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शर्मसार करती घटना और घूटनों पर बैठा समाज

शर्मसार करती घटना और घूटनों पर बैठा समाज
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शर्मसार करती घटना और घूटनों पर बैठा समाज (Sharmashar Karti Ghatnaye and Ghutno par Betha Samaj)

जयपुर ही नहीं ऐसा ही हाल बांसवाड़ा के गनोड़ा में भी है। जहां एक मासूम को दिनदहाड़, सभी के बीच में एक कार में बैठा लिया जाता है। काफी घंटों तक दरींदगी करने वाले वह भेड़िये मौका देखकर छोड़कर चले गए। इसके बावजूद हम सिर्फ बाते करने में रह गए। उन भेड़ियों की दरींदगी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब वह मासूम अपने घर पर पहुंची तो कुछ नहीं बोल पा रही थी। सामाजिक तानों और बेटी की बदनामी के भय से मजबूर पिता चुपचाप घर में ले जाकर घंटों उसे देख रोता रहा। लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया ऐसी नाकारा पुलिस के पास जाने की। समाज के लोग सहित पूरे गांव और धीरे-धीरे पूरे जिले में यह बात हवा की तरह फैल गई। ग्रामीणों को चौराहे पर खड़े होकर बात करने का एक और काम मिल गया। लेकिन किसी ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि गांव में ही इसकी अवाज उठाई जाए। इस लेख में समाज को घूटनों पर कहा है, यह बूरा भी लगेगा, लेकिन ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि सभी को पूरी घटना पता था। प्रमाण के रूप में मासूम के शरीर पर आए घाव थे। लेकिन किसी ने न तो हंगामा किया और न ही कोई अंदोलन किया। यहां तक कि किसी ने इतनी जहमत तक नहीं उठाई कि मासूम के पिता इतना साहस दिया जाए कि वह पुलिस में रिपोर्ट दे सके। मामूली सी बात, जैसे लाइट नहीं आना, नाली नहीं बनना या नेताओं के पीछे चलना। ऐसी मामूली सी बातों में सड़कों पर, पूरे गांव में और पड़ोसी गांव के युवाओं को एकत्रित करने वाले लोग वहां मौजूद थे। पर मासूम के पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि उन्हें हंगामा करने के लिए खर्चा दे सके।  ऐसे में न तो कोई हंगामा हुआ न ही उस बेटी को न्याय मिल सका। नेता व ग्रामीण आए भी तो उस पिता को शर्मिंदा करने के लिए।

बात बात पर बैठक कर समाज के उत्थान की बात करने वाले वह छुटभइया नेता गांव के किसी कौने में छुप गए थे, क्योंकि एक बेटी को न्याय दिलाना समाज का उत्थान नहीं था। समाज के वे युवा जो मुछों पर ताव देकर खुद को किसी शुरवीर से तुलना करने में पीछे नहीं थे, लेकिन ऐसे में वह सब व्यस्त हो गए। कोई नहीं आया उस मासूम को न्याय दिलाने के लिए। पुलिस ने यह कह कर पल्ला झाड़ दिया कि किसी ने रिपोर्ट नहीं दी तो कार्रवाई कैसे की जाए। और गांव व समाज वाले अपने घरों में ही कहीं छिपे बैठे थे। बड़े-बड़े नेता, जो चुनाव में कई वादें कर गए थे, लेकिन इस समय वह गायब से हो गए। आंखों में आंसू लेकर अकेला मजबूर सा खड़ा था वो पिता, और अपनी बेटी के शरीर पर हुए उन घांव को देख रहा था। क्योंकि वो घांव उसके शरीर पर नहीं उसके दिल पर लगे थे।

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