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कड़ाया

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कड़ाया
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कड़ाया  (स्टेरकुलिया यूरेन्स) मालवेसी परिवार के पौधे की एक प्रजाति है। यह भारत का मूल निवासी है और इसे बर्मा में पेश किया गया है। हल्के रंग के तने वाला एक छोटा से मध्यम आकार का पेड़, इसे आमतौर पर मराठी में भूत्या ( भूतिया ) के रूप में जाना जाता है (जिसका अर्थ है "भूत का पेड़"), कुलु , भारतीय ट्रैगैकैंथ , गोंद कराया , कतीरा , स्टेरकुलिया गोंद या कतीरा गोंद । विशिष्ट नाम यूरेन्स फूलों पर मौजूद चुभने वाले बालों को संदर्भित करता है।

यह एक मध्यम आकार का पर्णपाती पेड़ हैं जो अपने कराया नामक गोंद के लिए प्रसिद्ध हैं। इस गोंद का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन और दवाओं के उत्पादन में किया जाता हैं। यह डब्बा बंद पेय पदार्थों और खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भी सहायक हैं।

कड़ाया को कहीं-कहीं गुलू, कुल्लू, कतीरा, कराया और अंग्रेजी में Indian tragacanth के नाम से जाना जाता है। कड़ाया एक मध्यम आकार (15-20 मीटर ऊंचाई) का वृक्ष है जिसका तना 60-100 सेमी. मोटा,सफेद एवं भूरे रंग का होता है। इसकी छाल धूसर भूरे रंग की और मुलायम होती है। इसकी लकड़ी हल्के पीले या क्रीम रंग की होती है। यह अत्यन्त सूखा सहन करने वाला पेड़ है। भारत के 750 से 1200 मिमी. वार्षिक वर्षा वाले जंगलों में इसके पेड़ पहाड़ी, पथरीली चट्टानों में प्राकृतिक रूप से उगते है।

चांदनी रात में चांदी जैसी आभा बिखेरते तथा जंगल में अलग से दिखाई देने वाले कड़ाया (Sterculia urens) की खुबसूरती देखकर अंग्रेजों ने इसे 'लेडी लेग' का नाम दिया था। तने के आकर्षक चमकीलेपन के चलते अंग्रेज इसकी तुलना गोरी मेम की टांगों से करते थे। चमकीले आकर्षक सफेद रंग के दिखने के कारण ये पेड़ रात में अलग से पहचाने जा सकते हैं। इस पेड़ की पत्तियां हथेली जैसी 25 सेमी. व्यास की होती है जो शाखाओं के अन्त में झुण्ड में लगती है। फरवरी-मार्च में पतझड़ होने के उपरान्त इस पर हरापन लिए पीले रंग के छोटे आकार के फूल खिलते जिन पर रोयें पाए जाते हैं। इसके फल अंडाकार 7.5 सेमी लम्बे होते है जो पकने पर लाल रंग के हो जाते है। फलों का बाहरी आवरण लालिमायुक्त रोयें से ढका होता है। एक फल में 3-6 काले या कत्थई रंग के बीज होते है. पत्तेविहीन होने के बाद चमकीले तने और डालियों के कारण कड़ाया के पेड़ रात में अजीब दहशत महसूस होती हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में इसे भूतहा या भूतिया पेड़ (घोस्ट ट्री) के नाम से भी जाना जाता है। आदिवासी इसके बीज को भूनकर खाते है।

बहुमूल्य गोंद कतीरा देने वाला वृक्ष है कड़ाया

कड़ाया एक ओद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण वृक्ष है, क्योंकि अंतराष्ट्रीय बाजार में सबसे अधिक मांग तथा सर्वाधिक निर्यात की जाने वालीं गोंदों में से एक गम कराया (गोंद) है, जो गोंद कतीरा के नाम से विश्व विख्यात है. भारत में विगत 5000 वर्ष से परंपरागत औषधि के रूप में इसका प्रयोग हो रहा है। कड़ाया का गोंद शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों वाला होता है। विदेशों में इसकी कीमत काफी होती है। औषधीय एवं खाध्य के रूप में बेहद उपयोगी गोंद कतीरा या कराया गोंद ‘कड़ाया वृक्ष’ से प्राप्त किया जाता है। कड़ाया गोंद का प्रयोग खाध्य पदार्थों एवं औषधियां आदि तैयार करने में किया जाता है। स्वादिष्ट मिठाई, आइसक्रीम, चुइगम, सॉस, दवाई के केप्सूल जोड़ने, टूथपेस्ट बनाने में एवं श्रृंगार सामग्री बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

भारत के गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के कोकड़ के जंगलों में कड़ाया के पेड़ पाए जाते है। इस वृक्ष में ग्रीष्म ऋतू (अप्रैल-जून) में सर्वाधिक गोंद पैदा होता है। भारत में लगभग 4000 टन कराया गोंद का उत्पादन होता है। असली कतीरा गोंद बाजार में ट्रेड नम्बर E-416 से बेचा जा रहा है।

गोंद के आलावा इसकी छाल से उपयोगी रेशा (fiber) प्राप्त होता है जिसे कपड़ा एवं रस्सी बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। कड़ाया की लकड़ी से फर्नीचर, शोभाकारी वस्तुएं, खेती के औजार आदि बनाये जा सकते है।

कहीं लुप्त न हो जाएँ बहुपयोगी वृक्ष कड़ाया

वर्तमान में कड़ाया का विदोहन अधिक मात्रा में होने एवं इनसे गोंद प्राप्त करने के लिए अनियंत्रित आकार एवं अधिक गहराई के खांचे बनाने या शाखाओं के काटने के कारण इन पेड़ों को भारी क्षति हो रहीं है। यहाँ तक कई जंगलों में कड़ाया के पेड़ नजर ही नहीं आते है अर्थात लुप्तप्राय होते जा रहे है। कड़ाया के कुछ पेड़ अब भी बचे हैं और जल्दी ही इन्हें बचाने की कोशिश नहीं की गई तो भारत का यह दुर्लभ औषधीय वृक्ष समाप्त हो सकते हैं। कराया गोंद भारत के जंगलों की प्रमुख वनोपज है और जंगल में बसने वाले आदिवासियों की रोजी-रोटी का सहारा है. बेतहासा जंगल कटाई एवं लगातार विदोहन के कारण नष्ट होते जा रहे कड़ाया के पेड़ों की अवैध कटाई पर तत्काल रोक लगाने के साथ-साथ जंगलों में इनके प्रतिरोपण की आव7 श्यकता है। यही नहीं कृषि क्षेत्र में भी किसानों को कड़ाया वृक्षों के रोपण के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। खेतों की मेड़ों पर कड़ाया के वृक्ष लगाने से किसानों को गोंद उत्पादन के माध्यम से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है। इसके बीज से पौध तैयार कर व्यवसायिक खेती की जा सकती है। रोपाई के बाद लगभग 6-7 वर्ष बाद पेड़ों से गोंद प्राप्त होने लगता है। वैज्ञानिक तरीके से गोंद निकालने पर इनसे 20-30 वर्ष तक अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।


In English https://en.wikipedia.org/wiki/Sterculia_urens

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