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विदेशाें में हाेने वाली काले गेहूं की खेती इस बार डूंगरपुर के किसानाें ने की, रतलाम से आया बीज

Dungarpur
विदेशाें में हाेने वाली काले गेहूं की खेती इस बार डूंगरपुर के किसानाें ने की, रतलाम से आया बीज
@HelloBanswara - Dungarpur -

पूंजपुर
लेखक: महिपालसिंह चाैहान

समय-समय पर वेस्ट डी कंपोजर एवं दाल, छाछ, गोमूत्र का घोल बनाकर छिड़काव किया गया
विदेशाें में हाेने वाली काले गेहूं की खेती वागड़ के कुछ किसानों ने डूंगरपुर जिले में की है। इसके लिए रतलाम से बीज लाए। अब खेतों में काले गेहूं की फसल लहलहा रही है। इससे किसानों के चेहरे पर भी खुशी झलक रही है। वागड़ में रबी की फसल लगभग पकने को तैयार है। कई जगह तो फसल की कटाई भी शुरू हो गई है। ऐसे में किसान भी आधुनिक खेती की तरफ कदम बढ़ाते हुए किसानाें ने नवीन प्रयोग करते हुए फसल में बीज को बदलते हुए नवीन खेती काे आजमाया है।

इसका उपयोग ग्रेड्स आटा और नूडल्स के रूप में होता है

काले गेहूं की खेती सबसे ज्यादा रूस, कजाकिस्तान चीन में हाेती है। इसका उपयोग ग्रेड्स आटा और नूडल्स के रूप में किया जाता है। कई यूरोपीय और एशियाई देशों में पारंपरिक व्यंजनों में चावल के रूप में उपयोग किया जाता है। काले गेहूं में ट्राइग्लिसराइड तत्व, मैग्नीशियम उच्च मात्रा में होता है।

शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है। कब्ज को दूर करता है। पेट के कैंसर में फायदा, फाइबर से पाचन तंत्र मजबूत होता है। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज में असरदार, आंतों के इन्फेक्शन को खत्म करने में कारगर, इसमें फास्फोरस शरीर में नए उत्तकों को बनाने में कारगर, आयरन भरपूर होने से एनीमिया की बीमारी को दूर करता है। शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सही रहता है।

काला गेहूं क्याें, जाने किसानों की जुबानी, इनकी प्रेरणा से काले गेहूं की पहली बार की खेती
बनकोड़ा निवासी चंद्रेश भावसार पेशे से शिक्षक हैं एवं इनका पर्यावरण के प्रति लगाव है। इन्हीं की प्रेरणा से काले गेहूं की पहली बार खेती हुई है। इनका कहना रहा कि आज के दौर में किसान आधुनिक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहा है। इसके चलते फसल तो होती है किंतु पौष्टिक आहार लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

इसी के चलत पहल दिखाते हुए वागड़ के काश्तकारों को काले गेहूं की फसल के बारे में जानकारी दी। इस फसल के बीज मध्यप्रदेश के रतलाम से मंगवाए एवं इसकी बुवाई की प्रक्रिया भी किसानों को बताई। खेतों में बुवाई से पूर्व गेहूं के बीज को गुड़ व गोमूत्र मिश्रित पानी में मिलाकर करीब पांच से छह घंटे तक भिगाने के बाद खेतों में बुवाई की गई। खास यह कि यह आम गेहूं से पाैष्टिक है। पैदावार और कीमत भी ज्यादा हाेती है।

पिंडावल के देवीलाल पाटीदार ने अपने 4 बीघा खेत में काले गेहूं की फसल की है। पाटीदार ने बताया कि काले गेहूं की खेती जैविक विधि के साथ की है। मांडव के ही ईश्वर पाटीदार ने बताया कि सामान्य गेहूं की तरह एक दाने के कई कल्ले बनते हैं तथा बाली भी सामान्य गेहूं की बाली से थोड़ी बड़ी होती है।

इससे एक बीघा में सामान्य गेहूं से अधिक उत्पादन प्राप्त होगा। जिले के बनकोड़ा, बडलिया, पिंडावल, मांडव आदि गांवों में काले गेहूं की फसल बोई गई है। इस फसल की बुवाई के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है। यह सामान्य गेहूं की तरह ही इसे उगाया जाता है। किसानों ने इसे सिर्फ जैविक खेती के तरीके से उगाया है। जिसमें समय-समय पर वेस्ट डी कंपोजर एवं दाल, छाछ, गोमूत्र का घोल बनाकर छिड़काव किया गया। बुवाई का समय नवंबर में व पकने का समय मार्च तक हाेता है। जिले के कई किसानों ने 80 रूपए प्रति किलो के भाव से रतलाम से बीज काे खरीदा है।

बडलिया के किसान नाथू भाई पाटीदार ने बताया कि यह गेहूं खाने से स्वास्थ्य को बहुत फायदा है। हमने पता चला कि काले गेहूं में सामान्य गेहूं के मुकाबले इसमें एंटी ग्लूकोज तत्व ज्यादा होते हैं। ये शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है। ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रखता है। इसके खाने से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। शरीर में कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य बना रहता है। ऐसे में तय किया कि इस बार काले गेहूं की ही खेती करेंगे

मांडव के त्रिभुवन सिंह ने बताया कि इन्हाेंने अपने 5 बीघा खेत में काले गेहूं की खेती की है। पर्यावरणविद कार्यकर्ता चंद्रेश भावसार की प्रेरणा से वागड़ में लगभग 30 बीघा भूमि में काले गेहूं की फसल की गई है और सामान्य गेहूं से इसमें पैदावार भी अच्छी होने की संभावना है तथा किसान को इसका उचित मूल्य भी मिलेगा।​​​​​​​

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