Home News Business

60 गांवों में ऐसे ही हालात: यहां गर्मियों में मेहमान नहीं आते, बेटियां ब्याहने से डरते हैं लोग

Banswara
60 गांवों में ऐसे ही हालात: यहां गर्मियों में मेहमान नहीं आते, बेटियां ब्याहने से डरते हैं लोग
@HelloBanswara - Banswara -
लेखक: अरविंद अपूर्वा

फाेटो : दिनेश तंबोली

100 टापुओं वाले बांसवाड़ा के वाक गांव से पानी के लिए संघर्ष की चौंकाने वाली तस्वीर
तस्वीर 100 टापुओं के नाम से मशहूर बांसवाड़ा जिले के छाेटी सरवन गांव क्षेत्र की है। यहां वाक गांव में पीने के पानी के लिए महिलाएं सूख चुकी नदी के पैंदे में गड्ढे (वीड़ा) खाेदकर पानी निकाल रही हैं। असली संघर्ष ताे पानी भरने के बाद शुरू हाेता है। पानी से भरा मटका लेकर ये महिलाएं करीब 1000 फीट ऊंची पहाड़ी की चढ़ाई करती हैं। प्यास बुझाने के लिए महिलाओं का यह संघर्ष राेज का है। गर्मी बढ़ने के साथ इन वीड़ों में पानी आना भी बंद हाे जाएगा और हालात और ज्यादा भीषण हाे जाएंगे। कहने काे तो सरकार ने यहां पाइप लाइन बिछवाई, लेकिन पानी यहां तक नहीं पहुंच पाया। यह ऐसा एक गांव नहीं है, ऐसे ही 60 से ज्यादा गांव हैं, जहां अप्रैल, मई, जून में पानी के लिए कड़ा संघर्ष रहेगा।

इन तीन महीनों में यहां कोई मेहमान तक नहीं आता। ग्रामीण भी रोजगार के लिए गुजरात मध्यप्रदेश चले जाते हैं। कुछ मवेशियों को लेकर पानी वाले क्षेत्रों में बस जाते हैं। घर पर वो ही लोग रहते हैं, जो चलने-फिरने में सक्षम नहीं हैं। जिन महिलाओं के बच्चे छोटे हैं, वो भी यहीं रुकती हैं। जो परिवार के बचे सदस्यों के लिए कोसों दूर पैदल चलकर दो घड़े पीने का पानी लाती हैं। दैनिक भास्कर माही नदी बैक वाटर एरिया से सटे छाेटी सरवन, आंबापुरा क्षेत्र के गांवाें में पहुंचा तो सामने आया कि ऐसे हालात मार्च में ही बनने लगे हैं। कमांड क्षेत्र की बेटियाें को नोन कमांड क्षेत्र में नहीं देते जल संकट को देखकर नोन कमांड क्षेत्र में शादी भी आसपास के गांवों में ही कराते हैं, क्योंकि जहां पानी व रोजगार की सुविधा है, वहां के लोग अपनी बेटी इन पानी के अभाव वाले क्षेत्र में नहीं देते हैं।

100 परिवारों की बस्ती, 2 किमी दूर से पानी लाती हैं महिलाएं
छोटी सरवन के वका गांव में पहाड़ी पर करीब 100 परिवाराें की बस्ती है। यहां महिलाएं रोज सुबह 2 किमी दूर बैकवाटर में गड्‌ढा खोदकर पानी लाती हैं। पुरुष रोजगार व मजदूरी के लिए रोज शहर में आ जाते हैं। गांव की मंजुला बताती हैं कि घर में चार लाेग हैं। सास-ससुर बूढ़े हैं। पति मजदूरी के लिए शहर या कभी मध्यप्रदेश चले जाते हैं। हम तीन लाेगाें की प्यास बुझाने के लिए पहाड़ी से नीचे उतरकर पानी लाने में ही उसका पूरा दिन गुजर जाता है। छाेटी सरवन की तेलनी नदी सूख चुकी है। ग्रामीण 3 किलोमीटर चलकर उसके सूखे पैंदे में गड्ढा खोदकर पानी निकालते हैं। इसके बाद हम आंबापुरा के रामगढ़ व छापरिया गांव पहुंचे, जहां नदी में गड्‌ढे खोदकर पानी निकालने का जुगाड़ शुरू हाे चुका है। महेशपुरा, नल्दा, झरनिया आदि गांवों में ताे हैंडपंप ही एकमात्र पेयजल स्त्रोत है।

3 लाख से ज्यादा लाेग पलायन काे मजबूर
छाेटी सरवन, आंबापुरा, कुशलगढ़ व सज्जनगढ़ के नोन कमांड क्षेत्र की करीब 60 ग्राम पंचायताें के 3 लाख से अधिक लाेग गर्मी में पलायन करते हैं। छोटी सरवन के बारी, दनाक्षरी, कोटड़ा, नापला, घोड़ी तेजपुर, कटुंबी, आंबापुरा, देवगढ़, छापरिया, रामगढ़, नल्दा, महेशपुरा, झरनिया, गणाऊ, झूपेल, कुशलगढ़ के छोटी सरवा, कोटड़ा राणगा, बड़ी सरवा, मोहकमपुरा, बावलियापाड़ा, भंवरदा, सातलिया, पाटन, बिजौरी, सज्जनगढ़ के कसारवाड़ी, डूंगरा छोटा आदि गांव सूखे की मार झेलते हैं।

FunFestival2024
शेयर करे

More news

Search
×