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नागरिकता (संशोधन) अधिनियम - 2019 एक परिचय

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नागरिकता (संशोधन) अधिनियम - 2019 एक परिचय
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पृष्ठभूमि 

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने से सम्बंधित है। इन देशों में पिछले कई दशकों से हिन्दुओं, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी लोगों के साथ शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। इसलिए इन धर्मों के अनुयायी समय-समय पर विस्थापित होकर भारत आते रहे हैं। तकनीकी तौर पर उनके पास भारत की नागरिकता हासिल करने का कोई ठोस दस्तावेज उपलब्ध नहीं होता है। अतः एक भारतीय नागरिक को मिलने वाली सुविधाओं से वह वंचित ही रहे हैं। 
  • धार्मिक आधार पर भेदभाव एक शर्मनाक घटना है। जिसका किसी भी राष्ट्र में होना वहां के मानवीय मूल्यों का ह्रास दर्शाता है। पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के अनुसार हर साल 5,000 विस्थापित हिन्दू भारत आते हैं। (डॉन, 13 मई, 2014) 
  • यह संख्या अाधिकारिक आंकड़ों से बहुत ज्यादा है। हमारे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं को जबरन धर्म परिवर्तन, नरसंहार, बलात्कार और संपत्तियों पर अवैध कब्ज़ा सहना पड़ता है। इन सबसे बचकर जब वह भारत आते हैं, तो यहां उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल सकती। यह पूर्ण रूप से मानवीय अधिकारों का हनन है।

 

एक संक्षिप्त परिचय 

  •  नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही अब यह अधिनियम बन चुका है। इस विधेयक को लोक सभा ने 9 दिसंबर और राज्य सभा ने 11 दिसंबर को अपनी मंजूरी दे दी थी। यह अधिनियम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा तथा यह धार्मिक प्रताड़ना के पीड़ित शरणार्थियों को स्थायी राहत देगा। 
  •  नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिक बनाने का प्रावधान है। 
  •  इसके उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ऐसे शरणार्थियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, उन्हें अपनी नागरिकता संबंधी विषयों के लिए एक विशेष विधायी व्यवस्था की जरूरत है। अधिनियम में हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने से वंचित न करने की बात कही गई है। 
  •  इसमें कहा गया है कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति नागरिकता प्रदान करने की सभी शर्तों को पूरा करता है, तब अधिनियम के अधीन निर्धारित किये जाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अधिनियम की धारा 5 या धारा 6 के अधीन ऐसे व्यक्तियों के आवेदन पर विचार करते समय उनके विरुद्ध 'अवैध प्रवासी' के रूप में उनकी परिस्थिति या उनकी नागरिकता संबंधी विषय पर विचार नहीं करेगा। 
  •  नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 बनने से पहले भारतीय मूल के बहुत से व्यक्ति जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के उक्त अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्ति भी शामिल हैं, वे नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के अधीन नागरिकता के लिए आवेदन करते थे। किंतु 8 नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 यदि वे अपने भारतीय मूल का सबूत देने में असमर्थ थे, तो उन्हें उक्त अधिनियम की धारा 6 के तहत ''प्राकृतिकरण'' (Naturalization) द्वारा नागरिकता के लिये आवेदन करने को कहा जाता था। यह उनको बहुत से अवसरों एवं लाभों से वंचित करता था। 
  •  इसलिए नागरिकता अधिनियम 1955 की तीसरी अनुसूची का संशोधन कर इन देशों के उक्त समुदायों के आवेदकों को ''प्राकृितकरण'' (Naturalization) द्वारा नागरिकता के लिये पात्र बनाया गया है। इसके लिए ऐसे लोगों मौजूदा 11 वर्ष के स्थान पर पांच वर्षों के लिए अपनी निवास की अवधि को प्रमाणित करना होगा। 
  •  नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में वर्तमान में भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के कार्ड को रद्द करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करने का प्रावधान है। 
  •  उल्लेखनीय है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय आबादी को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की संरक्षा और बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की ''आंतरिक रेखा प्रणाली'' के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान किये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखा गया है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की मुख्य बातें 
  •  नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। 
  •  ऐसे शरणार्थियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, वे भारतीय नागरिकता के लिए सरकार के पास आवेदन कर सकेंगे। 
  •  अभी तक भारतीय नागरिकता लेने के लिए 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था। नए अधिनियम में प्रावधान है कि पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक अगर पांच साल भी भारत में रहे हों, तो उन्हें नागरिकता दी जा सकती है। 9 नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 
  •  यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी। 
  •  ओसीआई कार्डधारक यदि शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो उनका कार्ड रद्द करने का अधिकार केंद्र को है, पर उन्हें सुना भी जाएगा। 

 

26 सितंबर, 1947 को महात्मा गांधी ने प्रार्थना सभा में खुले तौर पर घोषणा की पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू और सिख, हर नजरिए से भारत आ सकते हैं, अगर वे वहां निवास नहीं करना चाहते हैं। उस स्थिति में, उन्हें नौकरी देना और उनके जीवन को सामान्य बनाना भारत सरकार का पहला कर्तव्य है।

 

'यह विधेयक करोड़ों लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा'

 मा. गृहमंत्री श्री अमित शाह द्वारा संसद में दिए वक्तव्य के मुख्य बिंदु : केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पर बोलते हुए कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान, इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता देने का प्रावधान इस विधेयक में है| प्रस्तुत हें इसके मुख्य बिंदु: 

विधेयक का उद्देश्य 

यह विधेयक करोड़ों लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा| 

 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को भी जीने का अधिकार है| इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी में काफी कमी हुई है, वह लोग या तो मार दिए गए, उनका जबरन धर्मांतरण कराया गया या वे शरणार्थी बनकर भारत में आए| 

 तीनों देशों से आए धर्म के आधार पर प्रताड़ित ऐसे लोगों को संरक्षित करना इस विधेयक का उद्देश्य है| 

 भारत के अल्पसंख्यकों का इस बिल से कोई अहित नहीं है | 

 इस बिल का उद्देश्य उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देना है जो दशकों से पीड़ित थे । 

 यह उन निश्चित वर्गों के लिए है, जिनके धर्म के अनुसरण के लिए इन तीन देशों में अनुकूलता नहीं है, उनको प्रताड़ित किया जा रहा है। v इसमें उन तीन देशों के अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है। 

किसको मिलेगी नागरिकता 

  • पाकिस्तान, बंगलादेश और अफ़गानिस्तान, इन तीन देशों की जो सीमाएं भारत को छूती हैं, उन तीनों देशों में हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई और पारसी, वहां की लघुमती के लोग, जो भारत में आए हैं, वे किसी भी समय आए हों, उनको नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान इस विधेयक में है। 
  • जो किसी भी तरह से भारत के संविधान के किसी भी प्रावधान के खिलाफ नहीं जाते हैं ऐसे शरणार्थियों को उचित आधार पर नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान हैं । 

विधेयक में प्रावधान 

  • धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर जो लोग आए हैं, उनको नागरिकता देने का सवाल है। 
  • यदि धार्मिक उत्पीड़न के शिकार उपरोक्त प्रवासी निर्धारित की गई शर्तों और प्रतिबंधों के तौर-तरीकों को अपना कर रजिस्ट्रेशन कराते हैं, तो उनके माध्यम से वे भारत की नागरिकता ले पाएंगे। 
  • ऐसे प्रवासी अगर नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 या तीसरे शैड्यूल की शर्तें पूरी करने के उपरांत नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, तो जिस तिथि से वे भारत में आए हैं, उसी तिथि से उनको नागरिकता दे दी जाएगी। 
  • पश्चिमी बंगाल के अन्दर ढेर सारे शरणार्थी आए हुए हैं, अगर वे 1955 में आए, 1960 में आए, 1970 में आए, 1980 में आए, 1990 में आए या 2014 की 31 दिसंबर के पूर्व आए, उन सभी को उसी तिथि से नागरिकता दी जाएगी, जिस तिथि से वे आए हैं। हिन्दू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई, जो पाकिस्तान, बंगलादेश और अफ़गानिस्तान, इन तीन देशों से आते हैं, उनको अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। इससे उनको मुक्ति दे दी गई है। 12 नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 
  • इससे उनको कोई LEGAL CONSEQUENCE FACE नहीं करना पड़ेगा। 
  • अगर ऐसे अल्पसंख्यक प्रवासी के खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के बारे में, घुसपैठ या नागरिकता के बारे में कोई भी केस चल रहा है, तो वह केस इस बिल के विशेष प्रावधान से वहीं पर समाप्त हो जाएगा। वह LEGAL PROCEEDING उसको FACE नहीं करना पड़ेगा। 
  • कई जगह कुछ जो शरणार्थी आए हैं, उन्होंने छोटी-मोटी दुकान खरीद ली है, वे अपना काम कर रहे हैं। कानून की दृष्टि में हो सकता है कि वह अवैध हो, गैर-कानूनी हो। मगर यह बिल उनको protect करता है कि उन्होंने भारत में अपने निवास के समय में जो कुछ भी किया है, उसको यह बिल regularize कर देगा। उनकी उस status को कहीं पर भी वंचित नहीं करेगा। 
  • जैसे किसी की शादी हुई, बच्चे हुए, इन सब चीजों को यह बिल regularize करेगा। 

हिन्दू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई, जो पाकिस्तान, बंगलादेश और अफ़गानिस्तान, इन तीन देशों से आते हैं, उनको अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। इससे उनको मुक्ति दे दी गई है। 

अगर आवेदक किसी भी प्रकार का अधिकार या privilege ले रहा है, तो इस प्रावधान के तहत वह अधिकार व privilege से वंचित नहीं कर दिया जाएगा। 

 

उत्तर-पूर्व के राज्यों में लागू नहीं होगा विधेयक 

  • जो पूर्वोत्तर के राज्य हैं, उनके अधिकारों को, उनकी भाषा को, उनकी संस्कृति को और उनकी सामाजिक पहचान को preserve करने के लिए, उनको संरक्षित करने के लिए भी इसके अंदर प्रावधान हुए हैं। 
  • जनजातीय इलाकों पर यह बिल लागू नहीं होगा। 
  • उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में जो प्रोटेक्शन दिया गया है, उसी को आगे बढ़ाते हुए, Sixth Schedule में असम, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और अब पूरा मणिपुर भी नोटिफाई हो चुका है। 
  •  इसी तरह Bengal Eastern Frontier Regulation Act, 1973 के तहत Inner Line Permit के इलाके, पूरा मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, अधिकांश नागालैंड और मणिपुर, इन सारे एरिया में भी ये प्रावधान लागू नहीं होंगे। 
  •  1985 से लेकर 35 साल तक किसी को चिंता नहीं हुई कि असम के लोगों की भाषा की रक्षा, साहित्य की रक्षा, संस्कृति की रक्षा, पूरे सामाजिक परिवेश की रक्षा, उनके political representation का protection, इन सारी चीज़ों के लिए जो करना था, वह हुआ ही नहीं। 
  • वह तब हुआ, जब इस देश ने नरेन्द्र मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाया और भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई। 
  • श्री नरेंद्र मोदी सरकार पूर्वोत्तर राज्यों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं| 
  • असम के सभी मूल निवासियों की सभी हितों की चिंता क्लॉज़- 6 कमिटी के माध्यम से किया जायेगा । 
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के लोगों की आशंकाओं को दूर करते हुए माननीय गृह मंत्री जी ने कहा कि क्षेत्र के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित रखा जाएगा और इस विधेयक में संशोधन के रूप में इन राज्यों के लोगों की समस्याओं का समाधान है।

उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में जो प्रोटेक्शन दिया गया है, उसी को आगे बढ़ाते हुए, Sixth Schedule में असम, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और अब पूरा मणिपुर भी नोटिफाई हो चुका है।

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नहीं है यह विधेयक

  • नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पर बोलते हुए केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा की ‘एक बहुत बड़ी भ्रांति फैलाई जा रही है कि यह बिल माइनॉरिटी के खिलाफ है, यह बिल विशेषकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है।’ 
  • श्री अमित शाह ने कहा ‘जो इस देश के मुसलमान हैं, उनके लिए इस देश के अंदर किसी चिंता की सवाल ही नहीं है।’ 
  • श्री नरेंद्र मोदी सरकार के होते हुए इस देश में किसी भी धर्म के नागरिक को डरने की जरूरत नहीं है, यह सरकार सभी को सुरक्षा और समान अधिकार देने के लिए प्रतिबद्ध है। 
  • श्री अमित शाह ने कहा कि मोदी जी के शासनकाल में पिछले 5 वर्षों में 566 से ज्यादा मुस्लिमों को भारत की नागरिकता दी गई। 
  • श्री शाह ने कहा कि यह बिल सिर्फ नागरिकता देने के लिए है किसी की नागरिकता छीनने का अधिकार इस बिल में नहीं है। 
  • श्री नरेंद्र मोदी सरकार मानती है कि जिनकी प्रताड़ना हुई है, उन सबकी मदद सरकार को करनी चाहिए। 
  • श्री शाह ने कहा ‘वे नागरिक हैं, नागरिक रहेंगे, उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं कर सकता।’ 
  • यहां के minority और विशेषकर किसी भी मुसलमान को चिंता करने की जरूरत नहीं है।

 

कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर 

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019, की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए हैं और इसे मनमाना, भेदभावपूर्ण और भारतीय राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ होने का दावा किया जा रहा है। इन सवालों का मूल्यांकन करने के लिए और उस मिथक को तोड़ने के लिए, जो इस संशोधन के खिलाफ प्रचारित किया जा रहा है एवं इसकी वैधता का पता लगाने के लिए कुछ सवालों के जवाब निम्नवत हैं: 

1. भारत अपने नागरिकों को कैसे परिभाषित करता है और भारतीय नागरिकता के मानदंड के लिए राजनीतिक, संवैधानिक और कानूनी पृष्ठभूमि क्या है? 

  • भारतीय नागरिकता के विचार को समझने के लिए हमें संविधान सभा के दौर में जाना होगा। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से शरणार्थियों की भारी संख्या के बीच भारतीय संविधान निर्माताओं के लिए नागरिकता के प्रावधानों का मसौदा तैयार करना लगभग असंभव था। 
  • क्योंकि उस समय की स्थिति नागरिकता के प्रावधानों को अंतिम रूप देने के लिए अनुकूल नहीं थी, नागरिकता का मुद्दा संविधान के भाग II में अनुच्छेद 11 पर निर्भर था जो संसद को भारतीय नागरिकता के लिए एक विस्तृत रूपरेखा तैयार करने का विशेषाधिकार देता है। इस के कारण नागरिकता अधिनियम, 1955 अस्तित्व में आया। इसलिए, यह कहना गलत है कि संसद को नागरिकता के मानदंडों में कोई बदलाव लाने का कोई अधिकार नहीं है, यह तर्क संविधान निर्माताओं के इरादों के विपरीत है। सच्चाई यह है कि संविधान सभा ने कभी भी नागरिकता के मानदंडों को अंतिम रूप नहीं दिया, बल्कि संसद को संविधान ने भारतीय नागरिकता के मानदंड को अंतिम रूप देने का अधिकार दिया है।

2. यह नागरिकता संशोधन विधेयक क्यों आवश्यक है? 

  •  भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था और पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान (मुस्लिम बहुमत वाले राज्यों) में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को शुरू से ही धर्म के आधार पर लगातार वहां उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। विभाजन के दौरान भारत ने इन अल्पसंख्यकों को आश्वासन देते हुए कहा था कि यदि उनके मूल देश नेहरू-लियाकत संधि के तहत उन्हें दायित्व के अनुसार सुरक्षा देने में विफल रहते हैं तो भारत उनके जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। इसलिए, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के इन उत्पीड़ित वर्गों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए यह विधेयक आवश्यक था और उन्हें भारत में नागरिकता का अधिकार दिया जा रहा है, जहां वे दशकों से अवैध प्रवासियों के रूप में रह रहे हैं।

3. वर्तमान संशोधन क्या है? यह क्या कहता है और इसके परिणाम क्या हैं? 

  • 1955 अधिनियम के अनुसार किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता देने के लिए जन्म, वंश, प्राकृतिकरण, पंजीकरण और भारत द्वारा किसी भी क्षेत्र का अधिग्रहण जैसी पांच श्रेणियां हैं। नागरिकता अधिनियम में यह संशोधन मुख्य रूप से प्राकृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा नागरिकता देने के प्रस्ताव को संशोधित करता है- 
  • विधेयक के खंड 2 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में कहता है कि अब कोई भी व्यक्ति जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 की उप-धारा (2) के उपखंड (सी) के तहत या विदेशी अधिनियम, 1946 या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों से आवेदन की छूट दी गई है उनको नागरिकता अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। 
  • विधेयक का खंड 3 नागरिकता अधिनियम, 1955 में एक नई धारा 6 बी सम्मिलित करता है; यह विधेयक के खंड 2 के तहत और धारा 6 बी (2) के तहत संरक्षित व्यक्तियों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा नागरिकता प्रमाण पत्र प्रदान करने का प्रावधान करता है, ऐसे व्यक्तियों को भारतीय क्षेत्र में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा। 
  •  संशोधित अधिनियम की नई धारा 6बी (4) में यह प्रावधान है कि विधेयक के उपर्युक्त खंड 2 असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र पर लागू नहीं होगा जैसाकि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है इसके अतिरिक्त बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित 'द इनर लाइन' क्षेत्रों में भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा। 
  • विधेयक का खंड 6 अधिनियम की तीसरी अनुसूची में संशोधन करता है, जो अधिनियम की धारा 1( 6) के तहत प्राकृतिकरण के लिए योग्यता प्रदान करता है। यह तीन मुस्लिम बहुल देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा और वर्तमान मामले में नागरिकता के लिए नए आवेदन से संबंधित है। यह खंड अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए भारत में निवास या भारत सरकार के अंर्तगत सेवा शर्त को कम से कम पांच वर्ष करता है जो पूर्व में ''कम से कम ग्यारह वर्ष'' थी। 
  • इसलिए, तीन मुस्लिम देशों के सताए हुए अल्पसंख्यक अब अधिनियम की धारा 6बी के तहत नागरिकता के हकदार हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है और उन्हें इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और भारत में उनके इस तिथि के पूर्व आगमन पर उन्हें नागरिकता दी जाएगी। हालांकि, यदि 31 दिसंबर, 2014 के बाद उक्त व्यक्तियों का भारत में प्रवेश हुआ, तो वे अधिनियम की तीसरी अनुसूची के साथ पढ़े अधिनियम की धारा 6 के तहत नागरिकता के लिए पात्र होंगे, जो भारत में कम से कम 5 वर्षों के लिए उनके निवास का प्रावधान करता है। जो पहले 11 साल था, जैसा कि प्राकृतिकिकरण द्वारा नागरिकता पाने के लिए अन्य देशों के लोगों पर लागू होता है।

4. पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है, और क्या विभाजन के 70 साल बाद भी उन्हें नागरिकता प्रदान करने के लिए भारत का कोई दायित्व है?

  • हम सभी जानते हैं कि भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. बी आर अम्बेडकर एक दलित थे, लेकिन हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री श्री जोगेंद्र नाथ मंडल भी दलित थे। श्री मंडल ने पाकिस्तान के दावे का खुलकर समर्थन किया था और अनुसूचित जाति समुदायों को असम में सिलहट जिले में एक जनमत संग्रह के दौरान मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान करने के लिए कहा था। नेहरू-लियाकत संधि के ठीक 6 महीने बाद पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री ने 8 अक्टूबर, 1950 को पाकिस्तान मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों के खिलाफ बेहद भयावह हिंसा के विरोध में आया था। दुर्भाग्य से, श्री मंडल को भारत वापस आना पड़ा और शरणार्थी के रूप में उनकी मृत्यु पश्चिम बंगाल में हुई। इसलिए नेहरू-लियाकत समझौते का सम्मान करने में पाकिस्तान की विफलता के कारण, विभाजन के पीड़ितों को शरण देना भारतीय राज्य का एक संवैधानिक दायित्व बन जाता है।

5. क्या कानून के समक्ष कोई संवैधानिक चुनौती है और कैसे?

  • अनुच्छेद 14 संविधान में निहित समानता के अधिकार का मूल है। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी सामान्य कानून सभी वर्गों के लोगों पर लागू होंगे। अनुच्छेद स्थापित समूहों या वर्गों के उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है और इस तरह के वर्गीकरण में उस उद्देश्य के साथ उचित समझ विकसित होती है जिसे वह प्राप्त करना चाहता है। नागरिकता संशोधन विधेयक में वर्गीकरण दो कारकों पर आधारित है 
  • देशों का वर्गीकरण अर्थात् अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश बनाम शेष देशों 
  • लोगों का वर्गीकरण अर्थात हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई बनाम अन्य लोग
  • अब इस भिन्नता (वर्गीकरण) का आधार उत्पीड़न और अल्पसंख्यक हैं। चूंकि ये तीनों देश एक रूप में इस्लाम को अपना राज्य धर्म मानते हैं और यहां धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं, इसलिए यहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार मामले सामने आते हैं। इसलिए उत्पीड़न और अल्पसंख्यक, दोनों ही इस वर्गीकरण का आधार हैं, और चूंकि नागरिकता प्रदान कर इन उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के जीवन और स्वतंत्रता को सुनिश्चित कर इस वर्गीकरण के सही उद्देश्य को प्राप्त करना चाहती है इसलिए यह उचित वर्गीकरण की अनुमेय श्रेणी में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शायरा बानो मामले में पुनर्विचार सिद्धांत अनुचित, भेदभावपूर्ण, जो पारदर्शी नहीं, पक्षपातपूर्ण या भाई-भतीजावाद का एक मानक है, एक कानून के लिए मनमाना और असंवैधानिक होना का पर्यायवाची है। यहां इस मामले में मनमानी बिल्कुल भी लागू नहीं है क्योंकि एक उचित वर्गीकरण का आधार जो अल्पसंख्यक और उत्पीड़न वर्ग से संबंधित है उसके सही परिभाषित मापदंडों पर ऊपर चर्चा की गई है। इसलिए, यह कानून उचित वर्गीकरण और गैर-मनमानी के दोनों पैमानों को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करता है।

6. क्या यह विधेयक वास्तव में एक विशेष समुदाय के साथ भेदभाव कर रहा है, क्या यह वास्तव में मुस्लिम विरोधी है?

  • धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए, जो अपने ही देशों में अपनी धार्मिक पहचान के कारण उत्पीड़न का शिकार होते हैं, उनके संरक्षण के लिए यदि भारत कोई कार्रवाई करता है तो यह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में कोई बदलाव नहीं करता है। जैसा कि भ्रम फैलाया जा रहा है। यह हमारे धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को मजबूत से बनाए रखता है, जो व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता के बावजूद हर व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है। इस विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के कल्याण को सुनिश्चित करना है जो इन तीन देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। चूंकि मुस्लिम न तो इन देशों में अल्पसंख्यक हैं और न ही धार्मिक आधार पर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए उन्हें स्पष्ट रूप से इसमें शामिल नहीं किया गया है। इस बात पर ध्यान देना बेहद जरुरी है कि नागरिकता संशोधन विधेयक भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं करता है जो इसके नागरिक हैं, इसका उद्देश्य केवल उन अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है जो अपने संबंधित देशों में अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण सताए जाते हैं। 
  • किसी भी देश या किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है यदि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के अनुसार ऐसा करने के लिए पात्र है। सीएबी इन प्रावधानों के साथ कोई छेड़खानी नहीं करता है। यह केवल तीन देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासियों को पुष्ट प्राथमिकता प्रदान करता है, जो निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं। 
  •  दूसरे, अगर हम सभी पाकिस्तानी और बांग्लादेशी नागरिकों को नागरिकता प्रदान करना चाहते हैं तो देश का विभाजन जिसमें हमने अपनी जमीन का एक तिहाई हिस्सा दिया था, वह निरर्थक हो जाएगा। इसलिए, जब हम हमारी जमीन का एक हिस्सा पहले ही धार्मिक आधार पर दे चुके हैं तो उन लोगों को फिर से नागरिकता देने का कोई मतलब नहीं है, जिन्होंने पाकिस्तान या बांग्लादेश को अपनी मातृभूमि के रूप में चुना है। 

7. क्या यह पहली बार है कि इस तरह का वर्गीकरण किया गया है और ऐसे शरणार्थियों के लिए कोई कदम उठाया गया है? 

  •  नहीं, यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की कवायद हो रही है। साल 1950 में जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे और डॉ. अंबेडकर कानून मंत्री थे, कैबिनेट ने एक कानून द इमिग्रेंट्स (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 पारित किया। इस अधिनियम की दो विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
  • उन सभी को निष्कासित करना जिन्होंने असम में अवैध रूप से गलत उद्देश्यों के साथ प्रवेश किया 
  •  इसमें से उन लोगों को यहां निवास करने की अनुमति दी गई जो नागरिक गड़बड़ी के कारण भारत आए थे यानी व्यावहारिक रूप से हिंदू / सिख जो दंगों के कारण आए थे (उन्हें भारत में वापस रहने की अनुमति दी गई थी)। 
  •  दूसरी बात यह है कि 2003 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने राजस्थान और गुजरात के कुछ सीमावर्ती जिलों को पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू और सिख शरणार्थियों को नागरिकता देने के रूप में निर्णय लेने के लिए विशेष अधिकार दिए थे। इसलिए, यह कहना अनुचित है कि यह पहली बार ऐसा कोई प्रावधान किया गया है। पाकिस्तान में विशेष रूप से जनरल जिया-उल-हक के शासन के दौरान अत्याचार बढ़ने और उसके बाद भी हालातों में कोई विशेष सुधार नहीं होने के कारण, भारत आने वाले शरणार्थियों की संख् में लगातार इजाफा देखा गया है इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता थी, और इस विधेयक का उद्देश्य यही है।

8. क्या उनके गृह देशों में सताए गए लोगों को भारत में आने पर खुद को शरणार्थी घोषित करने और विधेयक के अनुसार नागरिकता प्राप्त करने के लिए पांच साल तक इंतजार करने की आवश्यकता है? 

  •  नहीं, यह विधेयक पूर्वव्यापी तिथि से, अर्थात् भारत में उनके प्रवेश की तारीख से नागरिकता प्रदान करता है और उन्हें स्वयं को शरणार्थी घोषित नहीं करना है। यदि उन्हें 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया गया है, तो संशोधित अधिनियम की धारा 6 बी के तहत नागरिकता प्राप्त करने के लिए 5 साल तक इंतजार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन उन उत्पीड़ित वर्ग को जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 के बाद भारत में प्रवेश किया है जिसका प्रावधान विधेयक की धारा 2 में किया गया है, उनकों अधिनियम की धारा 6 के तहत प्राकृतिकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 5 वर्षों तक भारत में रहना होगा, जो पहले 11 वर्षथा। 

9. उन लोगों के बारे में जो 15 अगस्त 1947 से पहले पाकिस्तान या बांग्लादेश से भारत आए थे? क्या उन्हें नए संशोधन के तहत नागरिकता के लिए भी आवेदन करना होगा? 

  •  नहीं, भारत के संविधान के अनुच्छेद 6 के अनुसार जो लोग 19 जुलाई, 1948 तक भारत में प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें पहले से ही भारत का नागरिक माना जा चुका है। और जिन लोगों ने 19 जुलाई, 1948 के बाद और संविधान के लागू होने से पहले प्रवेश किया है, उन्हें भी नागरिक माना जाता है, यदि वे संविधान के अनुच्छेद 6 (बी) (ii) के तहत भारत के नागरिक के रूप में पहले से ही पंजीकृत हैं। इस विधेयक का उन व्यक्तियों से कोई लेना-देना नहीं है, जिन्होंने 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत में प्रवेश किया था। 

10. यह आकलन कैसे किया जाएगा कि इन देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यक ने 31 दिसंबर, 2014 से पहले प्रवेश किया हैं?

  • इसे अधिनियम की धारा 6 बी के तहत आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत कर प्रमाणित किया जा सकता है। इस तरह की आवश्यकता अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अनुसार है।

11. अधिनियम की धारा 6 बी के तहत आवेदन करने के लिए 31 दिसंबर, 2014 तिथि क्यों निर्धारित किया गया है? 

  • ऐसा अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अनुसार अधिनियम की धारा 6 के तहत आवेदन करने के लिए 5 वर्ष की बाध्यता के कारण किया गया है। इस विशेष तिथि तक, ये सताए गए वर्ग अधिनियम की तीसरी अनुसूची के तहत मानदंडों को पूरा करते हैं यानी 5 साल का निवास, जो कि आवश्यक है, इसलिए यह तारीख निर्धारित हुई है।

12. संशोधित अधिनियम के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए कोई व्यक्ति धार्मिक उत्पीड़न का प्रमाण कैसे दे सकता है? 

  • यह अधिनियम की धारा 6 या धारा 6 बी के तहत किए गए आवेदन में घोषणा के रूप में दिया जा सकता है और इसके लिए धार्मिक उत्पीड़न के लिए किसी विशिष्ट दस्तावेजी सबूत की आवश्यकता नहीं है। आवेदक को केवल अधिनियम की अनुसूची III के तहत दिए गए मानदंडों को पूरा करना है। 13. क्या सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभ पाने वाले लोगों को नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन करने और उसकी प्रक्रिया के दौरान इन योजनाओं का लाभ मिलता रहेगा? 
  • नहीं, संशोधित अधिनियम की धारा 6 बी (3) के दूसरे प्रावधान के अनुसार वे ऐसे अधिकारों और विशेषाधिकारों से वंचित नहीं होंगे। 14. उत्तर पूर्व के कुछ इलाकों में रहने वाले ऐसे उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों का क्या होगा है, जहाँ यह संशोधन लागू नहीं होगा? इस संशोधन के तहत उन्हें कहां से लाभ मिल सकता है? 
  • यह संशोधन असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले ऐसे लोगों पर लागू नहीं होगा, जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं और बंगाल पूर्वी सीमा नियंत्रण अधिनियम, 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन के तहत आता है, जिसका प्रावधान उनकी मूल और स्वदेशी संस्कृति के संरक्षण के लिए किया गया है। हालांकि, इन क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे लोग देश के अन्य क्षेत्रों से एक आवेदन कर सकते हैं जहां यह संशोधन लागू है और उस स्थान से केवल नागरिकता से जुड़े अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। 

15. ऐसे लोग जिन पर भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने के मामले चल रहे हैं, तो क्या वह लोगों इस नए प्रावधान के तहत लाभ प्राप्त कर सकेंगे? 

  • यदि उन्हें संशोधित अधिनियम के तहत उनकों नागरिकता प्रदान करने के लिए योग्य पाया जाता है, तो यह उन्हें अयोग्य घोषित नहीं करेगा। 

 

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