) पदार्थ का सिक्रिशन कम हो जाता है। इससे मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। तेज बुखार, उल्टी, ऐंठन और मानसिक बीमारियां आ जाती हैं। मरीजों में इंसेफ्लाइटिस के लक्षण भी दिखने लगते हैं और मरीज कोमा में चला जाता है। कई बार तो मौत तक हो जाती है।