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जानें माही बांध की कहानी: 1972 में ग्रामीणों के साथ 300 इंजीनियर्स ने शुरू किया था निर्माण, 932 करोड़ खर्च

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जानें माही बांध की कहानी: 1972 में ग्रामीणों के साथ 300 इंजीनियर्स ने शुरू किया था निर्माण, 932 करोड़ खर्च
@HelloBanswara - Rajasthan -

राजस्थान के सबसे खूबसूरत माही बांध को बने इसी हफ्ते 38 साल पूरे होने जा रहे हैं। यह बांध इस साल अपने अब तक के 37 साल के इतिहास में 23वीं बार छलका था। मानसून के दौरान हुई बारिश के बाद माही के 16 दरवाजों को खोल दिया गया था। माही का पानी राजस्थान और गुजरात होता हुआ अरब सागर में जाकर मिलता है। माही बांध में मध्यप्रदेश से भी पानी आता है। इस बांध की भराव क्षमता 281.5 मीटर है। 11 नवंबर को माही बांध को 38 साल पूरे हो रहे हैं। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में यह बांसवाड़ा के साथ प्रदेशभर के लोग बांध किनारे पहुंच रहे हैं।

23वीं बार छलकने वाले माही बांध से साल 1984 में पहली बार पानी छोड़ा गया था। कुल 77 हजार मिलियन क्यूबिक (टीमएसी) क्षमता वाले बांध से अब तक 1281 टीएमसी पानी छोड़ा जा चुका है। माही बांध के इतिहास में पहली बार वर्ष 2006 में सभी गेट 12 मीटर तक खोले गए थे। अब तक सितंबर महीने में रिकॉर्ड 9वीं बार माही बांध के गेट खोले गए हैं। वहीं अक्टूबर महीने में 6 बार माही बांध के गेट खोले जा चुके हैं।

राजस्थान के माही बांध का निर्माण प्रदेश के ही 300 इंजीनियर्स की टीम की देखरेख में साल 1972 में शुरू हुआ था। इस दौरान इंजीनियर की टीम के लिए बांसवाड़ा में विशेष कॉलोनी बसाई गई। जहां 11 साल तक रहकर इंजीनियर्स की टीम ने माही बांध का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बांसवाड़ा में आज भी यहां लोग रहते हैं।
राजस्थान के माही बांध का निर्माण प्रदेश के ही 300 इंजीनियर्स की टीम की देखरेख में साल 1972 में शुरू हुआ था। इस दौरान इंजीनियर की टीम के लिए बांसवाड़ा में विशेष कॉलोनी बसाई गई। जहां 11 साल तक रहकर इंजीनियर्स की टीम ने माही बांध का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बांसवाड़ा में आज भी यहां लोग रहते हैं।
माही बांध निर्माण के दौरान इंजीनियर्स की टीम ने ठेका प्रथा समाप्त कर हाजिरी पर ग्रामीणों से बांध निर्माण कार्य शुरू करवाया। इसका नतीजा रहा कि महज 932 करोड़ रुपए की लागत में मजबूत और अच्छा निर्माण हुआ। जो आज भी पूरी मजबूती के साथ राजस्थान की शान बन चुका है।
माही बांध निर्माण के दौरान इंजीनियर्स की टीम ने ठेका प्रथा समाप्त कर हाजिरी पर ग्रामीणों से बांध निर्माण कार्य शुरू करवाया। इसका नतीजा रहा कि महज 932 करोड़ रुपए की लागत में मजबूत और अच्छा निर्माण हुआ। जो आज भी पूरी मजबूती के साथ राजस्थान की शान बन चुका है।
माही बांध का निर्माण कार्य साल 1972 में शुरू हुआ था। निर्माण कार्य साल 1983 तक चला। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 11 नवंबर 1983 को माही बांध का उद्घाटन किया। 1972 में तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई ने माही की नींव रखी थी।
माही बांध का निर्माण कार्य साल 1972 में शुरू हुआ था। निर्माण कार्य साल 1983 तक चला। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 11 नवंबर 1983 को माही बांध का उद्घाटन किया। 1972 में तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई ने माही की नींव रखी थी।
माही बांध में 77 टीएमसी पानी की क्षमता है। माही बांध की भराव क्षमता उदयपुर की जयसमंद झील से 7 गुना अधिक है। जयसमंद झील एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।
माही बांध में 77 टीएमसी पानी की क्षमता है। माही बांध की भराव क्षमता उदयपुर की जयसमंद झील से 7 गुना अधिक है। जयसमंद झील एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।
माही बांध के पानी से सिंचाई के साथ बिजली उत्पादन भी किया जाता है। इसके साथ ही माही के किनारे रहने वाले ग्रामीण सालों से माही के पानी में मछली पालन कर अपनी आजीविका चला रहे हैं।
माही बांध के पानी से सिंचाई के साथ बिजली उत्पादन भी किया जाता है। इसके साथ ही माही के किनारे रहने वाले ग्रामीण सालों से माही के पानी में मछली पालन कर अपनी आजीविका चला रहे हैं।
माही का पानी भारत के 3 राज्यों को जोड़ता है। जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात शामिल है। माही में मध्यप्रदेश से पानी आता है। जो राजस्थान होता हुआ गुजरात तक लोगों की प्यास बुझाता है। इसके साथ ही गुजरात में भी माही के पानी से बिजली उत्पादन किया जाता है।
माही का पानी भारत के 3 राज्यों को जोड़ता है। जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात शामिल है। माही में मध्यप्रदेश से पानी आता है। जो राजस्थान होता हुआ गुजरात तक लोगों की प्यास बुझाता है। इसके साथ ही गुजरात में भी माही के पानी से बिजली उत्पादन किया जाता है।
माही में कुल 107 छोटे-बड़े टापू बने हुए हैं। इस वजह से बांसवाड़ा को दुनियाभर में टापूओं के शहर के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि माही बांध के छलकने के दौरान इनमें से अधिकतर टापू डूब जाते हैं।
माही में कुल 107 छोटे-बड़े टापू बने हुए हैं। इस वजह से बांसवाड़ा को दुनियाभर में टापूओं के शहर के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि माही बांध के छलकने के दौरान इनमें से अधिकतर टापू डूब जाते हैं।
मेवाड़ के आदिवासी अंचल में आज की ग्रामीण माही नदी की पूजा करते हैं। माही की असीम सीमाओं की वजह से इसे सागर की उपाधि भी दी गई है। इस वजह से माही को माही सागर भी कहा जाता है। हालांकि माही में बड़ी संख्या में मगरमच्छ और कछुए हैं।
मेवाड़ के आदिवासी अंचल में आज की ग्रामीण माही नदी की पूजा करते हैं। माही की असीम सीमाओं की वजह से इसे सागर की उपाधि भी दी गई है। इस वजह से माही को माही सागर भी कहा जाता है। हालांकि माही में बड़ी संख्या में मगरमच्छ और कछुए हैं।
बांसवाड़ा में बने माही बांध और माही के बैक वॉटर क्षेत्र में घूमने के लिए हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक बांसवाड़ा पहुंचते हैं। माही के किनारे बना चाचा कोटा अब दुनियाभर में न सिर्फ बांसवाड़ा बल्कि राजस्थान की पहचान बनकर उभर रहा है।
बांसवाड़ा में बने माही बांध और माही के बैक वॉटर क्षेत्र में घूमने के लिए हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक बांसवाड़ा पहुंचते हैं। माही के किनारे बना चाचा कोटा अब दुनियाभर में न सिर्फ बांसवाड़ा बल्कि राजस्थान की पहचान बनकर उभर रहा है।
माही बांध का निर्माण हुए 37 साल का वक्त बीत चुका है। इस दौरान अब तक 23 बार माही के छलकने पर बांध के दरवाजे खोले गए हैं। जबकि 14 साल बारिश और पानी की कमी से बांध के दरवाजे नहीं खोले गए। इस दौरान सितंबर में सबसे अधिक 9 बार माही के दरवाजे खोले गए।
माही बांध का निर्माण हुए 37 साल का वक्त बीत चुका है। इस दौरान अब तक 23 बार माही के छलकने पर बांध के दरवाजे खोले गए हैं। जबकि 14 साल बारिश और पानी की कमी से बांध के दरवाजे नहीं खोले गए। इस दौरान सितंबर में सबसे अधिक 9 बार माही के दरवाजे खोले गए।
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