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जिले की 20 लाख आबादी का इलाज 152 डॉक्टरों के भरोसे, 94 पद रिक्त

Banswara
जिले की 20 लाख आबादी का इलाज 152 डॉक्टरों के भरोसे, 94 पद रिक्त
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जनजाति क्षेत्र में पर्याप्त नहीं इलाज की सुविधाएं, इसलिए गुजरात पर निर्भर

जनजाति क्षेत्र के लोगों के विकास और सुविधाओं के सरकार कितने भी दावे करती हो, लेकिन हालात यहां ठीक विपरीत हैं। यहां के लोगों को रोजगार और भौतिक सुविधाएं मिलना तो दूर, पढ़ाई और अपने इलाज उपचार के लिए भी पड़ौस के गुजरात पर निर्भर रहना पड़ता है। क्योंकि यहां न तो शिक्षा का स्तर ऊंचा है और न ही चिकित्सा सुविधाएं। बात अगर इलाज और उपचार की ही करें तो यहां की आबादी की तुलना में चिकित्सा संस्थान और कार्यरत डॉक्टर ही काफी कम हैं। विभाग से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर जिले के ग्रामीण इलाकों की करीब 20 लाख आबादी पर वर्तमान में 152 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं। यानि 13 हजार लोगों पर एक डॉक्टर। वहीं जिले में पर्याप्त चिकित्सा केंद्र और सुविधाएं भी नहीं हैं। वर्तमान में 21 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 52 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। जहां जांच और उपचार की सुविधाएं दी जाती हैं। लेकिन डॉक्टरों के अभाव में लोगों को या तो लंबी दूरी तय कर शहर में स्थित महात्मा गांधी चिकित्सालय आना पड़ता है या फिर गुजरात के दाहोद, अहमदाबाद, मोड़ासा, हिम्मतनगर या फिर उदयपुर और रतलाम जाने को विवश होना पड़ता है।

विशेषज्ञों के 94 पद अब भी रिक्त : ग्रामीण इलाकों में कार्यरत विशेषज्ञ डॉक्टरों की बात करें तो कई पद रिक्त हैं, ऐसे में दुर्घटना, प्रसव या अन्य गंभीर केसों में रैफर के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं हैं। जिले में जूनियर स्पेशलिस्ट मेडिसिन की संख्या देखें तो 22 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में 9 कार्यरत हैं। 13 पद रिक्त चल रहे हैं। वहीं जहां जिले सहित प्रदेशभर में नवजातों की मौत का खौफ बना हुआ हैं, ऐसे में यहां पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में महज 2 ही गायनिक डॉक्टर कार्यरत हैं और पीडियाट्रिशियन डॉक्टरों के कुल 7 पदों में 2 पर ही शिशु रोग विशेषज्ञ हैं, 5 पद इसके भी खाली हैं। इसी वजह से जिले में झोलाछाप कथित डॉक्टरों की दुकानें खुल गई हैं। जिले में कई जगह अभी छापे भी मारे गए हैं।

हर साल 16 लाख मरीजों की ओपीडी: पूराने ओपीडी के आंकड़ों के अनुसार हर साल जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में 16 लाख 31 हजार के करीब मरीज अपने स्वास्थ्य की जांच कराने पहुंचते हैं। वहीं 1 लाख 24 हजार के करीब मरीजों को ज्यादा तबियत खराब होने पर भर्ती रहता पड़ता है। वहीं 1 लाख 35 हजार के करीब मरीजों की लैब जांच कराई जाती हैं। जिसमें करीब 50 से अधिक जांच होती हैं। ओपीडी और आईपीडी का आंकड़ा पिछले 8 से 9 साल में 4 गुना तक बढ़ा है। साल 2011-12 में जहां 3 लाख 64 हजार आेपीडी थी वो अब 16 लाख के पार हैं। वहीं आईपीडी भी 49 हजार से बढ़कर 1.24 लाख तक पहुंची है।

जिले में नाक, कान, गला और हड्डी के तो डॉक्टर ही नहीं, हर मरीज होता है रैफर
इन दिनों सर्दी का काफी असर हैं, जिससे नाक कान गले के कई रोगी सामने आ रहे हैं, लेकिन इनसे संबंधित जिले में एक भी डॉक्टर कार्यरत नहीं है। या तो लोग एमजी अस्पताल आए या फिर निजी क्लिनिक में मोटी रकम देकर राहत लें। यहीं स्थित ऑर्थोपेडिक की भी है, ऑर्थोपेडिक का तो पद एमजी अस्पताल में भी खाली हो गया है। जहां पूर्व में एक डॉक्टर कार्यरत था। सड़क दुर्घटना के मामलों में बांसवाड़ा जिला सबसे आगे हैं। इन हादसों पर तो स्वयं पुलिस अधीक्षक केसरसिंह भी आश्चर्य जता चुके हैं और कई बार मंचों पर भी कहा है कि यह शायद पहला जिला होगा, जहां बाइक भी आमने सामने भिड़ती है। हालांकि एसपी ने अपनी सख्ती से इन हादसों में कमी तो ज़रुर दिलाई, लेकिन हादसों में घायलों को राहत देने के चिकित्सा विभाग के पास कोई प्रबंध नहीं। जिले में सर्जरी के 22 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन 18 पर कार्यरत हैं और 4 पद रिक्त हैं। हालांकि फिर भी ग्रामीण इलाकों में हादसों के बाद मरीजों को सीधे महात्मा गांधी अस्पताल के लिए रैफर कर दिया जाता है, ताकि स्वास्थ्य केंद्रों पर भार कम पड़ें। लेकिन एमजी अस्पताल में भी हादसों में गंभीर घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद उदयपुर ही रैफर किया जाता है।

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