Home News Business

स्वामी विवेकानंद जयंती - राष्ट्रीय युवा दिवस

World
स्वामी विवेकानंद जयंती - राष्ट्रीय युवा दिवस
@HelloBanswara - World -

स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे हैं. भारत सरकार ने साल 1984 में स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने कि घोषणा की थी, तभी से इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस तौर पर मनाया जाता है. इस खास अवसर पर आप अपनों को स्वामी विवेकानंद के विचारों को भेजकर भी इस दिन की शुभकामनाएं दे सकते हैं.

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

१. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
२. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
३. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
४. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
५. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
६. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
७. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
८. सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।
९. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
१०. मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
११. शिक्षा ऐसी हो जो सीखने वाले को जीवन संघर्ष से लड़ने की शक्ती दे।
१२. स्वामी विवेकानंद Archived 2020-01-31 at the Wayback Machine के अनुसार व्यक्ति को अपनी रूचि को महत्व देना चाहिए|

स्वामी विवेकानंद के शिक्षा पर विचार मनुष्य-निर्माण की प्रक्रिया पर केन्द्रित हैं, न कि महज़ किताबी ज्ञान पर। एक पत्र में वे लिखते हैं–"शिक्षा क्या है? क्या वह पुस्तक-विद्या है? नहीं! क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है? नहीं, यह भी नहीं। जिस संयम के द्वारा इच्छाशक्ति का प्रवाह और विकास वश में लाया जाता है और वह फलदायक होता है, वह शिक्षा कहलाती है।" शिक्षा का उपयोग किस प्रकार चरित्र-गठन के लिए किया जाना चाहिए, इस विषय में विवेकानंद कहते हैं, "शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे दिमाग़ में ऐसी बहुत-सी बातें इस तरह ठूँस दी जायँ, जो आपस में, लड़ने लगें और तुम्हारा दिमाग़ उन्हें जीवन भर में हज़म न कर सके। जिस शिक्षा से हम अपना जीवन-निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र-गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है। यदि तुम पाँच ही भावों को हज़म कर तदनुसार जीवन और चरित्र गठित कर सके हो तो तुम्हारी शिक्षा उस आदमी की अपेक्षा बहुत अधिक है, जिसने एक पूरी की पूरी लाइब्रेरी ही कण्ठस्थ कर ली है।"

देश की उन्नति–फिर चाहे वह आर्थिक हो या आध्यात्मिक–में स्वामी शिक्षा की भूमिका केन्द्रिय मानते थे। भारत तथा पश्चिम के बीच के अन्तर को वे इसी दृष्टि से वर्णित करते हुए कहते हैं, "केवल शिक्षा! शिक्षा! शिक्षा! यूरोप के बहुतेरे नगरों में घूमकर और वहाँ के ग़रीबों के भी अमन-चैन और विद्या को देखकर हमारे ग़रीबों की बात याद आती थी और मैं आँसू बहाता था। यह अन्तर क्यों हुआ? जवाब पाया – शिक्षा!" स्वामी विवेकानंद का विचार था कि उपयुक्त शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व विकसित होना चाहिए और चरित्र की उन्नति होनी चाहिए। सन् १९०० में लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया में दिए गए एक व्याख्यान में स्वामी यही बात सामने रखते हैं, "हमारी सभी प्रकार की शिक्षाओं का उद्देश्य तो मनुष्य के इसी व्यक्तित्व का निर्माण होना चाहिये। परन्तु इसके विपरीत हम केवल बाहर से पालिश करने का ही प्रयत्न करते हैं। यदि भीतर कुछ सार न हो तो बाहरी रंग चढ़ाने से क्या लाभ? शिक्षा का लक्ष्य अथवा उद्देश्य तो मनुष्य का विकास ही है।"

स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

  • उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
  • हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
  • एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
  • एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
  • सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
  • बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
  • विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  • शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
  • जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  • जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
  • विवेकानंद ने कहा था - चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
  • हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
 

शिकागो में दिया उनका भाषण आज भी सबके बीच प्रसिद्ध है, जहां उन्होंने भारत व सनातन धर्म का इतनी संवेदनशीलता व गहराई से प्रतिनिधित्व किया था कि हम सब आज भी गौरवांवित महसूस करते हैं.

स्वामीजी ने ही दुनिया को बताया था कि असली भारत, यहां की संस्कृति और सभ्यता दरअसल क्या है.

रामकृष्ण परमहंस के इस प्रिय शिष्य ने हमें धर्म को देखने का एक नया व वैज्ञानिक नज़रिया दे दिया. यही वजह है कि उनका नाम आते ही हम एक अलग ही अनुभूति से गुज़रते हैं.

 

मृत्यु

विवेकानंद ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-"एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।" उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन ४ जुलाई १९०२ को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।

उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये १३० से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।

 

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म

1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश

1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश

नवम्बर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट

1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध

1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास

1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी

16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन

1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना


अन्य सन्यासियों के साथ स्वामी विवेकानन्द ( १८८७ , बड़ानगर )

जनवरी 1887 -- वड़ानगर मठ में औपचारिक सन्यास

1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण

25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में

13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में

31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना

25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे

30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन

अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट

11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान

27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान

16 मई 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण

नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना

जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ

अगस्त 1895 -- पेरिस में

अक्टूबर 1895 -- लन्दन में व्याख्यान

6 दिसम्बर 1895 -- वापस न्यूयॉर्क

22-25 मार्च 1896 -- फिर लन्दन

मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान

15 अप्रैल 1896 -- वापस लन्दन

मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ

28 मई 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट

30 दिसम्बर 1896 -- नेपाल से भारत की ओर रवाना

15 जनवरी 1897 -- कोलम्बो, श्रीलंका आगमन

जनवरी, 1897 -- रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में जोरदार स्वागत एवं भाषण

6-15 फ़रवरी 1897 -- मद्रास में

19 फ़रवरी 1897 -- कलकत्ता आगमन

1 मई 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना

मई-दिसम्बर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा

जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी

19 मार्च 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना

20 जून 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा

31 जुलाई 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन

22 फ़रवरी 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना

जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा

26 जुलाई 1900 -- योरोप रवाना

24 अक्टूबर 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा

26 नवम्बर 1900 -- भारत रवाना

9 दिसम्बर 1900 -- बेलूर मठ आगमन

10 जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा

मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा

जनवरी-फरवरी 1902 -- बोध गया और वाराणसी की यात्रा

मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी

4 जुलाई 1902 -- महासमाधि

शेयर करे

More Event

Search
×
;