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आधी अधूरी कार्रवाई : सभी 82 झोलाछाप जमानत पर रिहा

Banswara
आधी अधूरी कार्रवाई : सभी 82 झोलाछाप जमानत पर रिहा
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मुख्यालय के आदेश पर जिला पुलिस ने पिछले दाे दिनाें से नीम हकीमों के खिलाफ प्रभावी अभियान छेड़ िदया। बिना किसी वैध डिग्री के इलाज करने वाले 56 नीम हकीमों काे एक दिन पहले पकड़ िलया, लेकिन पुलिन ने कानूनी चूक कर दी। पुलिस काे इन नीम हकीमों के खिलाफ सीधे किसी कार्रवाई का अधिकार ही नहीं। चिकित्सा विभाग से संबंधित मेडिकल ऑफिसर या उसके उच्चाधिकारी ही इन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए अधिकृत हैं। हड़बड़ाहट में पुलिस ने इस तथ्य काे नजर अंदाज कर िदया। नतीजा यह निकला कि जिले के किसी भी थाने में किसी भी मेडिकल ऑफिसर ने नीम-हकीम के खिलाफ पुलिस काे काेई एफअाईअार नहीं साैंपी। मजबूरन पुलिस काे अपनी साख बचाने के लिए उनकी शांति भंग करने जैसी सामान्य धाराओं में गिरफ्तारी दिखानी पड़ी। एक दिन पूर्व पकड़े गए इन सभी नीम हकीमों काे पुलिस ने उनके संबंधित क्षेत्र के कार्यपालक मजिस्ट्रेट एसडीएम या तहसीलदार के समक्ष पेश िकया। जहां से वे सभी जमानत पर रिहा हाे गए। नियमानुसार किसी भी स्थान पर नीम हकीम के अवैध रूप से उपचार करने क्लिनिक चलाने की सूचना पर उस क्षेत्र के मेडिकल ऑफिसर की ड्यूटी है कि वह जांच के बाद उनके खिलाफ संबंधित पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराए। वहीं दूसरी अाेर पूर्व में ही मेडिकल ऑफिसरों ने अकेले इस तरह की कार्रवाई करने में अपने काे असक्षम बता रखा है। ऐसे में सरकार ने नीम हकीमों के खिलाफ कार्रवाई के लिए टीम गठित किए जाने संबंधी दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं। उस टीम में संबंधित क्षेत्र के कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप में एसडीएम अथवा तहसीलदार, पर्याप्त पुलिसकर्मी व औषधि नियंत्रण अधिकारी शामिल हाेंगे। यह सभी मिल कर नीम हकीमों के यहां कार्रवाई करेंगे। पुलिस ने संबंधित क्षेत्र के चिकित्सा अधिकारी काे साथ लिए बिना अकेले ही एक साथ नीम हकीमों के यहां छापा मार कार्रवाई कर दी। पकड़ कर थाने ले अाई। उच्चाधिकारियों काे सूचना दे दी, लेकिन देर शाम पुलिस अफसरों के ही हाथ पैर फूलने लगे। इन सभी काे पकड़ ताे लिया लेकिन उनके खिलाफ सीधे कार्रवाई व मुकदमा दर्ज करने का अधिकार ही पुलिस काे नहीं है।

मेडिकल ऑफिसरों का तर्क- वे मौके पर ही नहीं थे तो एफआईआर कैसे दें, पुलिस साथ ले जाती: सीएमएचओ
सीएमएचअाे डाॅ. एच.एल.ताबियार का कहना है कि उन्होंने इस संबंध में आदेश भी जारी कर िदए। विभागीय वाॅट्सएप ग्रुप में भी सभी मेडिकल ऑफिसर काे उनके क्षेत्र में पकड़े गए नीम-हकीमाें के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दे िदए। इसके बाद भी किसी ने एफआईआर नहीं दी। जानकारी जुटाई ताे मेडिकल आफिसर्स का कहना है कि नीम हकीमों के यहां पुलिस की धरपकड़ व छापे की कार्रवाई के समय वे मौके पर ही नहीं थे ताे गलत एफआईआर कैसे दे दें। पुलिस साथ ले जाती, वे वहां मौजूद हाेते ताे ही एफआईआर दे पाते।

चिकित्सा विभाग ने एक भी एफआईआर नहीं दी, इसलिए शांतिभंग में गिरफ्तार करना पड़ा : एसपी
जब सभी थानाें से इस तरह की जानकारी एसपी केसरसिंह शेखावत काे मिली ताे उन्होंने पहले अपने स्तर पर चिकित्सा विभाग के अफसरों से बातकर एफआईआर दिलाने काे कहा। देरशाम तक भी जब एफआईआर नहीं अाई ताे एसपी ने कलेक्टर काे अवगत कराया। कलेक्टर अंतर सिंह नेहरा ने सीएमएचओ से बात कर कार्रवाई के निर्देश िदए। एसपी शेखावत का कहना है कि पुलिस काे ताे सीधे एफआईआर दर्ज करने के अधिकार है नहीं। चिकित्सा विभाग के अफसरों काे भी बता िदया। इसके बाद भी एफआईआर नहीं मिली ताे पुलिस ने अपने स्तर पर शांतिभंग जैसे मामले में इन नीम हकीमों काे गिरफ्तार कर िलया।

ठोस कार्रवाई नहीं, क्योंकि... हकीकत में नीम हकीमों के खिलाफ कार्रवाई के लिए काई प्रभावी कानून ही नहीं
जानकाराें के अनुसार प्रदेश ताे क्या पूरे देश में नीम हकीमों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई किए जाने संबंधी एंटी क्व केरी एक्ट या एंटी क्लिनिकल एक्ट जैसा काई प्रभावी कानून ही नहीं है। केवल मेडिकल ऑफिसर काे यह जिम्मेदारी दे रखी है कि उनके क्षेत्र में काई भी नीम हकीम पाया जाया ताे वे तत्काल संबंधित थाने में कार्रवाई के लिए रिपोर्ट करें। इसके बाद टीम के साथ मौैके पर पहुंच मेडिकल ऑफिसर उनकी डिग्रियों की जांच करता है। निर्धारित डिग्री नहीं पाए जाने पर उनके खिलाफ धोखाधडी व मानव जीवन संकट में डाले जाने संबंधी धाराओं में ही एफआईआर दर्ज कराई जाती है। सरकार के पास ग्रामीण क्षेत्रों में उपचार के लिए पर्याप्त मात्रा में चिकित्सक ही नहीं। जाे हैं उन्हें चिकित्सा के अलावा कुछ प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी दे रखी है, जिनमें उनकी व्यस्तता बढ़ जाती है। ऐसे में इन नीम हकीमों काे पनपने का अवसर मिल जाता है। वे गांवों में अपनी पैठ ऐसे जमा लेते हैं कि यह जानते हुए भी कि ये झाेला छाप डॉक्टर हैं, इसके बावजूद ग्रामीण उनसे ही उपचार कराने पहुंच जातें हैं। पुलिस या चिकित्सा विभाग की टीमें उनके वहां कार्रवाई के लिए पहुंच भी जाती है ताे कई बार ग्रामीण उनके सामने हाे जातंे हैं।

 

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