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परंपरा और विज्ञान / कान छिदवाने से बढ़ती है सुनने की क्षमता, मोटापा भी कम होता है

Banswara
परंपरा और विज्ञान / कान छिदवाने से बढ़ती है सुनने की क्षमता, मोटापा भी कम होता है
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कान छिदवाना हिंदू संस्कारों का हिस्सा है, हालांकि, अब ये फैशन में शामिल हो गया है। भारत में कान छिदवाने की परंपरा सदियों से चला आ रही है। इसके पीछे का कारण माना जाता है कि ये हमारी रीति- रिवाज और परंपरा है। आज के समय की बात करें तो भारत में ही नहीं फैशन के कारण विदेशी भी कान अधिक मात्रा में छिदवा रहे है। साथ ही पुरुष भी बड़ी मात्रा में ये काम कर रहे हैं। कान छिदवाने की धार्मिक मान्यताएं तो हैं हीं वहीं इसके स्वास्थ्य के लाभ भी छुपे हैं।

  • कम होती है घबराहट और मानसिक बीमारी से भी बचते हैं 

वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार माना जाता है कि जिस जगह कान छिदवाया जाता है वहां पर दो बहुत जरूरी एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स मौजूद होते हैं। पहला मास्टर सेंसोरियल और दूसरा मास्टर सेरेब्रल जो कि सुनने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इस बारे में एक्यूपंक्चर में कहा गया है कि जब कान छिदवाए जाते हैं तो इसका दबाव ओसीडी पर पड़ता है, जिसके कारण घबराहट कम होती है, वहीं कई तरह की मानसिक बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। 

  • पाचन क्रिया होती है दुरुस्त 

कानों के निचले हिस्से का संबंध भूख लगने से होता है। कान छिदवाने से पाचन क्रिया दुरुस्त बनी रहती है। ऐसा करने से मोटापा कम होता है। मान्याता है कि कान छिदवाने से लकवा की बीमारी नहीं लगती है। वहीं कान छिदवाने से साफ सुनने में मदद भी मिलती है।

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