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दुर्घटना में युवक के गंभीर घायल होने के आठ माह में 3.90 लाख बीमा क्लेम देने का आदेश

Banswara
दुर्घटना में युवक के गंभीर घायल होने के आठ माह में 3.90 लाख बीमा क्लेम देने का आदेश
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मोटरयान दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी कोर्ट) ने गुरुवार को सड़क हादसे मंे युवक के गंभीर रूप से चोटिल होने मामले में बीमा कंपनी को पीड़ित को 3.90 लाख रुपए भुगतान करने का आदेश दिया। न्यायाधीश अभय जैन ने कंपनी को 30 दिन के भीतर राशि कोर्ट मंे जमा कराने को कहा।

प्रदेश में यह पहला मामला है जब थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पर सड़क हादसे के मामले में महज 8 महीने के भीतर ही पीड़ित को क्लेम राशि भुगतान का आदेश हुआ है। ऐसे मामलों में पहले जांच में देरी पर सालों लग जाते थे।

दरअसल, कोर्ट ने यह आदेश कलिंजरा थाना क्षेत्र में पिछले साल मई में हुए एक सड़क हादसे के मामले में दिया। बड़ोदिया निवासी शब्बीर मोहम्मद ने थाने में शिकायत दर्ज कराई। जिसमें बताया कि उसका भाई मोहम्मद हुसैन पुत्र फकीर मोहम्मद शेख पत्नी के साथ घर से पैदल-पैदल अपनी गैराज की दुकान पर जा रहे थे।

पाडलिया तिराहे से आगे पुलिये के पास पहुंचने पर कार ने भाई को टक्कर मार दी। जिससे भाई को गंभीर चोंटे आई। बाद में भाई को अस्पताल ले जाया गया। हादसे मंे भाई के दांये पैर की हड्डियों में, दांये पैर की अंगुलियों में पंजे में एवं शरीर में चोंटे आई। डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा।

भाई को गुजरात इलाज के लिए ले जाया गया। रिपोर्ट आधार पर पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया और एफआईआर कोर्ट को भेज दी। वहीं इसके अंतर्गत एफएआर (फर्स्ट एक्सीडेंट रिपोर्ट) भी निर्धारित समय सीमा में कोर्ट को प्राप्त हो चुकी थी।

इसके बाद प्रार्थी व संबंधित बीमा कंपनी से चर्चा कर न्यायाधीश अभय जैन द्वारा शुक्रवार को 3.90 लाख मंे राजीनामा करवाया गया। नोडल ऑफिसर खुशबू पुरोहित ने बताया कि संपूर्ण राजस्थान में यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कम समय की संभवत: यह पहली बार पालना हुई है।

इसके तहत मात्र 30 दिन में आश्रितों को क्लेम राशि मुहैया कराई जाएगी। उल्लेखनीय है कि गोहर मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन मामले मंे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह सबसे कम समय में प्रार्थी व बीमा कंपनी के बीच राजीनामा करवाने का पहला मामला है।

सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुसार सड़क हादसों के बाद क्लेम मामलों में त्वरित सुनवाई होनी चाहिए, जिससे आश्रितों को समय पर क्षतिपूर्ति मिल सके। इसके लिए 1 से 10 फॉर्मेट बनाकर सभी एजेंसी की जांच प्रक्रिया की समय सीमा तय की गई है। यही वजह है कि ऐसे में मामलों में पहले लेटलतीफी के चलते लंबा वक्त लग जाता था, वहीं अब महीनों में प्रक्रिया पूरी की जा रही है।

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