पैंथर-पैंथर कांपता गांव, खौफ इतना कि शाम 5 बजे बाद कोई घर से नहीं निकलता
शहर से 20 किमी ग्राम पंचायत कुंवानिया के सोनाखोरा गांव के 150 घरों के करीब 600 लोग पिछले 30 साल से दहशत में जी रहे हैं। गांव में पैंथर समेत जंगली जानवरों के हमले का इतना डर कि लोग शाम पांच बजे के बाद घरों से बाहर ही नहीं निकलते हैं। पहाड़ी इलाके में इस गांव के बसे होने से यहां पर शाम को रोजाना पैंथर समेत जंगली जानवर घूमते रहते हैं। इस गांव के पास ही बड़ी दो गुफा बनी हुई है, जहां पैंथर रहते हैं। गांव वालों ने बताया कि 30 साल पूर्व माही चाचाकोटा में रहते थे लेकिन डूब क्षेत्र के कारण यहां आकर बस गए। तब से लेकर आज तक हम सब पैंथर के साए में जी रहे हैं। पैंथर यहां सप्ताह में एक बार किसी न किसी घर से मवेशी का शिकार करता ही है। कई बार तो बकरी चराने वाले ग्वालों पर भी हमला कर दिया। लोगों के एक साथ झुंड में रहने से जान बचा पाते हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। दरअसल पहाड़ी इलाका होने से यहां खेती नहीं की जाती है। ऐसे में घर गुजारा करने के लिए शहर की ओर आना पड़ता है। लेकिन शाम 5 बजे से पहले हर हाल में गांव में आना ही हाेता है क्योंकि घर में पत्नी, बच्चे और मवेशियों के अकेले रहने से पैंथर के हमला कर देने का डर रहता है। दस दिन पहले ही हैराजी की 3 बकरियां और कांतिलाल के बैल का पैंथर ने शिकार किया था।
देवी करती है रक्षा, पैंथर देते है संकेत : गांव के भीमा भाई बताते हैं कि पहाड़ी के पास ही देवी का मंदिर है, लोगों की ये रक्षा करती हैं। इसलिए आजतक लोगों ने अपनी जान नहीं गंवाई। हालांकि हमला कई बार कर चुका है। साथ ही मंदिर की सामने वाली पहाड़ी पर पैंथर के लगातार दहाड़ने की आवाज आती रहती है। जब पैंथर लगातार एक घंटे से ज्यादा गुर्राता है, तो यह माना जाता है कि किसी के घर में मौत होने वाली है या फिर कोई अप्रिय घटना होने वाली है।
कांतिलाल ने बताया कि पूरा गांव हैंडपंप से पानी भरता है। पानी भरने के लिए जब महिला जाती है तो उनके साथ कई पुरुष लट्ठ और हथियार लेकर जाते है। गांव के बहादुर ने बताया कि 70 से ज्यादा घर पैंथर की गुफा के पास है। यहां पर सभी सामूहिक रहते हैं। बकरी चराने भी लोग समूह बनाकर जाते हैं। धनजी ने बताया कि हमारा मुख्य व्यवसाय बकरी पालन है। इससे ही घर गुजारा चलता है, लेकिन हमेशा डर यही रहता है कि बकरियों का शिकार न कर जाए। क्योंकि हमारे यहां बकरी का मर जाना भी किसी इंसान के मर जाने से कम नहीं है।
पानी भरने आई महिला के साथ सुरक्षा के लिए लठ लेकर पुरुष भी आए।
ये परिवार अब तक कर रहे मुआवजे की मांग : कंकु बाई, शांति, पारू और मेगजी ने बताया कि हमारे घर से 3 महीने पहले तीन बकरी और दो गाय का पैंथर ने शिकार कर लिया था। वनविभाग द्वारा पंचनामा भी बनाया गया। केस दर्ज कराया, लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया। कई बार विभाग को कह चुके हैं, लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता है।