Banswara Gaushala
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आज आस्था को लेकर मानवजाति गोवंश को सिर्फ पूजा व सेवा करना ही मानता है, पर इसके के साथ गोवंश के बहुआयामी पक्ष भी हैं यह वैज्ञानिक शोध से सिद्ध हो चूका हे.
गायों के श्वांस-प्रश्वांस से लाभ होते है जैसे की उसके शारीर के अवयवों में नदी केंद्र(कुब्बड जैसा उठा हुवा) उसे सूर्य-केतु नाड़ी तंत्र भी कहते है. उससे अगर गाय विष्टा(ख़राब) चीज़ खा ले तो भी उसका दूध उस नाड़ी तंत्र से परिष्ठित हो जाता है. गाय ही मात्र एक प्राणी है जो कुछ भी खाए उसके दूध से उसके खाए हुवे तत्वों की गंध नहीं आती है. माँ के दूध के बाद गाय का दूध ही परे है.
रोगी व्यक्ति अगर गाय की प्रदक्षिणा(परिक्रमा) करे तो गाय उस रोगी के रोग तत्व को खुद में समावेश कर लेती है व रोगी को उसके अपने सूर्य केतु नाड़ी तत्व से सकारात्मक उर्जा प्रदान करती है.
गो मूत्र गो अर्क, गोबर से पञ्च अवयक व औषधिया बनती है. इनसे वर्मी कंपोज़, धुप आगरबत्ती, साबुन आदि बनाई जाती थी. समाधी खाद भी बनती है. नंदी तैयार करना, गोवंश बढ़ाना.
इन पक्षों को लेकर गोशाला में कार्य किये जाते है. और इससे आम लोग गाय को घर में रखने के लाभ की जानकारी प्राप्त कर सके.
यहाँ पर गायों व बछड़ो की संख्या 150 है. इस परिसर की क्षमता 300 गायों के करीब है.
गोशाला में नंदी घर है, जहाँ पर 10 नंद्यों के रखने की समता है, यहाँ पर जो नंदी उसमे एक का नाम सत्यम (राठी नस्ल) और दूसरा का नाम शम्भू(साहिवाल नस्ल) का है. बछड़ा गृह है.
यहाँ पर घास गृह है जिसमे पुला घास लाई जाती है जो की मुंबई व झालोद से लाई जाती है.
यहाँ पर गायों के विचरण स्थल व हरा चारा उत्पादन स्थल है.
यहाँ पर वर्मिकरण काम्पोस(खाद) होता है. यह पेड़ पोधो की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के काम आता है. यह कार्य लगभग 2006 से किया जा रहा है. यहाँ प्रतिमाह 10 से 15 क्विंटल वर्मी काम्पोस किया जाता है.
बिना माँ के बछड़ों को यहाँ पर बोतलों से दूध पिलाया जाता है और सेवा की जाती है.
यहाँ पर प्राचीन कुवा है 250 से 300 वर्ष पुराना है. गौशाला में इस कुवे के पानी का उपयोग किया जाता है.
कृष्णा वन उद्यान –
यहाँ पर पपीता मोसम्बी, केला, बादाम, शीशम, पीपल, चीकू, अनार, निम्बू, सीताफल, आवला व यहाँ पर एक बड का पेड़ भी है जो की 250 से 300 वर्ष पुराना है.
योजना : गो सप्त प्रदर्शन मंदिर, पर्यावरण की द्रष्टि से वृक्ष लगाना, बिजली के संकट से निपटने के लिए गोबर गेस यन्र्ी लगाना, गो पुस्तकालय, कृषिको को प्रशिक्षण देना, युवको को रोजगार, साधक कक्ष, अतिथि कक्ष, निराशित-अशक्त गाय, बीमार, अपाहिज जो कोई इन गायों को ना रख सके उनके लिए सेवा केंद्र, सेवा कक्ष.