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उफ़...! इस नर्क में कैसे जन्म लेगा नया जीवन

उफ़...! इस नर्क में कैसे जन्म लेगा नया जीवन
@HelloBanswara - -

कभी-कभी कुछ तस्वीरों की कथाभूमि भयानक भय और अनिष्ट की आशंकाओं से भरी होती है। उन्हें देखकर आपका भरोसा भरभराकर टूटने लगता है। अगर आप थोड़े से भी संवेदनशील हैं तो इस तस्वीर में मौजूद एक किरदार और उसकी भूमिका को देखकर आपका मानसिक संतुलन टूट सकता है। गुस्से से आपकी मुठि्ठयां भींचने लगेंगी कि उफ...! यह व्यवस्था कितनी कठोर और निष्ठुर है।  
चेहरे पर डर और आतंक लाने वाली इस तस्वीर को कुछ और खोलते हैं। यह तस्वीर बांसवाड़ा के घाटोल चिकित्सा केंद्र की है। हैरानी देखिए कि प्रसव यहां कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं बल्कि अस्पताल का सफाई कर्मचारी करा रहा है। बगल में प्रसूता की परिजन वृद्धा हाथ जोड़े खड़ी है। डर के मारे उसकी सांसंे रुकी हुई हैं। जिन हाथों से डिलीवरी हो रही है, उनसे जच्चा और बच्चा सिर्फ दुआ और दया के सहारे ही लेबर रूम में बच सकते हैं। हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को शर्मसार करने वाला यह एक दृश्य नहीं है। राज्य के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों के यही हाल हैं। कहीं सफाई कर्मचारी तो कहीं अप्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ डिलीवरी करा रहे हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों के लेबर रूम कोमा में हैं। यहां नया जीवन किसी नरक में जन्म ले रहा है।

सांसें रोककर अपने गुस्से से भरी आंखों पर कुछ देर और कंट्रोल कीजिए। भास्कर संवाददाता 13 जिलों के 92 लेबर रूमों की जो तस्वीरें और वीडियो लाए हैं, उनका दर्द शब्दों और प्रतीकों से बयां नहीं हो सकता। प्रसूताओं को जहां सबसे ज्यादा सुरक्षा, प्यार, सहयोग और भरोसा मिलना चाहिए वो यहां गायब है। लेबर रूम में घुसते ही उसका संक्रमित स्वागत फर्श-िबस्तर पर पड़े गंदे-बदबूदार खून से होता है। उसकी आंखें यह जानकर डर से और फटने लगती हैं कि यहां सफाईकर्मी या अप्रशिक्षित नर्सिंग कर्मी डिलीवरी कराएगा। यह उसके लिए लेबर पेन से भी बड़ा दर्द है। इस बेबसी पर वह अपना सारा क्रोध, चीख, दर्द, बेरुखी सह जाती है। वह जानती है कि यह अराजकता सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कुछ अनिष्ट होने पर इस बेरहम व्यवस्था का मातम मनाने के अलावा वह कुछ और नहीं कर सकती।

यह आतंक नया नहीं है। लहूलुहान लेबर रूमों में यह सिलसिला सालों से जारी है। भास्कर ने जैसलमेर में डिलीवरी के दौरान बच्चे के दो टुकड़े होने की घटना के बाद राज्य के लेबर रूमों का पोस्टमार्टम शुरू किया। अफसोस और दुर्भाग्य यह भी है कि अफसर हों या नेता, मंत्री या मुख्यमंत्री, आम या खास। सबके परिवार की महिलाओं का वास्ता लेबर रूमों से पड़ता है, पर सुध कोई नहीं लेता।  
राजस्थान में दो मुख्यमंत्री पिछले 21 सालों से राज्य चला रहे हैं। इन्हें स्वास्थ्य केंद्रों की हालत का अच्छे से अंदाजा है लेकिन हालात नहीं बदले हैं। राज्य की अच्छी सेहत उसके अस्पतालों से होती है। अगर वे ही इतने जानलेवा हैं तो सुशासन और विकास के कोई मायने नहीं हैं। अशोक गहलोत तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। बेहद संवेदनशील भी हैं। उम्मीद है इस खुलासे के बाद हमें सिर्फ जांच-पड़तालों, कमेटियों के गठन का शोर ही नहीं सुनाई देगा। बल्कि कार्रवाई होगी, कोहरा छंटेगा।  
 

लक्ष्मी प्रसाद पंत 

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