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बांसवाड़ा कोष कार्यालय में 5 करोड़ का स्टाम्प घोटाला:विभाग के कर्मचारी और वेंडर की मिलीभगत; कोषाधिकारी ने मामला दर्ज कराया

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बांसवाड़ा कोष कार्यालय में 5 करोड़ का स्टाम्प घोटाला:विभाग के कर्मचारी और वेंडर की मिलीभगत; कोषाधिकारी ने मामला दर्ज कराया
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जिला कोष कार्यालय बांसवाड़ा। - Dainik Bhaskar

जिला कोष कार्यालय बांसवाड़ा।

जिला कोष कार्यालय के स्ट्रांग रूम से 5 करोड़ 23 लाख 88 हजार 511 रुपए मूल्य के स्टांप का गबन हुआ है। करोड़ों का यह गबन कोष कार्यालय के ही सहायक प्रशासनिक अधिकारी (कैशियर) नारायणलाल यादव ने किया है। विभाग ने कैशियर को निलंबित कर दिया है। कैशियर और इस काम में उसका सहयोग करने वाले आशीष जैन के खिलाफ कोतवाली थाने में मुकदमा दर्ज करवाया है। पुलिस में रिपोर्ट देने के बाद पुलिस ने इनके घर पर छापा मारा।

इसमें उनके घर से पैसा गिनने की एक मशीन मिली है। पुलिस यादव बस्ती निवासी कैशियर यादव और स्टांप वेंडर खांदू कॉलोनी निवासी आशीष जैन समेत तीन को डिटेन कर पूछताछ कर रही है। बताया जा रहा है कि कोष कार्यालय के स्ट्रोंग रूम से 50, 100, 500 रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक के स्टांप और रेवेन्यू टिकट, कॉपिंग और कोर्ट फीस के टिकट देकर गबन किया है।

कोषाधिकारी ने दर्ज कराया मामला

ऐसे खुला मामला कोषाधिकारी हितेष गौड़ ने 23 फरवरी को पदभार ग्रहण किया। स्ट्रांग रूम में रखे स्टांप के भौतिक सत्यापन के लिए उनकी अध्यक्षता में 29 फरवरी को समिति का गठन किया। समिति ने 2 और 11 मार्च को स्टांप का भौतिक सत्यापन किया। पता चला कि ऑनलाइन दर्ज स्टॉक और भौतिक रूप से मौजूद स्टांप की संख्या में अंतर है।कोषाधिकारी हितेश गौड़ ने बांसवाड़ा के कोतवाली थाने में मंगलवार को मामला दर्ज कराया है। गौड़ ने कार्यालय के स्टोर इंचार्ज नारायण लाल यादव और स्टाम्प वेंडर आशीष जैन के खिलाफ कोतवाली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। मामले में पुलिस पुलिस जांच में जुट गई और प्रारंभिक तौर पर नारायण लाल यादव और आशीष जैन सहित 2 अन्य को डिटेन किया है। साथ ही वेंडर के घर से भी इससे जुड़ा सामान जब्त किया गया है। मामले में SHO देवीलाल मीणा ने कहा- इन्वेस्टिगेशन चल रहा है। जांच में जो सामने आएगा जल्द ही सूचना देंगे।


वेंडर-कर्मचारी की मिलीभगत

रिपोर्ट के अनुसार जिला कोषाधिकारी गौड़ ने बताया- उन्होंने 23 फरवरी को पदभार ग्रहण किया। इसके बाद स्ट्रॉन्ग रूम में रखे स्टाम्प के भौतिक सत्यापन के लिए कमेटी का गठन किया गया। कमेटी की जांच में सामने आया कि जो ऑनलाइन स्टॉक है और स्ट्रॉन्ग रूम में स्टाम्प उपलब्ध हैं उनमें अंतर हैं। जांच में सामने आया कि यह अंतर 5 करोड़ 23 लाख 88 हजार 511 रुपए की लागत के स्टाम्प का है। जिला कोषाधिकारी ने इस गबन में स्टोर कीपर नारायणलाल यादव और वेंडर आशीष जैन की मिलीभगत मानते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई है।

जांच रिपोर्ट मिलने के बाद गत 24 अप्रैल को इसी रिपोर्ट के आधार पर OSIS (सॉफ्वेयर) से मिले पिछले सालों के वेंडर सेल रिपोर्ट और सिंगल डबल लॉक रजिस्टर का मिलान किया। इसमें पाया गया कि 1 अप्रैल 22 से 31 जुलाई 22 तक स्पेशल adhesive 500.00 के 3,15,758 स्टांप डबल लॉक से निकाले गए। लेकिन, इस अवधि में केवल 1394 स्टाम्प ही बेचे गए।

स्टोर इंचार्ज नारायण लाल यादव को निलंबित कर दिया गया है।
स्टोर इंचार्ज नारायण लाल यादव को निलंबित कर दिया गया है।

इसके बाद डिटेल जांच के लिए 14 मार्च को समिति गठित की। 24 अप्रैल को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार 1 अप्रैल 2022 से 31 जुलाई तक डबल लॉक से 315758 स्टांप निकाले गए लेकिन इसी अवधी में केवल 1394 स्टांप ही विक्रय किए गए। रिपोर्ट में स्ट्रांग रूम में भौतिक रूप से 5 करोड़ 23 लाख 88 हजार 511 रुपए मूल्य के स्टांप कम पाए गए।

नियमानुसार वेंडर को जितनी मूल्य के स्टांप चाहिए, उतनी कीमत का संबंधित बैंक में चालान कटवाना पड़ता है। बाद में वह चालान 24 घंटे में कोष कार्यालय में जमा करवाना होता है। इसके बाद वेंडर को चालान की कीमत के स्टांप जारी किए जाते हैं।

स्टांप की इस बिक्री की ऑनलाइन एंट्री की जाती है। ऐसे में हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी संख्या में स्टांप सीधे तौर पर बेचे गए लेकिन किसी भी स्तर से इस कारस्तानी को पकड़ने के लिए कोई मॉनिटरिंग नहीं की गई। शहर की यादव बस्ती में कैशियर नारायण का मकान है। जहां मंगलवार रात को जांच टीम पहुंची। लेकिन वहां उसके परिजन नहीं मिले। एक रिश्तेदार मौके पर मौजूद था। वेंडर आशीष जैन की संलिप्तता सामने आने के बाद पुलिस शाम को उसके घर पर पहुंची और जैन को डिटेन किया। पुलिस को आशंका है कि जैन के साथ अन्य कोई वेंडर भी इस गबन में शामिल हो सकते हैं।


इसके लिए पुलिस पूछताछ कर रही है। क्योंकि यह माना जा रहा है कि आशीष जैन कैशियर नारायण यादव को स्टांप बेचता था। जिसके जरिए उन्होंने एक चेन बना ली थी। जहां से अन्य जगह स्टांप और डाक टिकट बेचे जाते थे। बदले में वेंडर जैन नारायण को कमिशन देता था। पुलिस को यह जानकारी भी मिली है कि कलेक्ट्रेट के नीचे कई दुकानदार भी स्टांप टिकट बेचते थे। जो कि नियमानुसार गलत है। दुकानदार स्टांप टिकट नहीं ​बेच सकता है। विभाग ने कैशियर यादव पर संदेह होने पर उसे 5 और 15 मार्च को कारण बताओ नोटिस जारी किए। इसके जवाब में कैशियर ने स्टांप की संख्या में अंतर की वजह पूर्व में हुए चालानों का ओएसआईएस पर दर्ज नहीं करना बताया।

चर्चा है कि कैशियर के पास से पुलिस को एक डायरी मिली है। जिसमें उसने स्टांप किस-किसको दिए, इसका जिक्र किया है। चर्चा है कि नारायण ने कई स्टांप उधार पर भी दिए थे। उसने स्टांप बेचने के लिए एक दुकानदार की तरह खाता खोल लिया था। जिसमें वह हिसाब रखता था कि अब तक किसने कितने रुपए जमा करवाए और कितने रुपए उधार है।

इनके पास से नोट गिनने की मशीन भी जब्त की है। निलंबित नारायणलाल मंत्रालयिक कर्मचारी है। आंबापुरा में कार्यरत नारायण को साल 2018 में डेपुटेशन पर कोष कार्यालय में लगाया था। नारायण यहां सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत है। ऐसे में स्टांप के स्टॉक और बिक्री की पूरी जानकारी उसके ही पास थी।

मामला करोड़ों रुपए मूल्य के स्टांप से जुड़ा है ऐसे में इसमें और लोगों की भी मिलीभगत का संदेह है। कलेक्टर डॉ इंद्रजीत यादव ने बताया कि ऑनलाइन स्टॉक और उपलब्ध स्टांप में कुछ अंतर है। संलिप्त कर्मचारी और वेंडर के खिलाफ केस दर्ज कराया है। कर्मचारी को निलंबित भी कर दिया है। आगे जांच होगी। कोष कार्यालय में करोड़ों के स्टांप गबन ने व्यवस्था में लापरवाही को भी उजागर कर दिया है।

यह स्थिति तब बनी जब 30 अगस्त को अतिरिक्त महानिरीक्षक प्रवर्तन पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग राजस्थान अजमेर ने भी कोष कार्यालय का निरीक्षण किया था। बड़ा सवाल यह है कि स्ट्रांग रूम से स्टांप बेचने का काम समय से चल रहा था? क्या कोष कार्यालय की लंबे समय से ऑडिट नहीं की गई? क्योंकि, अगर समय पर ऑडिट की गई होती तो स्टांप गबन काफी पहले ही पकड़ में आ जाता।

कलेक्टर बोले-कर्मचारी को किया निलंबित

कलेक्टर डॉ. इंद्रजीत बताया कि अधिकारी ने जब जॉइन किया तो उन्होंने एक बार स्ट्रॉन्ग रूम का अवलोकन किया। उन्हें शुरू में कुछ लगा कि ऑनलाइन स्टॉक में और वर्तमान में उपलब्ध स्टांप में कुछ अंतर है तो उन्होंने इसके लिए जांच कमेटी बनाई। इसमें यह पूरा मामला सामने आया। जिस कर्मचारी और वेंडर की लिप्तता थी उसके खिलाफ केस दर्ज करा दिया है और पुलिस ने डिटेन कर लिया है। विभागीय कार्यवाही के तहत कार्मिक को निलंबित कर दिया है।

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