16वां सोमवार:शिव मंदिरों पर मंशावाचा व्रत कथा, उद्यापन के लिए सवा सेर आटे से बनेगा चूरमा
उत्तर भारत में भगवान शिव की 16 सोमवार व्रत कथा को राजस्थान के दक्षिणांचल (वागड़) में मंशा व्रत के नाम से पहचान मिली हुई है। मंशावाचा व्रत कथा के तहत आज कार्तिक की (मंशा) चौथ पर व्रत का उद्यापन करने का दस्तुर है। सदियों से चली आ रही परंपरा को लेकर आज बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में त्यौहार जैसा माहौल है। सुबह से ही शिव मंदिरों में कथा का उद्यापन करने वाले भक्तों की भीड़ जुटी हुई है।
मंदिरों में सुबह 6 बजे से धर्मप्रेमी महिलाओं और पुुरुषों का जोड़े के साथ कथा सुनाने का क्रम चालू है, जो दोपहर 12 बजे तक चलेगा। इसके बाद शाम के समय व्रत करने वाले परिवार की ओर से शिवालय परिसर में ही निर्धारित मात्रा में आटे और गुण का चूरमा बनाया जाएगा। इसे प्रसादी के तौर पर 4 हिस्सों में बांटने की परंपरा है। मान्यता है कि इस प्रसादी को व्रतधारी रात के समय उसके घर पर नहीं रखेगा। ऐसा करने से वह पाप का भागी बनेगा। इस व्रत की शुरुआत श्रावण मास की चतुर्थी पर होती है, जबकि उद्यापन कार्तिक मास की चौथ वाले सोमवार को होता है।
घंटालेश्वर और वनेश्वर का विशेष महत्व
यूं तो इस व्रत का बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले के हर शिवालय से रिश्ता है, लेकिन बांसवाड़ा शहर में वनेश्वर महादेव और घंटालेश्वर महादेव मंदिर में पूजा का विशेष महत्व है। दोनों ही मंदिरों का रियासत काल से नाता है। वहीं लोढ़ी काशी के नाम से महत्व रखने वाले बांसवाड़ा के साढ़े 11 स्वयंभू शिव मंदिरों में भी इन मंदिरों का विशेष महत्व है।
इधर, आदिवासी समाज में भी इस व्रत कथा का खासा महत्व है। माही नदी के तट पर कटूम्बी साइड में 9 मुखी मंशा महादेव मंदिर में भी सुबह के समय 30 गांवों से धर्मप्रमी पहुंचे। कंवारे-कुंवारियों के अलावा विवाहित जोड़े इस व्रत को श्रद्धा के साथ पूरा करने के लिए यहां आए। वर्ष 1980 में स्थापित इस मंदिर में पुजारी धीरजमल मईड़ा ने वागड़ी भाषा में लोगों को शिव की कथा सुनाई।
ऐसा है व्रत का तरीका
घ्ंटालेश्नवर महादेव मंदिर में कथा वाचन करने वाले दिलीप सेवक बताते हैं कि मन की इच्छा को पूरा करने वाले (मंशा व्रत) को 4 महीने के 16 सोमवार तक करना होता है। लगातार 4 साल तक इसे करना होता है। व्रत शुरू करने के बाद हर सोमवार को कथा सुननी पड़ती है। जमीन में सोना पड़ता है। व्रत वाले दिन पैसा, सुपारी, पूजा सामग्री, 5 बिलात (अंगूठे से छोटी अंगुली तक) तक नापा हुआ कच्चा सूत का धागा लेना होता है। धागे को चार हिस्सों में समांतर मोड़कर 4 ही गांठें लगानी पड़ती है। इसके बाद पूजा करनी होती है।
उद्यापन की परंपरा
इसके बाद इसके उद्यापन की परंपरा है। साथ ही धागे को दूसरे धर्मप्रमी को सौंपकर व्रत को आगे बढ़ाने का भी रिवाज है। उद्यापन को लेकर कार्तिक की चौथ पर 4 किलो आटा, सवा किलो घी और एक किलो गुण मिलाया जाता है। इसके बाद इसका एक भाग भगवान शिव को चढ़ाया जाता है, जबकि दूसरा भाग चीटियों को, तीसरा भाग गाय रखने वाले ग्वाले को और चौथे भाग को खुद को प्रसादी के तौर पर लेना होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन की परेशानी यानी श्राप समाप्त हो जाता है।