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बांसवाड़ा का चलता-फिरता सरकारी स्कूल:किराए के घरों में ले जाकर बच्चों को पढ़ाने पर मजबूर शिक्षक, 40 में नौ बच्चे ही कभी-कभी जाते हैं पढ़ने

Banswara
बांसवाड़ा का चलता-फिरता सरकारी स्कूल:किराए के घरों में ले जाकर बच्चों को पढ़ाने पर मजबूर शिक्षक, 40 में नौ बच्चे ही कभी-कभी जाते हैं पढ़ने
@HelloBanswara - Banswara -

शहर से महज 4 किमी दूर बड़वी गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय संचालित है। जहां बच्चों का सिर ढकने के लिए न छत है न बैठने के लिए जमीन। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में 48-52 हजार करोड़ रुपए सिर्फ शिक्षा के लिए हर साल खर्च किए जाते हैं। स्कूल का संचालन तो हो रहा है, लेकिन स्कूल में नहीं। क्योंकि भवन नहीं होने के कारण स्टाफ बच्चों को दूसरे घरों में ले जाकर पढ़ाने के लिए मजबूर हैं। जब मकान मालिक को घर की जरूरत होती है तो फिर पढ़ाने के लिए दूसरा घर तलाशना पढ़ता है। ऐसे में यह चलता-फिरता स्कूल बन गया है।

जर्जर स्कूल का मूल भवन।
जर्जर स्कूल का मूल भवन।

पिछले साल बारिश में ढह गया था स्कूल, अभी किराए पर पढ़ रहे बच्चे

पिछले साल सितंबर में तेज बारिश के दौरान स्कूल के कमरे ढह गए। उस वक्त स्टाफ ने उच्चाधिकारियों से संपर्क कर गांव में ही एक भवन किराए पर लेकर वहां पढ़ाने की मंजूरी दी थी। स्टाफ तब से अब तक किराए के भवन में ही पढ़ा रहा है। इस बीच शिक्षकों ने कई पत्र नए भवन के लिए सीबीईओ से लेकर डीईओ तक लिखे। लेकिन विभाग नए निर्माण तो दूर बच्चों की वर्तमान स्थिति जानने से भी परहेज कर कर रहा है। कुछ ग्रामीण अपने घरों में बिना किराया लिए पढ़ाने का सहयोग कर रहे हैं।

विभाग को लिखा गया पत्र।
विभाग को लिखा गया पत्र।

पड़ताल में 9 बच्चों को पढ़ाती मिली शिक्षिका

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष भवानी निनामा ने जब यह मामला बताया तो मौके पर जाकर स्थिति देखी। जहां शिक्षिका उषा राणा एक घर के बाहर बरामदे में 9 बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ा रही थी। वहीं, आसपास में घर का कुछ कबाड़ और अन्य सामान पड़ा हुआ था। उषा राणा ने बताया कि स्कूल में वैसे तो 40 बच्चों का नामांकन है। लेकिन स्कूल भवन नहीं होने के कारण कई बच्चों ने स्कूल आना भी बंद कर दिया है। कुछ बच्चे कभी कभार आ जाते हैं। जानकारी के अनुसार स्कूल में 40 बच्चों का नामांकन है। जिसमें कक्षा 1 में 11 कक्षा 2 में 5 कक्षा 3 में 4 कक्षा 4 में 2 और कक्षा 5 में 18 बच्चे नामांकित हैं।

बच्चों को बरामदे में पढ़ाती शिक्षिका।
बच्चों को बरामदे में पढ़ाती शिक्षिका।

24 साल भी नहीं टिक सकी स्कूल की इमारत

उषा राणा ने बताया कि स्कूल का भवन 1999 में बना था। मेरी पोस्टिंग यहां 2013 में हुई तब से स्कूल जर्जर हाल में ही था। लेकिन फिर भी बच्चों को वहां पढ़ाते रहे। पिछले साल 18 सितंबर को भवन रात को तेज बारिश में गिर गया। अगले दिन सुबह ग्रामीणों ने इसकी सूचना दी तुरंत ही हमने विभाग को सूचित किया।

इनका कहना है

मैंने कई लेटर लिखे विभाग को लेकिन कोई अब तक भवन निर्माण का काम शुरू हुआ है। हमें इस स्थिति में काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अभी यहां पढ़ा रहे है कल कहीं मकान मालिक को काम पड़ जाए तो यहां से भी हमें कही अलग जगह जाना पड़ सकता है। सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को हो रहा है।

-उषा राणा, शिक्षिका।

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