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क्या हमें शर्म नहीं आती ?

क्या हमें शर्म नहीं आती ?
@HelloBanswara - -

क्या हमें शर्म नहीं आती ?  does not feel shame

भारत परम्परा, संस्कृति, इतिहास कि धरोहर माना जाता है। यहां की परम्परा का बखान विश्वभर में किया जाता है। यहां की संस्कृति में हर कोई रंग बसना चाहता है, यहां का इतिहास गौरव और बलिदान की गाथा गाता है। मगर ना जाने क्यों हम अपनी धरोहर को भूलते चले जा रहे है। और ना जाने क्यो हम अपने आप पर शर्मिदा है? और दिल से बस एक ही आवाज बार-बार निकलती है की क्या हमें शर्म नहीं आती ? देश चहू और विकास तो कर रहा है पर देश की मां भारती रोज अपमान और शर्म के घूंट पी रहीं है। आज देश को हम क्या कहे कुछ समझ नहीं आता देश की होती उन्नति पर गर्व करे या देश में होने वाली शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर शर्म ? जी हां आज हम जीन गम्भीर परिस्तिथयों से गुजर रहें है वो वाकई शर्मसार कर देन वाली है। बात चाहे कन्या भ्रूण हत्या की हो या महिला अत्याचार की या बात हो विधायकों और मंत्रियों के काले कारनामों की पहले से ही देश में शर्मिदा करने वाले नेताओँ की कमी नहीं है और अभी हाल ही में दिल्ली के आम आदमी पार्टी के नेता ने कुछ ऐसा कर दिया है की हम पुराने जख्मों पर मरहम लगा कर आगे बढऩे की कोशिश ही कर रहे थे की मंत्री ने फिर से विकास शिल देश कहलाने वाले भारत के दामन पर काला दाग लगा दिया। हालांकि ये कोई भारती राजनीति में नई बात नहीं है पहले भी नारायणदत्त तिवारी और राजस्थान के बहु चर्चित भंवरी केश में कांग्रेस के ही नेता महिपाल मदेरणा ने भी देश को शर्मिदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे निंदनीय कारनामों से देश किस और रूख कर रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा है। देश में हजारों महिलाओं और युवतियों किसी न किसी हैवान की दरिंदगी की शिकार हो रहीं है। रोज किसी मां से उसकी अजन्मी संतान को छिन लिया जाता है। किसी पिता के सामने उसके बेटे की हत्या कर दी जाती है और हम बस यही कह कर चुप रह जाते है की क्या हमें शर्म नहीं आती हमें शर्म भले ही आ जाए पर क्या हमारी शर्म से यह घिनौने अपराध रुक जाएगे। इस के लिए हमें एक साथ एक संकल्प के साथ देश को सही राह पर लाने के लिए योगदान देना होगा हमें अपने घर से ही बदलाव की शुरूआत करनी होगी। देश के युवाओं को सही राह पर लाना होगा। नए जमाने के साथ-साथ आगे भी बढ़ना है और देश की संस्कृति का मान भी रखना है। जरूरत बदले की नहीं बदलाव की है देश बदलाव चाहता है भारत में हर साल ७ करोड़ कन्याओं को जन्म से पहले ही दुनिया की सब से सुरक्षित जगह उसकी मां की कोख में ही मार दिया जाता है। बहु बेटी की इज्जत को सरे राह उछाला जाता है। हर रोज समाचारों की मुख्य खबर हत्या फिरोती और महिला अत्याचार से जुड़ी होती है क्योंकि हम बदलना नहीं बस बदले की भावना से चल रहे है। इसी बदले की भावना ने हमारी मानसिकता, हमारी संस्कृति और हमारी सभ्यता के दामन को बदले के खून से लाल कर दिया है। इतना कुछ होने के बाद भी या तो हम हमारे देश के गौरवमय इतिहास की गाथा में एक पंन्ना और जोड़े या फिर हर रोज समाचारों को देख खुद को शर्मिदा महसूस करते रहे और खुद पर यह दोस लगाते रहे क्या हमें शर्म नहीं आती ?

 

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