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यहां मिट्टी में मिल जाएंगे, वापस पाक नहीं जाएंगे

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यहां मिट्टी में मिल जाएंगे, वापस पाक नहीं जाएंगे
@HelloBanswara - National -

पाकिस्तान से आए 25 हिंदू परिवार नानकसर गुरुद्वारे के पीछे जंगल में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। यह जगह सिग्नेचर ब्रिज के पास है। वे अपने मां-बाप और भाई-बहन को छोड़कर आए हैं। कई अपने बच्चों को भी पाकिस्तान में छोड़ जान बचाकर आए हैं। कोई एक महीने पहले आया है, तो कुछ 10-15 दिन पहले।

पीड़ितों ने बताया कि पाकिस्तानी हुक्मरान हिंदुओं को आने नहीं देते। बहाने बनाकर भारत आने का वीजा लेना पड़ता है। उनका कहना है कि अब आ गए हैं, तो यहीं जिएंगे और मरकर हिंदुस्तान की मिट्टी में मिल जाएंगे, लेकिन लौटकर पाकिस्तान नहीं जाएंगे। लगभग सभी परिवार पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हुडकी गांव के रहने वाले हैं।

दो हिस्सों में बंट गया परिवार - शरणार्थी कृष्ण ने बताया, 'पाकिस्तान में हिंदुओं पर बहुत जुल्म किए जा रहे हैं। हालत ऐसे हैं कि हिंदुओं का रहना मुश्किल हो गया है। लोग भारत आना चाहते हैं, लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरानों को यह पसंद नहीं है। किसी तरह से झूठ-सच बोलकर लोग वीजा के लिए अप्लाई करते हैं। परिवार के जिस भी सदस्य को वीजा मिल जाता है वह तुरंत पाकिस्तान से निकल जाता है। इस वजह से परिवार दो हिस्सों में बंट गया है। कुछ लोग भारत पहुंच गए हैं, लेकिन एक ही परिवार के कई सदस्य अब भी पाकिस्तान में वीजा मिलने का इंतजार कर रहे हैं।'

घरों में कैद रहती हैं लड़कियां - हर परिवार में 4-5 बच्चे हैं। बच्चों ने बताया कि पाकिस्तान में पढ़ाई के नाम पर सिर्फ मदरसे में मजहबी तालीम दी जाती है। 14 साल की लड़की ने बताया कि वह सिर्फ 'अ' से 'अनार' पढ़ना जानती हैं। एक शरणार्थी ने बताया कि पाकिस्तान में हालात ऐसे हैं कि वे लोग किशोर लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने देते। उनकी लड़कियां घरों में ही कैद रहती थीं। एक महिला ने बताया कि पाकिस्तान में वे कपड़े और शृंगार का सामान बेचने के अलावा खेती-बाड़ी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे।

अंधेरे में रहने को मजबूर - शरणार्थी जहां रहते हैं वहां पर एक गौशाला और मंदिर भी है। इसका संचालन एक बुजुर्ग महिला के हाथों में है। उन्होंने शरणार्थियों को लाइट की सुविधा मुहैया कराई थी। हालांकि, कुछ समय पहले लाइट काट दी गई। अब घने जंगल के बीच लोगों को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। कुछ लोग गुरुद्वारे में काम करते हैं, तो कुछ छोटा-मोटा सामान बेचते हैं। कई सामाजिक संस्थाएं और कार्यकर्ता लोगों को मदद पहुंचा रहे हैं।

 

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