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“गाँधी” के भविष्य को रोशन करने के फेर में कहीं राजनीतिक पटल से गायब न हो जाए कांग्रेस

“गाँधी” के भविष्य को रोशन करने के फेर में कहीं राजनीतिक पटल से गायब न हो जाए कांग्रेस
@HelloBanswara - -

Banswara November 30, 2017

1885 में बने कांग्रेस ब्रिटिश काल से भारत की राजनीति का बड़ा हिस्सा रही है पर आज के समय में कांग्रेस वंशवाद मात्र रह गई है। 1885 से शुरू हुई कांग्रेस में सबसे पहले व्योमेशचंद्र बनर्जी ने अध्यक्ष पद की कमान संभाली उसके बाद कई बड़े नेताओं और सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं ने भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहकर देशहितों को लेकर काम किया।  यह क्रम साल दर साल चलता रहा। 1978 में सबसे पहले कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान गाँधी परिवार के हाथों में सौंपी गई और यहाँ से हल्का बदलाव शुरू होने लगा था। बिच में दो और नेता जो कांग्रेस में वरिष्ठ होने के साथ-साथ राजनीति पटल पर अपनी अलग ही पहचान भी रखते थे। 1978 से 1984 तक इंद्रा गाँधी ने 6 साल तक लगातार पहली बार अध्यक्ष पद की कमान संभाले रखी। यह कांग्रेस की सालों के इतिहास में पहली बार था कि किसी ने इतने लंबे वक्त तक अध्यक्ष पद की कमान संभाले रखी थी और यहां से वंशवाद की स्थिति बनना शुरू हो चुकी थी। बिच के कुछ सालों तक 1992 से1996 तक पीवी नरसिंह राव और 1996 से 1998 तक सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, यानि 3 साल तक नरसिंह राव और 2 साल तक सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और इसके बाद से गाँधी परिवार और कांग्रेस में कोई ज्यादा फर्क नहीं रहा। अब कांग्रेस वंशवाद का लगभग शिकार हो चुकी थी। 1998 में सीताराम के अध्यक्ष पद से हटने के बाद से आज तक कांग्रेस की अध्यक्ष की कुर्सी गाँधी परिवार के हाथों में वंशवाद का शिकार हो गई। कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार है कि इतने लंबे वक्त तक कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान किसी एक हाथ में रही। अब चर्चा यह है कि कांग्रेस की कमान राहुल गाँधी को सौंप  दी जाए, अगर कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर राहुल गाँधी को काबिज कर दिया जाता है तो यह तय है कि कांग्रेस पार्टी एक वंश विशेष की पार्टी रह जाएगी और गाँधी परिवार इसका मुखिया बन देश सेवा के नाम पर अपने वंश का वटवृक्ष बढाता रहेगा। 1885 से शुरू हुए कांग्रेस को आजादी के पहले से एक महत्वपूर्ण पार्टी और आजादी में उसका योगदान भी माना गया है। कांग्रेस में चल रहा है और जो काग्रेस पार्टी कर रही है। उसे तो यही लगता है कि कांग्रेस अपने एहसानों का हर्जाना जनता से मांग रही है। 

इनके काम के चलते कांग्रेस सता के गलियारों में टिकी रही

प.नेहरू, इंदिरा और राजीव तीनों अपने कार्यकाल में जनता में लोकप्रिय होते हुए प्रसिद्धि को प्राप्त हुए, किन्तु उनके बाद उनके वंशज अपनी कमियों में उलझकर रह गए। कॉंग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संगठन का शीर्ष नेतृत्व पद एक व्यक्ति के अधीन लगभग 20 वर्षों तक रहा है, इसलिए कॉंग्रेस एक वंशवाद की पार्टी बन गई है और इसका पूरा लाभ भाजपा को मिला और यही कारण है कि आज कॉंग्रेस की चुनौती अपनी कमियों के साथ-साथ भाजपा जैसे सशक्त संगठन से है जो अपने पैरों को दिल्ली से लेकर पंचायत तक जमा चुकी है। उसके विरुद्ध कॉंग्रेस के पास अध्यक्ष के रूप में केवल एक ही विकल्प उपलब्ध है, वह भी राहुल गांधी? और राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष बनते है तो कांग्रेस वंशवाद में सिमट कर कही सता के शतरंज में मात ना खा जाए. राहुल गांधी की पहचान मात्र इंदिरा जी के पोते और राजीव गांधी के बेटे के रूप में ही होती है, क्योंकि उनकी तरह नेतृत्व का करिश्माई गुण उनके पास अब तक तो देखने को नहीं मिला है। मुकाबला जब मोदी जैसे नेता से हो तो उनके सामने राहुल को उतारना तो हास्यास्पद ही होगा। प.नेहरू और इंदिरा ने जहां अपने वैश्विक आयाम स्थापित किए वहीं आज की कॉंग्रेस के नेता अपने राष्ट्रीय आयाम भी स्थापित नही कर पा रही है। राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना भाजपा के लिए जरूर सुखद है, किन्तु यह निर्णय कॉंग्रेस की नींव को हिलाकर ना रख दे और ब्रिटिश काल से राजनीति में कदम राखी हुई कांग्रेस इतिहास बन कर ना रह जाए।

1885 में बने कांग्रेस ब्रिटिश काल से भारत की राजनीति का बड़ा हिस्सा रही है पर आज के समय में कांग्रेस वंशवाद मात्र रह गई है। 1885 से शुरू हुई कांग्रेस में सबसे पहले व्योमेशचंद्र बनर्जी ने अध्यक्ष पद की कमान संभाली उसके बाद कई बड़े नेताओं और सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं ने भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहकर देशहितों को लेकर काम किया।  यह क्रम साल दर साल चलता रहा। 1978 में सबसे पहले कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान गाँधी परिवार के हाथों में सौंपी गई और यहाँ से हल्का बदलाव शुरू होने लगा था। बिच में दो और नेता जो कांग्रेस में वरिष्ठ होने के साथ-साथ राजनीति पटल पर अपनी अलग ही पहचान भी रखते थे। 1978 से 1984 तक इंद्रा गाँधी ने 6 साल तक लगातार पहली बार अध्यक्ष पद की कमान संभाले रखी। यह कांग्रेस की सालों के इतिहास में पहली बार था कि किसी ने इतने लंबे वक्त तक अध्यक्ष पद की कमान संभाले रखी थी और यहां से वंशवाद की स्थिति बनना शुरू हो चुकी थी। बिच के कुछ सालों तक 1992 से1996 तक पीवी नरसिंह राव और 1996 से 1998 तक सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, यानि 3 साल तक नरसिंह राव और 2 साल तक सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और इसके बाद से गाँधी परिवार और कांग्रेस में कोई ज्यादा फर्क नहीं रहा। अब कांग्रेस वंशवाद का लगभग शिकार हो चुकी थी। 1998 में सीताराम के अध्यक्ष पद से हटने के बाद से आज तक कांग्रेस की अध्यक्ष की कुर्सी गाँधी परिवार के हाथों में वंशवाद का शिकार हो गई। कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार है कि इतने लंबे वक्त तक कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान किसी एक हाथ में रही। अब चर्चा यह है कि कांग्रेस की कमान राहुल गाँधी को सौंप  दी जाए, अगर कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर राहुल गाँधी को काबिज कर दिया जाता है तो यह तय है कि कांग्रेस पार्टी एक वंश विशेष की पार्टी रह जाएगी और गाँधी परिवार इसका मुखिया बन देश सेवा के नाम पर अपने वंश का वटवृक्ष बढाता रहेगा। 1885 से शुरू हुए कांग्रेस को आजादी के पहले से एक महत्वपूर्ण पार्टी और आजादी में उसका योगदान भी माना गया है। कांग्रेस में चल रहा है और जो काग्रेस पार्टी कर रही है। उसे तो यही लगता है कि कांग्रेस अपने एहसानों का हर्जाना जनता से मांग रही है। 

इनके काम के चलते कांग्रेस सता के गलियारों में टिकी रही

प.नेहरू, इंदिरा और राजीव तीनों अपने कार्यकाल में जनता में लोकप्रिय होते हुए प्रसिद्धि को प्राप्त हुए, किन्तु उनके बाद उनके वंशज अपनी कमियों में उलझकर रह गए। कॉंग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संगठन का शीर्ष नेतृत्व पद एक व्यक्ति के अधीन लगभग 20 वर्षों तक रहा है, इसलिए कॉंग्रेस एक वंशवाद की पार्टी बन गई है और इसका पूरा लाभ भाजपा को मिला और यही कारण है कि आज कॉंग्रेस की चुनौती अपनी कमियों के साथ-साथ भाजपा जैसे सशक्त संगठन से है जो अपने पैरों को दिल्ली से लेकर पंचायत तक जमा चुकी है। उसके विरुद्ध कॉंग्रेस के पास अध्यक्ष के रूप में केवल एक ही विकल्प उपलब्ध है, वह भी राहुल गांधी? और राहुल गाँधी पार्टी अध्यक्ष बनते है तो कांग्रेस वंशवाद में सिमट कर कही सता के सतरंज में मात ना खा जाए. राहुल गांधी की पहचान मात्र इंदिरा जी के पोते और राजीव गांधी के बेटे के रूप में ही होती है, क्योंकि उनकी तरह नेतृत्व का करिश्माई गुण उनके पास अब तक तो देखने को नहीं मिला है। मुकाबला जब मोदी जैसे नेता से हो तो उनके सामने राहुल को उतारना तो हास्यास्पद ही होगा। प.नेहरू और इंदिरा ने जहां अपने वैश्विक आयाम स्थापित किए वहीं आज की कॉंग्रेस के नेता अपने राष्ट्रीय आयाम भी स्थापित नही कर पा रही है। राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना भाजपा के लिए जरूर सुखद है, किन्तु यह निर्णय कॉंग्रेस की नींव को हिलाकर ना रख दे और ब्रिटिश काल से राजनीति में कदम राखी हुई कांग्रेस इतिहास बन कर ना रह जाए।

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