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बांसवाड़ा रेल प्रोजेक्ट; 3542 लाेगाें की जमीनें अवाप्त, 2833 काे मुआवजा देना भूली सरकार

Banswara
बांसवाड़ा रेल प्रोजेक्ट; 3542 लाेगाें की जमीनें अवाप्त, 2833 काे मुआवजा देना भूली सरकार
@HelloBanswara - Banswara -

रतलाम-डंूगरपुर वाया बांसवाड़ा रेल लाइन के नाम पर जिले में जिन लाेगाें की जमीनें अवाप्त हुई है। उनमें से अधिकांश लाेग स्वयं काे ठगा महसूस कर रहें हैं। रेल परियाेजना के नाम पर इन लाेगाेंं की जमीनें ताे वर्ष 2013 में अवाप्त कर ली गई, लेकिन सात साल गुजरने के बाद भी इन्हें मुआवजा नहीं िमला। रतलाम-डंूगरपुर वाया बांसवाड़ा रेल प्रोजेक्ट के विशेषाधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार इस रेल लाइन के लिए कुल 100 गांवाें के 3 हजार 542 लाेगाें की जमीनें अवाप्त की जा रही है। जिसमें बांसवाड़ा जिले के 62 गांवाें के 1864 लाेगाें की जमीनें अवाप्त करने की कार्यवाही हुई। इसी तरह डूंगरपुर जिले के 38 गांवाें की 1678 लाेगाें की जमीनें अवाप्त की गई। डूंगरपुर में 15 गांवों के 407 लाेगाें काे अवार्ड राशि जारी की। बांसवाड़ा में केवल 15 गांवाें के 303 लाेगाें काे अवार्ड की राशि जारी की। इस तरह साै में से कुल 30 गांवाें के 710 लाेगाें काे मुआवजा राशि दी गई। वह भी अस्सी प्रतिशत अवाप्ति राशि ही जारी की गई।
हालात यह है कि अवाप्ति का नाेटिस जारी हाेने के बाद यह न जाे यह लाेग अपनी जमीन बेच पा रहे और न ही राज्य सरकार उन्हें मुआवजा जारी कर रही। कई परिवार भारी मानसिक यंत्रणा भुगत रहे हैं। किसी काे अपनी बच्चों की शादी करनी है। किसी काे बच्चों की पढ़ाई के लिए भारी भरकम फीस जुटानी है ताे कुछ काे अपना मकान बनाना है। उनकी जमीनें बिके या सरकार अवाप्ति की राशि दे ताे यह काम हाे। पैसाें के अभाव में यह लाेग दर-दर की ठाेकरें खाने काे मजबूर हाे रहे हैं। मार्केट रेट से अ‌ाधी दराें पर यह जमीन बेचने काे तैयार हैं, लेकिन अवाप्ति के नाेटिस जारी हाे जाने के कारण काेई इनकी जमीन खरीदने काे तैयार नहींं। इनमें से भी कई सीनियर सिटीजन एेसे हैं, जाे अब यह उम्मीद छाेड़ बैठे हैं कि जीते जी वे इस जमीन का सुख भाेग पाएंगे। जिंदगी का कुछ समय बाकी बचा है। मुआवजा मिले या जमीन बिके ताे कुछ बची हुई इच्छाएं पूरी करें। सामाजिक जिम्मेदारियां अच्छे से पूरी करें।
 


प्रोजेक्ट में 100 गांवों में भूमि अवाप्त करनी थी, बांसवाड़ा मेंे 62 गांव में लगाए पिलर
 

खेत में रेलवे ने लगा दिया पिलर
सामरिया निवासी मेघजी पुत्र फूलजी मईडा की उम्र 80 बरस हाे चुकी है। खेतीबाड़ी से परिवार चलता है। तीन पुत्र हैं। रेलवे ने कुछ सालों पहले सीमांकन कर उनके खेत में अपना पिलर गाड़ िदया। रेलवे के अधिकारियों ने बताया कि जमीन अवाप्त कर ली है, लेकिन अाज दिन तक न ताे मुआवजा मिला अाैर न ही मुआवजे के संबंध में कोई कागज।
 

खेती छोड़ अब करते हैं मजदूरी
सामरिया के ही गवरा पुत्र दाेला मईडा का मैन राेड पर खेत अाैर उसमें बना मकान है। मकान के पास से रेल लाइन गुजरेगी। सर्वे के बाद रेलवे के अधिकारियों ने जमीन अवाप्त हाेना बता खेत में जगह- जगह पिलर गाड़ दिया। मुआवजा मिलना ताे दूर इस बारे में अाज दिन तक कोई चर्चा तक नहीं। परिवार खेतीबाड़ी व मजदूरी कर गुजारा करता है।
 

गुजारे के लिए ऑटो खरीदना पड़ा
सियापुर निवासी देवेंगे पुत्र अमरेंग पटेल अाॅटाे चलाता है। उनका छाेटा भाई वालेंग मिल मेें काम करता था। एक साल पहले मिल में हुई दुर्घटना में वालेंग की माैत हाे गई। दाेनाें भाईयों की संयुक्त खातेदारी के खेत हैं। रेल लाइन के लिए खेत की जमीन अवाप्ति में चली गई। मुआवजे की दर काे लेकर ग्रामीणों व रेलवे में विवाद है। अब तक मुआवजा अटका हुअा है।
 

अागे बजट नहीं मिला ताे रेलवे ने वर्ष 2017 में ऑफिस बंद कर दिया
बांसवाड़ा रेल परियाेजना का आगे का काम पूरी तरह खटाई में पड़ गया है। इस रेल लाइन के लिए पिछले दाे सालाें में केंद्र सरकार ने अपने बजट में काेई राशि जारी नहीं की ताे रेल विभाग ने बांसवाड़ा में अपना कार्यालय समेट िलया। अब यहां रेलवे का काेई धणी धाेरी नहीं। जबकि कुछ सालाेंं पूर्व बांसवाड़ा में रेलवे ने सिविल डिविजन ऑफिस खाेला था। जिसमें एडिशनल चीफ इंजीनियर स्तर के अधिकारी बैठते थे। उनके साथ पूरा स्टाफ था। सिविल विंग ने रतलाम से बांसवाड़ा रेल मार्ग तक के रास्ते में अधिकांश जगह पुलिया अादि बना दी थी। केंद्र सरकार ने बजट जारी नहीं किया ताे राज्य सरकार ने भी मुआवजा राशि जारी करने से हाथ खींच लिए। अवाप्ति के नाेटिस जारी करने के बाद भी अधिकांश काे मुआवजा राशि जारी करने पर राेक लगा दी।

नियम}5 साल बाद भी मुआवजा नहीं मिले तो खातेदारों के पास कानूनी अधिकार
राज्य मानवाधिकार अायाेग के अध्यक्ष जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने बताया कि रेल प्रोजेक्ट के नाम पर जिन लाेगाें की जमीनें अधिग्रहित कर ली गई। उन्हें यदि पांच-सात साल बाद भी मुआवजा नहीं मिला है ताे खातेदारों के पास सीधे कानूनी अधिकार हैं। उन्हें अपने वकील से मिल कर संबंधित उच्च न्यायालय में वाद दायर करना चाहिए। अदालत के आदेश पर राहत िमलेगी।

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