महाराणा प्रताप जयंती

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया, जो एक बहादुर राजा जिसने राष्ट्र की रक्षा, धर्म, संस्कृति के लिए अपना जीवन का त्याग दिया. यह उसकी वीरता का एक पवित्र स्मरण है!
महाराणा प्रताप (1568-1597 सीई) भारत के राजस्थान में मेवाड के हिंदू राजपूत राजा थे। महाराणा प्रताप राजपूतों के सिसोदिया वंश से संबंधित थे। राजस्थान में अपने बहादुरी और साहस के लिए उन्हें कई शाही परिवारों द्वारा सम्मानित और पूजा की जाती है।
ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक, महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को जूलियन कैलेंडर के अनुसार हुआ था। । प्रोलप्टिक ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 1 9 मई 1540 को हुआ था।
हालांकि, महाराणा प्रताप की जयंती भारतीय कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है। भारतीय कैलेंडर के मुताबिक यह तृतीया, ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष, 15 9 7 विक्रम संवत था जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।
राणा प्रताप मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा के लिए हल्दीघाटी की लड़ाई के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं।
मुगुलो ने चित्तोड़ पर कब्ज़ा कर लिया. महाराणा प्रताप को छोड़कर सभी राजाओं मुगुलो के समक्ष अपना राज्य समर्पित कर दिया. फिर राणाप्रताप ने वचन लिया की "मैं अपनी जान की न करते हुवे चित्तोड़ की रक्षा सदेव करता रहूँगा हर तरह की शुख सुविधाओ को त्यागते है जब तक हमें स्वतंत्रता नहीं मिलती है."
बहुत समय तक मुगलों के खिलाफ बनाई योजना के बाद रना प्रताप मुगलों से लड़ने के लिए तैयार हो गए. फिर उन्होंने मुगलों पर आक्रमण करना चालू किया और उन्होंने कई मुगलों को हराया और अपनी जीत से वे बहुत प्रशिध हो गए. और जिससे बहुत से देशवासी उनकी सेना में मिल गए. महाराणा प्रताप की शक्ति धीरे धीरे बढती गई और मुगलों पर अपना आक्रमण जरी रखा. क्यूंकि उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए थी.
अकबर महाराणा प्रताप से युद्ध की योजना बनता है. महाराणा प्रताप कुम्भल गढ़ में चले जाते है जो की पहाड़ियों से घिरा हुवा है जहाँ पर पहुंचना आसन नहीं है. वहां पर जंगल के लोगो को महाराणा प्रताप अपनी सेना में सामिल करते है. और उन्हें युद्ध की कला सिखाते है. और महाराणा प्रताप की सेना में बहुत लोग मरे जाते है. 22000 सैनिकों के राणा प्रताप सेना में और अकबर की सेना में 2 ,00,000 सैनिक थे. जिनका युद्ध हल्दीघाटी. राणा प्रताप और अपने सैनिकों को इस लड़ाई में महान वीरता का प्रदर्शन किया हालांकि उन्हें पीछे हटना पड़ा पर अकबर भी महाराणा प्रताप पूरी तरह हरा नहीं पाया था. इस युद्ध घायल महाराणा प्रताप को बचने की लिए चेतक(घोडा) बड़ी नहर पर कूद गया और फिर उसकी मृत्यु हो गई.
और फिर महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ वन में जाकर छिप जाता है. और २० साल तक मुगलों से लड़ते रहें और उन्हें हराते गए. पर वो चित्तोड़ को मुगलों से नहीं छुड़ा पाए पर उन्होंने अपना वचन अंतिम समय तक निभाया.
जीवन
राणा उदयसिंह केे दूसरी रानी धीरबाई जिसे राज्य के इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से जाना जाता है, यह अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी | प्रताप केे उत्तराधिकारी होने पर इसकेे विरोध स्वरूप जगमाल अकबर केे खेमे में चला जाता है |
महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक मेंं 28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में होता हैै, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुुंभलगढ़़ दुुर्ग में हुआ, दूूूसरे राज्याभिषेक में जोधपुर का राठौड़ शासक राव चन्द्रसेेन भी उपस्थित थे |
राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल ११ शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है:-
- महारानी अजाब्दे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास
- अमरबाई राठौर :- नत्था
- शहमति बाई हाडा :-पुरा
- अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह
- रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु
- लखाबाई :- रायभाना
- जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
- चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
- सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
- फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा
- खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।
मेवाड़ के राजपूत राजवंश (1326–1884) | |
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राणा हम्मीर सिंह | (1326–1364) |
राणा क्षेत्र सिंह | (1364–1382) |
राणा लखा | (1382–1421) |
राणा मोकल | (1421–1433) |
राणा कुम्भ | (1433–1468) |
उदयसिंह प्रथम | (1468–1473) |
राणा रायमल | (1473–1508) |
राणा सांगा | (1508–1527) |
रतन सिंह द्वितीय | (1528–1531) |
राणा विक्रमादित्य सिंह | (1531–1536) |
बनवीर सिंह | (1536–1540) |
उदयसिंह द्वितीय | (1540–1572) |
महाराणा प्रताप | (1572–1597) |
अमर सिंह प्रथम | (1597–1620) |
करण सिंह द्वितीय | (1620–1628) |
जगत सिंह प्रथम | (1628–1652) |
राज सिंह प्रथम | (1652–1680) |
जय सिंह | (1680–1698) |
अमर सिंह द्वितीय | (1698–1710) |
संग्राम सिंह द्वितीय | (1710–1734) |
जगत सिंह द्वितीय | (1734–1751) |
प्रताप सिंह द्वितीय | (1751–1754) |
राज सिंह द्वितीय | (1754–1762) |
अरी सिंह द्वितीय | (1762–1772) |
हम्मीर सिंह द्वितीय | (1772–1778) |
भीम सिंह | (1778–1828) |
जवान सिंह | (1828–1838) |
सरदार सिंह | (1828–1842) |
स्वरूप सिंह | (1842–1861) |
शम्भू सिंह | (1861–1874) |
उदयपुर के सज्जन सिंह | (1874–1884) |
फतेह सिंह | (1884–1930) |
भूपाल सिंह | (1930–1947) |
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया के मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया
अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं थी, हालांकि अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था , जब की एक तरफ ये थे जो अपनी भारत मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जनता था की महाराणा जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आंसू आ गए।
महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के समय अकबर लाहौर में था और वहीं उसे सूचना मिली कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है। अकबर की उस समय की मनोदशा पर अकबर के दरबारी दुरसा आढ़ा ने राजस्थानी छंद में जो विवरण लिखा वो कुछ इस तरह है:-
अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी
गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी
नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली
न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली
गहलोत राणा जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी
निसा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी
अर्थात्
हे गेहलोत राणा प्रतापसिंघ तेरी मृत्यु पर शाह यानि सम्राट ने दांतों के बीच जीभ दबाई और निश्वास के साथ आंसू टपकाए। क्योंकि तूने कभी भी अपने घोड़ों पर मुगलिया दाग नहीं लगने दिया। तूने अपनी पगड़ी को किसी के आगे झुकाया नहीं, हालांकि तू अपना आडा यानि यश या राज्य तो गंवा गया लेकिन फिर भी तू अपने राज्य के धुरे को बांए कंधे से ही चलाता रहा। तेरी रानियां कभी नवरोजों में नहीं गईं और ना ही तू खुद आसतों यानि बादशाही डेरों में गया। तू कभी शाही झरोखे के नीचे नहीं खड़ा रहा और तेरा रौब दुनिया पर निरंतर बना रहा। इसलिए मैं कहता हूं कि तू सब तरह से जीत गया और बादशाह हार गया।
अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना पूरा जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामिभक्त अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि प्रणाम।
